मै क्या लूं
ये मेरी नसीब के कातिलो
तुम घाव के सिवाय
और
क्या दोगे ?
तुमने लूट लिया
हक़ की फसले
तोड़ दिया
इंसानियत के नाम के
सारे वादे कसमे ।
तुमने आदमी को आदमी ना समझा
बंदिशों के तार जकड दिया
रोक लिया तरक्की के रास्ते ।
तुम्हे मैं क्या कहूं
अमानुषो एक दिन पूछेगा जमाना ।
तुम ओढ़-ओढ़ चहरे नए-नए
आज को लूटने
कल की तबाही का ढूढते रहे बहाना ।
मेरे आंसू बेकार ना गए
अवनी की छाती पर
जमते-जमते
बन गए खुदकिस्मती का बहाना
पद-दौलत लूट कर
तुम मुस्कराए
नाम की कमाई अनमोल मेरी
याद रखेगा जमाना ।
ये विह बीज बोने वालों
तुम्हारी गुनाही का हिसाब
मै क्या लूं
लेता रहेगा ज़माना .....नन्द लाल भारती २४.०९.२०११
Friday, October 28, 2011
Thursday, October 20, 2011
आवेश
आवेश ......
ये नसीब के हत्यारों
क्या खता थी
मार दिए सपने
भर-भर-आवेश ।
क्या यह गुनाह है
अपने देखना
सींचते रहना
तालीम-श्रम
और
विश्वास के गंगाजल से ।
खंडित नहीं हुआ
विश्वास ,इसी सहारे
सपनों की शव -यात्रा
ढो रहा कंधो पर ।
तपस्या भंग करने वालो
रहे याद
लजा रहे हो
तुम अब भी
तुम्हारी पीढियां भी
लजाती रहेगी ।
कमजोर की नसीब कैद
रखने का चक्रव्यूह रचा
चरित्र हीनता
आरोप भी लगाए
साल भी रहे
क्योंकि सारी कुंजी
तुम्हारे पास है
कोई भी गुनाह सकते हो
तुम्ही को होगा बताना
तुम्हे गुनाह कबूल है
की नहीं
पीढ़ियों तक सवाल
करता रहेगा जमाना ।
ये नसीब के हत्यारों
खता ना थे कोई मेरी
तालीम-योग्यता- हक़ की छांव
सपने देखना सींचते रहना
वफ़ा-फ़र्ज़ पर अड़े रहना
क्या गुनाह है ।
अत्याचार-अन्याय हुआ
नसीब की हत्या हुई
गुनाह की सजा
मिलती रहेगी
खैर
देने वाला
मैं कौन होता हूँ ।
हर गुनाह की सजा है
यदि इश्वर है तो
देर से मिले भले
कई जन्मो तक
मिलती रहेगी
प्रभू का यही है आदेश
ना सताओ कमजोर को
ना बनो नसीब के
हत्यारे
ना बोओ नफ़रत
जाति-धर्म के आवेश ........नन्द लाल भारती २१.१०.२०११
ये नसीब के हत्यारों
क्या खता थी
मार दिए सपने
भर-भर-आवेश ।
क्या यह गुनाह है
अपने देखना
सींचते रहना
तालीम-श्रम
और
विश्वास के गंगाजल से ।
खंडित नहीं हुआ
विश्वास ,इसी सहारे
सपनों की शव -यात्रा
ढो रहा कंधो पर ।
तपस्या भंग करने वालो
रहे याद
लजा रहे हो
तुम अब भी
तुम्हारी पीढियां भी
लजाती रहेगी ।
कमजोर की नसीब कैद
रखने का चक्रव्यूह रचा
चरित्र हीनता
आरोप भी लगाए
साल भी रहे
क्योंकि सारी कुंजी
तुम्हारे पास है
कोई भी गुनाह सकते हो
तुम्ही को होगा बताना
तुम्हे गुनाह कबूल है
की नहीं
पीढ़ियों तक सवाल
करता रहेगा जमाना ।
ये नसीब के हत्यारों
खता ना थे कोई मेरी
तालीम-योग्यता- हक़ की छांव
सपने देखना सींचते रहना
वफ़ा-फ़र्ज़ पर अड़े रहना
क्या गुनाह है ।
अत्याचार-अन्याय हुआ
नसीब की हत्या हुई
