ज़िंदगी जीने का नामे
सुख-दुःख,बसंत-पतझर
सूर्योदय की आभा
दोपहर की धुप
सांझ की छांव और आस
बनती-बिगड़ती कहानी का है सार...............
ज़िंदगी का पन्ना-पन्ना
नहीं बांच सका,नहीं बुझ पाया
ज़िंदगी के तार-बेतार
ज़िंदगी बुल-बुला पानी का
खुदा का है उपहार......................
आँख खुली धरती के भगवान् का
छाया था छ्हाया
ख़ुशी ही खुशी,खेलने-खाने की
ख़ुशी पाने और बांटने की
निश्छल था सब इज़हार..............
बचपन साथ छोड़ा
उठने लगा उमंगो का ज्वार
चक्रव्यूह में फंसा ऐसा
जवानी खोयी,लगी सूर्यास्त से आस
समझ ना पाया ज़िंदगी तेरी कहानी
हाथ लगा जो वासना कहू या प्यार.....................
ज़िंदगी तेरे मायने बस चलते रहना
याद रह जाता सुनहरा निशाँ
सद्प्रेम-तकरार,गफलत-रंजिश
खोया-पाया की तू कहानी
डूबती-उम्मीदों चमकते सपनों की बहार...................
जीत-हार,ख्वाबो की दुनिया
दुनिया के बहाव
मोती तलाशता आदमी
हाथ लगता खुला हाथ
तू ही बता जिंदगानी
जीत कहूं या हार.....................
बड़ी हिकमत से रोपे थे सपने
श्रम की खाद पसीने से सींचे
ना बचे सपने,उम्मीदे बह गयी
मझधार
बिन बांचे रह गए जीवन के पन्ने
नाम खोया वही जहा था किरदार
ज़िंदगी चलती कहानी का है सार...........नन्दलाल भारती....01.02.2012
Tuesday, January 31, 2012
Monday, January 30, 2012
ना मौत का सामान बेचा करो....
चेहरा बदलने में माहिर लोग
इमान,मर्यादा का कर रहे भोग
लाभ की तुला पर आदमी तरासते
झूठ को सच करने पर जोर अजमाते
नियति में खोट जेब रहते कतरते
खून में हाथ लाल बेदाग रहते
मिलावट -दूध तक को जहर बनाते
गारंटी की आड़ में ठगते रहते
ललाट तिलक चन्दन लेप मलते
सफ़ेद दर्शन, तासीर से कत्ली लगते
फरेबी मिजाज से,मीठा जहर बेचते
गफलत में रखकर रूख तय करते
ठगों से बचने की हर हिकमत
फेल हो जाती
ग्राहक भगवान कहकर
मीठी छूरी का वार करते
लाभ के लिए मौन हत्यारे
खून पीया करते
मौत के सौदागरों तनिक
खुदा से डरा करो
गफलत में रखकर
ना ठगा करो
और
ना मौत का सामान बेचा करो.........नन्दलाल भारती....31.01.2012
इमान,मर्यादा का कर रहे भोग
लाभ की तुला पर आदमी तरासते
झूठ को सच करने पर जोर अजमाते
नियति में खोट जेब रहते कतरते
खून में हाथ लाल बेदाग रहते
मिलावट -दूध तक को जहर बनाते
गारंटी की आड़ में ठगते रहते
ललाट तिलक चन्दन लेप मलते
सफ़ेद दर्शन, तासीर से कत्ली लगते
फरेबी मिजाज से,मीठा जहर बेचते
गफलत में रखकर रूख तय करते
ठगों से बचने की हर हिकमत
फेल हो जाती
ग्राहक भगवान कहकर
मीठी छूरी का वार करते
लाभ के लिए मौन हत्यारे
खून पीया करते
मौत के सौदागरों तनिक
खुदा से डरा करो
गफलत में रखकर
ना ठगा करो
और
ना मौत का सामान बेचा करो.........नन्दलाल भारती....31.01.2012
Sunday, January 29, 2012
नहीं खड़ा होता कोई दर्द में.........
टूटता बिखरता रहा
श्रम से उपजे अर्थ से
कुनबा सींचता
देश विकास में आहुति देता
श्रमिक देवता सपनों की दीया से
अँधियारा सजाता रहा.........................
