Thursday, April 28, 2011

सर्वधर्म ...

सर्वधर्म
सर्वधर्म सदभाव की अलख
जगाने दो ,
द्वेष-विद्रोह अब मिट जाने दो ,
परमार्थ की ज्योति
जलाने दो,
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
दिल में नव एहसास
घर कर जाने दो ,
पूरे देश को एक हो
जाने दो
नैतिकता के राह जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
भेद की सारी दीवारे
ढह जाने दो
मन-भेद की खाई
पट जाने दो
सदभाव के फूल
खिल जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
सुख-दुःख धुप-छांव को
एक हो जाने दो
शांति का सुख बरस
जाने दो
सर्वकल्याण की प्रीति
निभाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
हर दिल में सदप्रेम की
आग लग जाने दो
मन गंगा जमुना सा
हो जाने दो
राष्ट्र -धर्म की बात
बढ़ जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
हर देवालय से देश-हित का
आगाज हो जाने दो
सर्व शांति-सर्व सुख की लहर
दौड़ जाने दो
वसुधैव कुटुम्बकम की
ज्योति जलाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
भेद की दीवार तोड़
मानवता को विह्स
जाने दो ,
गिरिजाघर से हरिकीर्तन की
धून उठ जाने दो
मंदिर से अजान
मस्जिद से
इश्वर अल्लाह तेरे नाम का
उदघोष हो जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............नन्द लाल भारती

Tuesday, April 26, 2011

आहुति

आहुति
भविष्य से हुई जंग का
हारा हुआ
सिपाही हो गया हूँ

जनाजा निकल चुका है
मेरे सपनों का
बचा भी क्या है ?
मेरे पास कुछ नहीं
बस
कुछ मीठा दर्द ,
कुछ यादे
और
शब्दों का भरापूरा
संसार।
शब्दों कि नईया में
बैठकर
पार कर लेता हूँ
बड़ी-बड़ी तूफानी
राते।
कुछ विचलित
सा
हो गया हूँ
नकाबपोशो की भीड़ में ।
कही और न छल ले
किसी अमानुष का
स्वार्थ
अथवा
कोई और
मानवता विरोधी साजिश ।
मन आहत हो गया है ,
भविष्य क्षत -विक्षत भी ।
खौफजदा रहने
लगा हूँ ,
भविष्य के आईने में
झांक कर ।
चाहता हूँ
किसी गरीब का
सपना
ना उजड़े ।
आओ पत्थरो के
शहर में
बूत बने लोगो पर
संवेदना के फुहार
कि डाले
आहुति
ताकि
संवर सके
दीन हीन का भविष्य ......नन्द लाल भारती

Friday, April 22, 2011

गाँव के निवासियों

गाँव के निवासियों ....
मेरे अपने गाँव के निवासियों
गाँव कि धरती
अर्थात जमीं का स्वर्ग
जहा जन्म लेने का
गौरव मिला हमको ।
जहा सूरज पहले लेकर आता है
रोशनी
चाहे जीतनी गरीबी रही हो
सोंधापन समाया रहा
जमीं में यहाँ।
बुराईया अब गाँव कि राह
पकड़ने लगी है
घर-घर में फूट बढ़ने लगी है ।
काम -धंधा का टोंटा
पड़ने लगा है
प्रजातंत्र के ज़माने में
श्वेत खोटा लगाने लगा है ।
गाँव अब टूट रहा है ,
देश कि आत्मा ठगा-ठगा
लग रहा है
आजमगढ़ क्या
देश विदेश के रोजनामचे पर
छपती रहती है
गाँव कि खबरे ।
वही गाँव जहा से चला
मोटा धन ऊँचा ओहदा
हवा कि राह तक चला।
गाँव कि दुर्दशा ग्रामीणों के पलायन
रोजगार कि कमी
भूमिहीनता बेहद का चलन
ये काफी है
चहरे पर कालिख पोतने के लिए ।
समाज सेवको देश भक्तो से
गुजारिस है मेरी
कुछ तो कीजिये तरक्की से दूर
राह जोह रहे गाँव के लिए ।
क्या गाँव के लिए
प्रभारी नियुक्त नहीं
किया जा सकता
माप सके जो विकास को
कर सके
खिलाफत कुव्यवस्थाओ
जातीपाती कि बुराईयों का ।
गावं के सामाजिक आर्थिक
विकास का ढूंढ सके उपाय
बची रहे
अस्मिता रोजगार का हो सृजन ।
ग्रामीण विकास के लिए
ढूढिये कोइ दागरहित
सुयोग प्रभारी महान
भले ही ना रहा हो
नाता गाँव से
ढूढिये गाँव कि बुराईयों के दमन
और
कल्याण के लिए
मुखबिर कि भांति
गाँव कि सेवा के लिए
आजीवन मै
उपलब्ध रहूँगा श्रीमान ...........नन्दलाल भारती

Tuesday, April 5, 2011

आदमी अकेला है

आदमी अकेला है
अपनी ही खुली आँखों के
ख्वाब
डसने लगे है
अकेला है जहा में
फुफकारने लगे है
फजीहत के दर्द पीये
जख्म से वजूद सींचे
भूख पसीने से धोये
सगे अपनो के लिए
जिए है ।
वक्त हँसता है
ख्वाब डराता है
कहता है
जमाने की भीड़ में
अकेला है
कैसे मान लू
हाड निचोड़ा किया-जिया
सगे अपनो के लिए
क्या वे अपने
सच्चे नहीं ?
अपनो के सुख-दुःख की
चिंता में डूबा रहा
खुद के अपनो की ना थी
फिकर
खुद की आँखों के सपने
धुल गए
अपने-सपने
सगो में समा गए ।
सच है
त्याग सगे
अपनो के लिए
गैर-अपनो के लिए
क्या किये ?
कर लो विचार
मंथन का वक्त है
सच कह रहा
वक्त
आदमी अकेला है
दुनिया का साजो-श्रींगार
झमेला है ।
सगे अपनो के लिए
दागा-धोखा
गैर के हक़ लहू से
किस्मत लिखना ठीक नहीं
मेहनत-सच्चाई -ईमानदारी से
सगे अपनो की नसीब
टांके चाँद तारे
दुनिया का दस्तूर है
प्यारे
गैरों की तनिक करे
फिकर
दान-ज्ञान-सत्कर्म हमारे
वक्त के आरपार
साथ निभाते
जमाने की भीड़ में
हर आदमी अकेला
ध्यान रहे हमारे ....नन्द लाल भारती