गुनाह की सजा
मिलती रहेगी
खैर
देने वाला
मैं कौन होता हूँ ।
हर गुनाह की सजा है
यदि इश्वर है तो
देर से मिले भले
कई जन्मो तक
मिलती रहेगी
प्रभू का यही है आदेश
ना सताओ कमजोर को
ना बनो नसीब के
हत्यारे
ना बोओ नफ़रत
जाति-धर्म के आवेश ........नन्द लाल भारती २१.१०.२०११
Wednesday, October 19, 2011
रंग बदलती दुनिया
रंग बदलती दुनिया
में
भेदभाव लूट-खौफ का
अनसुना शोर
मच रहा है ।
हक़ को मौत
जाति-धर्मवाद
मीठा जहर
हो रहा ।
वफ़ा -ईमान
कर्तव्यनिष्ठ
बदनाम
हो रहा।
ऐसे जहां
हौशले रौंद
दिए जाते है
तालीम को
फंसी दे दी
जाती है ।
श्रम बेकार
पसीना दागदार
बनाया
जा रहा ।
रंग बदलती
दुनिया में
आदमी नील -पात्र
में
गिरे सियार से
बने शेर की तरह
आदमखोर
हो रहा है .............नन्द लाल भारती ..२०.१०.2011
में
भेदभाव लूट-खौफ का
अनसुना शोर
मच रहा है ।
हक़ को मौत
जाति-धर्मवाद
मीठा जहर
हो रहा ।
वफ़ा -ईमान
कर्तव्यनिष्ठ
बदनाम
हो रहा।
ऐसे जहां
हौशले रौंद
दिए जाते है
तालीम को
फंसी दे दी
जाती है ।
श्रम बेकार
पसीना दागदार
बनाया
जा रहा ।
रंग बदलती
दुनिया में
आदमी नील -पात्र
में
गिरे सियार से
बने शेर की तरह
आदमखोर
हो रहा है .............नन्द लाल भारती ..२०.१०.2011
Monday, October 17, 2011
विरोध/लघु कथा
विरोध/लघु कथा
जगत बाबू आपकी किताब का कुछ विक्रय हुआ क्या.......?
नहीं ---नरायन बाबू । ग्राहक ढूढ़ना तो अपने बूते की बात नहीं । प्रकाशक दूरी बना रहे । बुक सेलर घास नहीं दाल रहे ।
जगत -यार हम तो लकी रहे ।
नारायण- कैसे.....................?
विभाग हमारी किताबे खरीदेगा। लेखन के लिए पुरस्कार भी घोषित हो चुका है विभाग द्वारा कहते हुए नरायन ने संतोष की सांस भरी ।
नारायण- बधाई हो.....
जगत-आपका विभाग कुछ नहीं कर रहा है ।
नारायन -कर रहा है न आपका उल्टा और तरक्की से बेदखल भी ।
जगत-बाप रे , मान-सम्मान,तालीम, योग्यता, प्रतिभा का विरोध ....? क्या यह छोटा होने का दंड तो नहीं ?
नरायन-जगत बाबू यही नसीब बन गया है .....नन्द लाल भारत....१६.१०.२०११
जगत बाबू आपकी किताब का कुछ विक्रय हुआ क्या.......?
नहीं ---नरायन बाबू । ग्राहक ढूढ़ना तो अपने बूते की बात नहीं । प्रकाशक दूरी बना रहे । बुक सेलर घास नहीं दाल रहे ।
जगत -यार हम तो लकी रहे ।
नारायण- कैसे.....................?
विभाग हमारी किताबे खरीदेगा। लेखन के लिए पुरस्कार भी घोषित हो चुका है विभाग द्वारा कहते हुए नरायन ने संतोष की सांस भरी ।
नारायण- बधाई हो.....
जगत-आपका विभाग कुछ नहीं कर रहा है ।
नारायन -कर रहा है न आपका उल्टा और तरक्की से बेदखल भी ।
जगत-बाप रे , मान-सम्मान,तालीम, योग्यता, प्रतिभा का विरोध ....? क्या यह छोटा होने का दंड तो नहीं ?