टूटन-बिखरन के जाल में फंसा
बेगुनाही की फ़रियाद करता रहा
कहा मन में
खंजर रखने वालो को यकीन
वंचित की वफ़ा
तालीम,योग्यता पर भी शक.......................
आतुर लेने को अगिन परीक्षा
बार-बार की कर ले भले
परीक्षा पास
अंगुलिया उठती रहती
कई बदनाम से
खड़ा जसों के पुतला समान
कथित अपजसों कई तलवार पर
नहीं होता ठहराव विश्वाश पर......................
आँख में धुल छोकने वालो कई
जय-जयकार हो रही
दीन-वंचित कई धड़कन
थम रही
जकड़ा है शोषित आदमी के चक्रव्यूह में.......................
उम्मीद है आज भी शोषित को
कल जरुर चलेगी बयार पक्ष में
उठ रही अंगुलिया पर श्रम सच्चा
वंचित आदमी
वफ़ा का सिपाही मन से अच्छा...............................
आदमी के रचे कठघरे में
थरथराता खड़ा है
झेलता शोषण, अत्याचार
महंगाई की मार
नहीं खौलता लहू
नहीं उठ खड़ा होता कोई दर्द में
नहीं उठती आवाज़
गरीब/पीड़ित/वंचित/शोषित के पक्ष में...............नन्दलाल भारती 30.01-2012
श्रम से उपजे अर्थ से
कुनबा सींचता
देश विकास में आहुति देता
श्रमिक देवता सपनों की दीया से
अँधियारा सजाता रहा.........................
टूटन-बिखरन के जाल में फंसा
बेगुनाही की फ़रियाद करता रहा
कहा मन में
खंजर रखने वालो को यकीन
वंचित की वफ़ा
तालीम,योग्यता पर भी शक.......................
आतुर लेने को अगिन परीक्षा
बार-बार की कर ले भले
परीक्षा पास
अंगुलिया उठती रहती
कई बदनाम से
खड़ा जसों के पुतला समान
कथित अपजसों कई तलवार पर
नहीं होता ठहराव विश्वाश पर......................
आँख में धुल छोकने वालो कई
जय-जयकार हो रही
दीन-वंचित कई धड़कन
थम रही
जकड़ा है शोषित आदमी के चक्रव्यूह में.......................
उम्मीद है आज भी शोषित को
कल जरुर चलेगी बयार पक्ष में
उठ रही अंगुलिया पर श्रम सच्चा
वंचित आदमी
वफ़ा का सिपाही मन से अच्छा...............................
आदमी के रचे कठघरे में
थरथराता खड़ा है
झेलता शोषण, अत्याचार
महंगाई की मार
नहीं खौलता लहू
नहीं उठ खड़ा होता कोई दर्द में
नहीं उठती आवाज़
गरीब/पीड़ित/वंचित/शोषित के पक्ष में...............नन्दलाल भारती 30.01-2012
Saturday, January 28, 2012
चाहत नहीं और कोई.....
भेद भरे जहां में
ना हुआ कोई चमत्कार
ना थमी रार ना तकरार
कर्मयोगी,फ़र्ज़ की राह
कुर्बान होने वाला
उसूलो पर मिटने वाला
लकीरों पर क्या डटता.............?
डटे उन्हें क्या मिला......?
भ्रम-भेद-भय वही से रिसा
ये रिसाव कही का नहीं छोड़ा
कराह-दर्द-आंसू भी ,
भेद की तलवार पर तौला
भ्रम-भेद से बंटवारे का
भूकंप उठा
आदमी होने के सुख से दूर आदमी
भेद खूब फलाफूला
दोषी कौन
हो गयी शिनाख्त
अफ़सोस क्या मिला
मीठाजहर,सुलगता घाव मिला
छिन गया जीवन का सकून
लूट गयी हिस्से की तरक्की
शदियां बित गयी
बाकी है किरन उम्मीद की
भेद बुलाये, मन-भेद मिटायें प्यारे
मिल गए मन , मिट गए भेद सारे
बन गयी हर बिगड़ी बात
मिल जायेगा चैन
रूठी नीद होगी पास
खुल जाएगा बंद विकास का
द्वार हर कोई
इसके अतिरिक्त मेरी
चाहत नहीं और कोई...................नन्दलाल भारती/29.01.2012
ना हुआ कोई चमत्कार
ना थमी रार ना तकरार
कर्मयोगी,फ़र्ज़ की राह
कुर्बान होने वाला
उसूलो पर मिटने वाला
लकीरों पर क्या डटता.............?
