Tuesday, April 20, 2010

गुस्ताख हो गया हूँ

गुस्ताख हो गया हूँ ।

हां मै गुस्ताख हो गया हूँ
जुल्म-अत्याचार भूख-प्यास
शोषण-उत्पीडन के विरुद्ध
वंचित के साथ उठ खड़ा होना
अगर गुस्ताखी है तो ,
मै बार-बार करूगा ।
बिखंडन,अन्धविश्वास रुढ़िवाद
thagbaji- दगाबाजी इंसानियत के क़त्ल
गरीबी ,भूमिहीनता दरिद्रता के विरूद्ध
आवाज गुस्ताखी है तो मै करूगा ।
पैदाईशी जंग की खिलाफत
दीन के आंसू पोछना ,दर्द का एहसास
नफ़रत के तूफ़ान को थमने का संकेत
मानवीय एकता की बात करना
गुस्ताखी है तो करूगा ।
उजड़ी नसीब के कारणों की तहकीकात
निर्बल को अन्धबल से सुलगने से रोकना
गरीबी के कारणों को बेनकाब करना
रिसते घाव पर मलहम लगाना
फरेब को फरेब कहना
गुस्ताखी है तो ,
ऐसी गुस्ताखी करने में डर नहीं ।
राष्ट्र के लिए खतरा साबित हो चुके
जातिवाद -क्षेत्रवाद की खिलाफत
स्वधर्मी समानता बहुधर्मी सद्भावना
देश समाज के सुख सम्वृधि की ललक
गुस्ताखी है तो मै करूगा ।
कलम के सिपाही यही करते रहे है
खुद तिल-तिल जलकर
जहा रोशन करते रहे है
भले कोंई कहे गुस्ताख
मै करूगा
क्योंकि
मै सचमुच गुस्ताख हो गया हूँ ।
नन्दलाल भारती १९.०४.२०१०