नरायन-जगत बाबू यही नसीब बन गया है .....नन्द लाल भारत....१६.१०.२०११
Tuesday, October 11, 2011
उम्मीद का इक कतरा..........
fNu fy;k [kq’kh dk bd drjk rwus
D;k dgwa rqEgs rks geus
[kqnk le>k Fkk ij ;s esjh Hkwy Fkh
izPNsnu dj fn;k rqeus
jkse&jkse jks mBs gS
iydksa ds cka/k
etcwr gks x;s gS brus
vc rks VwVrs gh ugha
gesa rks mEehn esa thuk gS
ftUnxh tgj gS rks ihuk gS
fud ugh fd;k rqeus
mEehn dk drjk Fkk bd
oks Hkh ywV fy;k rqeus------------uUnyky Hkkjrh-----11-10-2011
Monday, October 3, 2011
हाथ उठ रहे हजारो
हाथ उठ रहे हजारो
निरापद गलत करार
दिया गया
योग्यताओ को
सूखी घास का
ढेर मान लिया गया
अमानुष लोग
जाम टकराते हुए
आग उगल देते ।
वे वही है
जो अपने दर्द को
दर्द अमझाते है ,
गैर के घाव पर ,
खार मलते हैं
अमानुष इंसानियत की
दोहाई देते हैं ।
वफ़ा-ईमान गरीब जानकर
झूठा लगता है उन्हें
नरपिशाच निकले
इंसान समझा जिन्हें ।
नूर-बेनूर कर दिए
गिध्द अरमानो को
नोंच-नोंच चोंथ दिए।
नसीब-बदनसीब हो गयी
खुदा गवाह
पद-दौलत लूट गयी
मानवता का चीर-हरण
हो गया ।
गिरे हुए लोग
ऊपर-बहुत ऊपर उठ गए
उठना था जिन्हें
उनके हिस्से की जमीं
लूट गयी ।
लहूलुहान गिरता गया
अरमानो की अर्थी
गाजे-बाजे से निकली गयी ।
दीवाने की हिम्मत
नहीं टूटी
खुद की परछाईं के सहारे
अमानुषोके चक्रव्यूह को
चीरता चला गया
दूसरे जहां में
मान मिला
जय-जयकार हुई ।
चौथे दर्जे के जानकार
दंड
अमानुषो की गलती थी पर
कहाँ पछतावा
निरापद गलत नहीं था
साबित हो गया यारो
जनाब हाल ये है
आज
दुआ में हाथ उठ रहे हजारों ............नन्द लाल भारती ...०४.१०.२०११
निरापद गलत करार
दिया गया
योग्यताओ को
सूखी घास का
ढेर मान लिया गया
अमानुष लोग
जाम टकराते हुए
आग उगल देते ।
वे वही है
जो अपने दर्द को
दर्द अमझाते है ,
गैर के घाव पर ,
खार मलते हैं
अमानुष इंसानियत की
दोहाई देते हैं ।
वफ़ा-ईमान गरीब जानकर
झूठा लगता है उन्हें
नरपिशाच निकले
इंसान समझा जिन्हें ।
नूर-बेनूर कर दिए
गिध्द अरमानो को
नोंच-नोंच चोंथ दिए।
नसीब-बदनसीब हो गयी
खुदा गवाह
पद-दौलत लूट गयी
मानवता का चीर-हरण
हो गया ।
गिरे हुए लोग
ऊपर-बहुत ऊपर उठ गए
उठना था जिन्हें
उनके हिस्से की जमीं
लूट गयी ।
लहूलुहान गिरता गया
अरमानो की अर्थी
गाजे-बाजे से निकली गयी ।
दीवाने की हिम्मत
नहीं टूटी
खुद की परछाईं के सहारे
अमानुषोके चक्रव्यूह को
चीरता चला गया
दूसरे जहां में
मान मिला
जय-जयकार हुई ।
चौथे दर्जे के जानकार
दंड
अमानुषो की गलती थी पर
कहाँ पछतावा
निरापद गलत नहीं था
साबित हो गया यारो
जनाब हाल ये है
आज
दुआ में हाथ उठ रहे हजारों ............नन्द लाल भारती ...०४.१०.२०११
Subscribe to:
Posts (Atom)