डटे उन्हें क्या मिला......?
भ्रम-भेद-भय वही से रिसा
ये रिसाव कही का नहीं छोड़ा
कराह-दर्द-आंसू भी ,
भेद की तलवार पर तौला
भ्रम-भेद से बंटवारे का
भूकंप उठा
आदमी होने के सुख से दूर आदमी
भेद खूब फलाफूला
दोषी कौन
हो गयी शिनाख्त
अफ़सोस क्या मिला
मीठाजहर,सुलगता घाव मिला
छिन गया जीवन का सकून
लूट गयी हिस्से की तरक्की
शदियां बित गयी
बाकी है किरन उम्मीद की
भेद बुलाये, मन-भेद मिटायें प्यारे
मिल गए मन , मिट गए भेद सारे
बन गयी हर बिगड़ी बात
मिल जायेगा चैन
रूठी नीद होगी पास
खुल जाएगा बंद विकास का
द्वार हर कोई
इसके अतिरिक्त मेरी
चाहत नहीं और कोई...................नन्दलाल भारती/29.01.2012
Friday, January 27, 2012
भरोसा, क्यों,कैसे और किस पर...........
भरोसा, क्यों,कैसे और किस पर
दुनिया परायी,लोग बेगाने
डंसता गफलतों का दौर
दिल दहलता रंजिशों शोर......................
शरकन्डो का मकड़जाल
हाशिये के लोग तबाह
हाडफोड़ श्रम ,
जीने का जरिया जिनका
थमती नहीं कराह
वफ़ा मकसद गंगाजल जैसा
जिनका....................................
जीवन घर कर बैठा पतझर
क्यों,कैसे और किस पर करें
भरोसा
विकास ठहरा छाती पर
तन से झरता नीर झराझर.................
कैसे थमे भरोसा
नायक जब खलनायक बनते
थोंथा बखान करते
अब ना थकते..................
धोखा- छल की महल अटारी
डराती वैसे,जैसे बकरे को कटारी
सच बात कहू यारों
लोग अब अपने भी ठग लागे
कौन सी दुनिया में भागे.....................
भरोसे का होने लगा मर्दन
दहकता दर्द झुका देता गर्दन
यार जीवन पुष्प
सदकर्म सुगंध
भरोसा बना रहे
भले बढे मंद-मंद...........................
दुनिया और लोग तोड़ते हैं तो
तोड़ने दो भरोसा
हार क्यों मानना.......?
खुद और खुदा का भरोसा सच्चा
जीवन में इस भरोसे के सिवाय
और
कुछ नहीं बचा.................नन्दलाल भारती/28.01.2012
दुनिया परायी,लोग बेगाने
डंसता गफलतों का दौर
दिल दहलता रंजिशों शोर......................
शरकन्डो का मकड़जाल
हाशिये के लोग तबाह
हाडफोड़ श्रम ,
जीने का जरिया जिनका
थमती नहीं कराह
वफ़ा मकसद गंगाजल जैसा
जिनका....................................
जीवन घर कर बैठा पतझर
क्यों,कैसे और किस पर करें
भरोसा
विकास ठहरा छाती पर
तन से झरता नीर झराझर.................
कैसे थमे भरोसा
नायक जब खलनायक बनते
थोंथा बखान करते
अब ना थकते..................
धोखा- छल की महल अटारी
डराती वैसे,जैसे बकरे को कटारी
सच बात कहू यारों
लोग अब अपने भी ठग लागे
कौन सी दुनिया में भागे.....................
भरोसे का होने लगा मर्दन
दहकता दर्द झुका देता गर्दन
यार जीवन पुष्प
सदकर्म सुगंध
भरोसा बना रहे
भले बढे मंद-मंद...........................
दुनिया और लोग तोड़ते हैं तो
तोड़ने दो भरोसा
हार क्यों मानना.......?
