Wednesday, June 30, 2010

मिल गया आकाश थोडा

मिल गया आकाश थोडा॥
खुदगर्ज़ जमाने वालो ने
खूब किये है जुल्म ,
अस्मिता,कर्मशीलता
योग्यता तक को
नहीं छोड़ा है ।
नफ़रत भरी दुनिया में
कुछ सकून तो है यारो
कुछ तो है
जमाने में देवतुल्य
जिन्हें
मुझसे लगाव थोडा तो है ।
जमा पूंजी कहू
या
जीवन की सफलता
बड़ी शिद्दत से निचोड़ा है।
बड़े अरमान थे
पर रह गए सब कोरे
कुछ है साथ
जिनकी दुआओं से
गम कम हुआ थोडा है ।
मैनहीं पहचानता
नहीं वे
पर जानते है
हर दिन मिल जाते है
थोकबंद
शुभकामनाओ के
अदृश्य पार्सल
भले ही जमाने वालो ने
बोया रोड़ा है।
अरमान की बगिया
रहे हरी-भरी
हमने खुद को निचोड़ा है ।
मेरा त्याग और संघर्ष
कुसुमित है
मिल रही है दुआए थोडा-थोडा ।
दौलत के नहीं खड़े कर पाए ढेर
भले ही पद की तुला पर
रह गए बेअसर
धन्य हो गया मेरा कद
दुआओं की उर्जा पीकर थोडा-थोडा ।
मै आभारी रहूगा
उन तनिक भर
देवतुल्य इंसानों का
जिनकी दुआओं ने मेरे जीवन में
ना टिकने दिया
खुदगर्ज़ जमाने का रोड़ा
सवरगया नसीब
मिल गया
अपने हिस्से का आसमान थोडा .............नन्दलाल भारती.......३०.०६.२०१०


रक्त कुंडली ॥
ना बनो लकीर के फकीर
ना ही पीटो ठहरा पानी
रूढ़ीवाद छोडो
विज्ञानं के युग में
बन जाओ ज्ञानी ।
जाति-गोत्र मिलन का वक्तनहीं
ना करो चर्चा
स्वधर्मी रिश्ते
रक्त कुंडली पर हो
खुली परिचर्चा ।
ये कुंडली खोल देगी
असाध्य ब्याधियो का राज
नियंत्रित हो जाएगी ब्याधिया
सुखी हो जायेगा समाज ।
विवाह पूर्व
रक्त कुंडली की हो जाये
अगर जाच ,
जीवन सुखी असाध्य ब्याधियो की
ना सताएगी आंच ।
हो गया ऐसा तो
रूक जायेगा
मृत्युदूतो का प्रसार
ना छुए मृत्युदूत-रोग
अब हो
रक्त कुंडली का प्रचार ।
ले लेते है जान
थेलेसिमिया एड्स रोग
कई-कई हजार
निदान बस विवाह पूर्व
मेडिकल जाच की है दरकार ।
ये जाच बन जायेगी
स्वस्थ -खुशहाल
जीवन का वरदान
आनुवंशिक असाध्य रोगों से
बचाना होगा आसान ।
जग मान चूका अब ,
माता-पिता है अगर
असाध्य रोगी ,
अगली पीढ़ी स्वतः
हो जाएगी
रोगग्रस्त-अपांग-भुक्तभोगी ।
छोडो रुढ़िवादी बाते
हो स्वधर्मी रिश्ते-नाते पर विचार
कर दो रक्त कुंडली मिलन का ऐलान
आओ हम सब मिलकर बनाये
संवृध-असाध्य-रोगमुक्त हिन्दुस्तान .....नन्दलाल भारती ...३०.०६.२०१०






Tuesday, June 29, 2010

आमजनता

आमजनता ॥
पुलिस को लोग कोसते नहीं थकते
नाकामयाबी गिनाते रहते
सच ही तो लोग कह्ते
रक्षक अब भक्षक है बनते
गुमान से देश-जन सेवक कहते ।
अग्निशमन विभाग पर दोष मढ़ते
आग बुझ जाती तब ये pahoochate
झूठ नहीं लोग सच्चाई बकते
लेटलतीफी से किसी के घर
किसी के दिल jalate
इन्ही सताए क्साये लोगो को
आमजनता कहते है ।
बिजली वाले भी कसम खा लिए है s
दर बढ़ने की जिद पर अड़े रहते है
बिजली चोरी नहीं रोक पाते है
चोरी की सजा सच्चे ग्राहक पाते है
खम्भे से मीटर तक बिजली बहाते है
हो गया फाल्ट करते रहो
शिकायत
वे अंगूठा दिखाते है
प्राइवेट से काम करवा लो
तब वे
सप्पलाई चालू है
की
दस्खत लेने आते है ।
जन सेवक फ़र्ज़ भुलाते जा रहे है
खुद को खुदा मान रहे है
देख हक़ की डकैती
कुफ्त्त हो रही है
sach आमजनता को
ठगने की साजिश
चल रही है ..............नन्दलाल भारती २९-०६-२०१०



Monday, June 28, 2010

दिल की बात

किससे कहू दिल की बात
यहाँ काँटों का जाल ।
विषमाद की बिस्सत जहा ।
बेआबरू सज्जनता
दुर्जनों की महफ़िलो में ।
दीनता का तांडव
आश्वासनों की
कायनात में ।
मानुषो को
अमानुषता भाति नहीं ।
क्या करू
किससे कहू भारती
पत्थरो के सामने
नतमस्तक
हो लेता हूँ ..... नन्द लाल भारती २८.०६.२०१०
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जमाने ने दिए है
घाव बहुत
रिस रहा अभी भी खूब।
दिल चाहता है
तोड़ लू
तरक्की के हर तारे ।
विहस उठे माटी
हर तरक्की गुजरे होकर
दीन के द्वारे।
कर्म की लाठी
हौशला साथ है
हर दीन की तरक्की
अपना तो
यही ख्वाब है ।
जब माथे
देवतुल्य
इंसानों का हाथ है । नन्द लाल भारती ...२८.०६.२०१०

Friday, June 25, 2010

निरापद

निरापद
रात सो चुकी थी
मेरी आँखों से नींद दूर थी ॥
रह-रहकर
करवटे बदल रहा था
हर तरफ से सगा भूत कोई
आँखों में उतर रहा था ॥
मै आतंक से भयभीत था
गैर नहीं कोई अपना ही था ॥
दिल में
लकीरों का तानाबाना था ,
अब घरौंदा
उजाड़ने में लगा था ॥
चाहुतरफा घेराव था ,
रिश्ते से
लहू रिस रहा था ॥
भयभीत मै ,
वो,
मुस्करा रहा था ॥
मौजूद तबाही का पूरा ,
साजो सामान था ॥
मै सुलग रहा था
खुद के तन के ताप से
विजयी मुद्रा में ,
वह तर-बतर था जाम से ॥
बर्बादियो का
शंख फूंक चूका था
मै निरापद ,
जाल में फंस चूका था ॥
रात चुप थी
मै बेचैन था
कल से उम्मीद थी
आज से डर था ॥
लहू का प्यासा ,
ताल ठोंक रहा था ,
उम्मीदों के बंजर को
भारती
आंसुओ से सींच रहा था .............नन्दलाल भारती ......2५.०६.2010