खुद और खुदा का भरोसा सच्चा
जीवन में इस भरोसे के सिवाय
और
कुछ नहीं बचा.................नन्दलाल भारती/28.01.2012
Thursday, January 26, 2012
वसीयत कौन और कैसी............... ?
वसीयत कौन और कैसी............... ?
विरासत जब लूट गयी
पुरखों के श्रम से
सजी सोने की चिड़िया
अस्तिपंज़र समाये धरती
चली विरोध की हवा
अधिकारों का हुआ दमन
कब्जे से बेकब्जा
आदमी दोयम दर्जे हो गए
भूख,प्यास,संघर्ष से
रोपे थे खुली आँखों के
सपनों की पौध
वे भी रौंदे गए
कौन सुने निरापद की
ना विरासत बची कोई
ना वसीयत बनी कोई
नूर से बेनूर हुए
कैद नसीब के मालिक रह गए
आंसू, अभाव, दर्द के दलदल में फंसा
ढूढ़ लेता हूँ समय के साथ चलने
और
जीने की वजह कोई ना कोई
ये ज़िन्दगी
तुम्हारी दी गयी
सांस से
तुमसे शिकायत भी क्या
करू कोई........................नन्दलाल भारती 27.01.2012
विरासत जब लूट गयी
पुरखों के श्रम से
सजी सोने की चिड़िया
अस्तिपंज़र समाये धरती
चली विरोध की हवा
अधिकारों का हुआ दमन
कब्जे से बेकब्जा
आदमी दोयम दर्जे हो गए
भूख,प्यास,संघर्ष से
रोपे थे खुली आँखों के
सपनों की पौध
वे भी रौंदे गए
कौन सुने निरापद की
ना विरासत बची कोई
ना वसीयत बनी कोई
नूर से बेनूर हुए
कैद नसीब के मालिक रह गए
आंसू, अभाव, दर्द के दलदल में फंसा
ढूढ़ लेता हूँ समय के साथ चलने
और
जीने की वजह कोई ना कोई
ये ज़िन्दगी
तुम्हारी दी गयी
सांस से
तुमसे शिकायत भी क्या
करू कोई........................नन्दलाल भारती 27.01.2012
Wednesday, January 25, 2012
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
अपनो-परायों के बीच खांई
गैरो के घाव पर खार
डालने वाले
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
आँखों में धूल,
कमजोर के हको की लूट
जोड़-तोड़ की उगाही,
करने वाले
जाम की थाप पर
मचलने वाले
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
चाँदी की थाली, सोने के चम्मच से
खाने वाले को क्या होगा
भूख क्या होती है...?
क्या होता है
सूखी रोटी का सुस्वाद...?
नहीं आता जिनको
गरीब के दर्द पर बोलने
सद्भाना,अपनेपन के बोल प्यारे
बनावटी चेहरा
झूठी तारीफ के ढोल पीटने वाले
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
इच्छा अनंत जिनकी
शोषण,धोखा,भ्रष्टाचार
जिनका पेशा
पल-पल नव-नव चहरे
अरे मन में भूख की बाढ़ जिनके
परमार्थ-शांति क्या जाने
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
लोभी लोग गरीब,दबे- कुचलों का
भला कब चाहे
चाहे होते गरीब,
गरीबी की दलदल में न होता
जातिवाद का जहर न बरसता
भेदभाव की पौध रोपने वाले
मानवीय-असमानता की
पीड़ा क्या जाने
लोग ऐसे
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................नन्दलाल भारती/26.01.2012
मानवीय समानता,सदभावना,राष्ट्र के प्रति समर्पण और सद्प्यार रहे........
इन्ही आशाओ/आकांक्षाओ के साथ गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर
पर आप सभी मित्रो का हार्दिक अभिनन्दन............नन्दलाल भारती/26.01.2012
.....
गैरो के घाव पर खार
डालने वाले
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
आँखों में धूल,
कमजोर के हको की लूट
जोड़-तोड़ की उगाही,
करने वाले
जाम की थाप पर
मचलने वाले
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
चाँदी की थाली, सोने के चम्मच से
खाने वाले को क्या होगा
भूख क्या होती है...?
क्या होता है
सूखी रोटी का सुस्वाद...?
नहीं आता जिनको
गरीब के दर्द पर बोलने
सद्भाना,अपनेपन के बोल प्यारे
बनावटी चेहरा
झूठी तारीफ के ढोल पीटने वाले
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
इच्छा अनंत जिनकी
शोषण,धोखा,भ्रष्टाचार
जिनका पेशा
पल-पल नव-नव चहरे
अरे मन में भूख की बाढ़ जिनके
परमार्थ-शांति क्या जाने
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................
लोभी लोग गरीब,दबे- कुचलों का
भला कब चाहे
चाहे होते गरीब,
गरीबी की दलदल में न होता
जातिवाद का जहर न बरसता
भेदभाव की पौध रोपने वाले
मानवीय-असमानता की
पीड़ा क्या जाने
लोग ऐसे
ख़ुशी का अर्थ क्या जाने.................नन्दलाल भारती/26.01.2012
मानवीय समानता,सदभावना,राष्ट्र के प्रति समर्पण और सद्प्यार रहे........
इन्ही आशाओ/आकांक्षाओ के साथ गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर
पर आप सभी मित्रो का हार्दिक अभिनन्दन............नन्दलाल भारती/26.01.2012
.....
Tuesday, January 24, 2012
और उपाय है यारो..
उम्र का मधुमास लूटने वाले
अदने की अस्तिपंजर को
खुद की तरक्की का
औजार समझने वाले
क्या दे सकते है यारों....................
उम्मीद ही अदने की दौलत
फ़र्ज़ पर गिर-गिर कर उठना
तपस्या और मोहब्बत
दुःख खुदा का बर्दाश्त
हो जाता
आदमी का दिया दुःख
बहुत रुलाता है
लेकिन फ़र्ज़ का सिपाही
कहाँ भयभीत हुआ है
शरंदो sharando
जलौकाओ
और
दंवरुवाओ/dawanruwo के
आतंक से
यही है समर्पण उम्मीदों पर
विश्वास का अमृतरस
दर्द सहने,फ़र्ज़ पर टिके रहने की
देता है ताकत यारो.......................
शरंद sharand
जलौकाओ
और दंवरुवाdanwaruwa
क्या करेंगे.....................?
अजर स्वर्णिम निशान छोड़ने के
और उपाय है यारो.................नन्दलाल भारती 25.01.2012
ऐसा है ये खूनी खंजर
ओहदा दौलत या कोई
और
तूफान का गरजता हो
अभिमान
ऐसा है ये खूनी खंजर
अदने की करता नसीब कैद
आँखों को देता आंसू भयंकर
अभिमान का मान
अभिमानी का करता
कल बंजर.............
बह चले गर यही बल
देश-जनहित,दीन-वंचितों
शोषितों के उत्थान की राह
ऐसा बलशाली
काल के गाल अमर
भामाशाह उभर सकता...........
अफसोस हजार
अदनो को आंसू
जहां को
शिकारगाह समझने वाला
सद-मानव कहाँ बन सकता.........
ठीक है यारों
अभिमानी को बरसाती
नाला समझो
भले ही पार कर दे
सारी हदे.........
नाला कोई पवित्र नदी
नहीं हो सकता..............नन्द लाल भारती/25.01.2012
जमाना बेगाना है प्यारे.....
जमाना बेगाना है प्यारे
क्या दिया है...........?
क्या देगा प्यारे..........?
घाव दिया है
वही हिस्से हमारे तुम्हारे.................
सबर कीजिये
जिंदगी कट जाएगी
मायूसी में मत बिताइए
जिंदगी के अनमोल दिन.................
जिंदगी का पल-पल
नव-नव विहान है
सुहाने पल को शाम
मत बनाइये.........
ज़िन्दगी भोर है
उगते सूरज की तरह
आभा बिखरते रहिये..................
नन्द लाल भारती/ 24.01.2012
क्या दिया है...........?
क्या देगा प्यारे..........?
घाव दिया है
वही हिस्से हमारे तुम्हारे.................
सबर कीजिये
जिंदगी कट जाएगी
मायूसी में मत बिताइए
जिंदगी के अनमोल दिन.................
जिंदगी का पल-पल
नव-नव विहान है
सुहाने पल को शाम
मत बनाइये.........
ज़िन्दगी भोर है
उगते सूरज की तरह
आभा बिखरते रहिये..................
नन्द लाल भारती/ 24.01.2012
कामयाबी की चाहमें...
कामयाबी की चाहमें
जीवन का पल-पल
खर्च रहे है
साध पूरी नहीं हो रही है
प्यारे...........
जानते है हम
कामयाबी के रास्ते
टेढ़े-मेढे होते है
सारे..............
माँ-बाप की दुआओं
और
सद्कर्म के भरोसे
मिलती है
कामयाबी...............
मिलते ही कामयाबी
सीधे होने लगते है
टेढ़े-मेढे रास्ते सारे.....................नन्द लाल भारती/24.01-2012
जीवन का पल-पल
खर्च रहे है
साध पूरी नहीं हो रही है
प्यारे...........
जानते है हम
कामयाबी के रास्ते
टेढ़े-मेढे होते है
सारे..............
माँ-बाप की दुआओं
और
सद्कर्म के भरोसे
मिलती है
कामयाबी...............
मिलते ही कामयाबी
सीधे होने लगते है
टेढ़े-मेढे रास्ते सारे.....................नन्द लाल भारती/24.01-2012
हो नहीं सकता.....
नर का रूप ,
नारायण का प्रतिनिधि
वही आदमी
क्या से क्या हो गया,
होंठ पर नकली शहद
मन से जहरबो रहा
वो आदमी अपनापन
बो नहीं सकता .............
सिर काटे बाल की रक्षा
घात पर घात हैवान ऐसा
सच्चा आदमी हो सकता............
स्वहित में जीना-मरना-मारना
गैर का अहित और
खुद के मान का अभिमान
गैर के मान का
खून करने वाला
शरीफ तो हो नहीं सकता..........
जिस दिल में डाले हो डेरा
भेद, छल, प्रपंच, लोभ
शोषण-दोहन का भाव
ऐसे बंजर दिल में
समभाव पनप नहीं सकता..........
ओहदे का भय दौलत की हुंकार
कमजोर पर पनाग की फुफकार
ऐसा आदमी
बहुजन हिताय का काम
कर नहीं सकता..........
बो रहा हो जो
जाति-धर्म के आतंकी बीज
ऐसा आदमी मानवतावादी
हो नहीं सकता.....................
दिखावटी फूल हाथ में
बगल में रखता हो खंजर
आदमी ऐसा भरोसे का तो
हो नहीं सकता.......................नन्द लाल भारती/ 24.01.2012
नारायण का प्रतिनिधि
वही आदमी
क्या से क्या हो गया,
होंठ पर नकली शहद
मन से जहरबो रहा
वो आदमी अपनापन
बो नहीं सकता .............
सिर काटे बाल की रक्षा
घात पर घात हैवान ऐसा
सच्चा आदमी हो सकता............
स्वहित में जीना-मरना-मारना
गैर का अहित और
खुद के मान का अभिमान
गैर के मान का
खून करने वाला
शरीफ तो हो नहीं सकता..........
जिस दिल में डाले हो डेरा
भेद, छल, प्रपंच, लोभ
शोषण-दोहन का भाव
ऐसे बंजर दिल में
समभाव पनप नहीं सकता..........
ओहदे का भय दौलत की हुंकार
कमजोर पर पनाग की फुफकार
ऐसा आदमी
बहुजन हिताय का काम
कर नहीं सकता..........
बो रहा हो जो
जाति-धर्म के आतंकी बीज
ऐसा आदमी मानवतावादी
हो नहीं सकता.....................
दिखावटी फूल हाथ में
बगल में रखता हो खंजर
आदमी ऐसा भरोसे का तो
हो नहीं सकता.......................नन्
Sunday, January 22, 2012
कर्मयोगी हार नहीं सकता
कर्मयोगी हार नहीं मान सकता
हर हार के बाद खड़ा हो जाता है
जीत के लिए
कर्मयोगी हार नहीं मान सकता ............
भले ही दबंग
रुध्दिवादिता के पोषक
अहंकारी लोग करते रहे
हकों का अतिक्रमण
हस्ती मिटने का प्रयास भी
कर्मयोगी को कोइ
हरा नहीं सकता .....................
फर्ज पर कुर्बान होने वाला
सद्भावना-एकता -समता की राह
चलने वाला
कर्मयोगी कमजोर हो नहीं सकता
कर्मयोगी कभी हार नहीं सकता .............नन्द लाल भारती २२.01.2012
हर हार के बाद खड़ा हो जाता है
जीत के लिए
कर्मयोगी हार नहीं मान सकता ............
भले ही दबंग
रुध्दिवादिता के पोषक
अहंकारी लोग करते रहे
हकों का अतिक्रमण
हस्ती मिटने का प्रयास भी
कर्मयोगी को कोइ
हरा नहीं सकता .....................
फर्ज पर कुर्बान होने वाला
सद्भावना-एकता -समता की राह
चलने वाला
कर्मयोगी कमजोर हो नहीं सकता
कर्मयोगी कभी हार नहीं सकता .............नन्द लाल भारती २२.01.2012
Saturday, January 21, 2012
कद अजर है.....
पद - दौलत के लिए
जीवन का मधुमास हुआ
निछावर
संघर्षरत-तालीम
बदले अजस काँटों का
हार मिला...........
दबंगता-गफ्लते-
शाजिशों का खेल
कठिन श्रम हाय रे
साजिशें
सपनों को आकार ना मिला...............
मृत शैय्या पर उम्मीदे
धोखा शरंदो sharando का
डंसता
चिंता के बादल धमकाते
अभिलाषा रह जाएगी
अधूरी
पद-दौलत से बनी रही
दूरी
ऊजला कद
लेखनी ने की पूरी........
नहीं ठहरते पद दौलत अब
जग मान गया
पद उगले भले
कनक के ढेर गगनचुम्बी
लेकिन
कद की बराबरी
कर नहीं सकता
कद अजर है प्यारे
पद हो नहीं सकता....नन्दलाल भारती 21.01.2012
जीवन का मधुमास हुआ
निछावर
संघर्षरत-तालीम
बदले अजस काँटों का
हार मिला...........
दबंगता-गफ्लते-
शाजिशों का खेल
कठिन श्रम हाय रे
साजिशें
सपनों को आकार ना मिला...............
मृत शैय्या पर उम्मीदे
धोखा शरंदो sharando का
डंसता
चिंता के बादल धमकाते
अभिलाषा रह जाएगी
अधूरी
पद-दौलत से बनी रही
दूरी
ऊजला कद
लेखनी ने की पूरी........
नहीं ठहरते पद दौलत अब
जग मान गया
पद उगले भले
कनक के ढेर गगनचुम्बी
लेकिन
कद की बराबरी
कर नहीं सकता
कद अजर है प्यारे
पद हो नहीं सकता....नन्दलाल भारती 21.01.2012
Friday, January 20, 2012
आस
हाशिये के लोग
भूलने लगे
भूख और प्यास
खुद रोज-रोज
मर रहे
बस जीवित है
तो उनकी आस
और
खुद पर viswas....Nand Lal Bharati
भूलने लगे
भूख और प्यास
खुद रोज-रोज
मर रहे
बस जीवित है
तो उनकी आस
और
खुद पर viswas....Nand Lal Bharati
आँखों के पानी
आँखों के पानी
तन के रिसने की
अनसुनी हो गयी
कहानी...
खुली आँखे के
सपने
मारे जा रहे
बेख़ौफ़
शेष नहीं निशानी ...
हक़ कत्लेआम
तालीम का जनाजा
कैसे कहू यार
नहीं थंम रहा
नयनो की बाढ़ का
पानी.....नन्द लाल भारती ....१०.०१.२०१२
तन के रिसने की
अनसुनी हो गयी
कहानी...
खुली आँखे के
सपने
मारे जा रहे
बेख़ौफ़
शेष नहीं निशानी ...
हक़ कत्लेआम
तालीम का जनाजा
कैसे कहू यार
नहीं थंम रहा
नयनो की बाढ़ का
पानी.....नन्द लाल भारती ....१०.०१.२०१२
लूट गया हक़
लूट गया हक़
आज फिर
कंस के मंच पर
छा गया मेरी
महफिल में
मातम
उनकी महफ़िल में
टकराने लगे
जाम यारो ...
बेगुनाही का क्या
सबूत
कैद हुई
नसीब का मालिक
दिल पर घाव लिए
हजारो ...
मैं क्या ------?
यही दर्द ढ़ो रहे हैं
हाशिये के लोग
यही सुलगता
नसीब
हो गया है यारों ...........नन्द लाल भारती ..१०.०१.२०१२
आज फिर
कंस के मंच पर
छा गया मेरी
महफिल में
मातम
उनकी महफ़िल में
टकराने लगे
जाम यारो ...
बेगुनाही का क्या
सबूत
कैद हुई
नसीब का मालिक
दिल पर घाव लिए
हजारो ...
मैं क्या ------?
यही दर्द ढ़ो रहे हैं
हाशिये के लोग
यही सुलगता
नसीब
हो गया है यारों ...........नन्द लाल भारती ..१०.०१.२०१२
बाट
बाट जोह -जोह मर रहे
लोग शादियों से
लोग हमारे ...............
ना बही विकास कि गंगा
ना हुआ कुएं का पानी
पवित्र आज भी राजदुलारे ....
सुलगता दिल प्यासी अंखिया
पेट के भूख कि ना फिकर
असमानता का दर्द
धिक्कारे .............
जाति-धर्म का कैसा रार
ये विष-बीज बोये तकरार
मानव-मानव एक समान
आओ कसम खाए
बोएगे समता सद्भावना के ,
अमृत बीज
शादियों से शोषित उत्पीडित
चहक उठे लोग हमारे ........नन्द लाल भारती ..११.०१.२०१२
लोग शादियों से
लोग हमारे ...............
ना बही विकास कि गंगा
ना हुआ कुएं का पानी
पवित्र आज भी राजदुलारे ....
सुलगता दिल प्यासी अंखिया
पेट के भूख कि ना फिकर
असमानता का दर्द
धिक्कारे .............
जाति-धर्म का कैसा रार
ये विष-बीज बोये तकरार
मानव-मानव एक समान
आओ कसम खाए
बोएगे समता सद्भावना के ,
अमृत बीज
शादियों से शोषित उत्पीडित
चहक उठे लोग हमारे ........नन्द लाल भारती ..११.०१.२०१२
ख्वाहिशें
कल जो तलवार चली थी
खंड-खंड हो गयी
ख्वाहिशें
तालीम को दी गयी
खुलेआम ढाठी
आँखों से निकले थे
लहू के फव्वारे
अफ़सोस अरमान के
कातिलो
ना बेमौत मारा प्रहार से
आत्महत्या नहीं किया
और
ना ऐसा कोई इरादा है
जिंदा हूँ ,
कल से उम्मीद ,
खुद पर विश्वाश के
सहारे ............नन्द लाल भारती .११.०१.२०१२
खंड-खंड हो गयी
ख्वाहिशें
तालीम को दी गयी
खुलेआम ढाठी
आँखों से निकले थे
लहू के फव्वारे
अफ़सोस अरमान के
कातिलो
ना बेमौत मारा प्रहार से
आत्महत्या नहीं किया
और
ना ऐसा कोई इरादा है
जिंदा हूँ ,
कल से उम्मीद ,
खुद पर विश्वाश के
सहारे ............नन्द लाल भारती .११.०१.२०१२
प्रार्थना
आज सुबह मैंने की है
प्रार्थना
खैर नई बात नहीं
आराधना
मैं तो मौन था
मस्तिष्क में चलचित्र था
कल का
दिल के रीलें
चल रही थी लगातार
बड़ी मुश्किल से दोनों को
जोड़ा
और कर भी
फिर शुरू हुई प्रार्थना
खुदा,गाड,वाहे गुरु
बुध्दम शरणम गच्छामि
जय महावीर यानि बस
प्रार्थना ही प्रार्थना .......
भूखों के रोटी के लिए
भूमिहीनो को खेती के लिए
निराश्रितों के आसरा के लिए
मानवता-समता,राष्ट्रहित
और सर्व कल्याण के लिए
आराधना
खुद के लिए कुछ नहीं
देखना है
कब होती है कबूल
प्रार्थना .........नन्द लाल भारती ..१२.०१.२०१२
प्रार्थना
खैर नई बात नहीं
आराधना
मैं तो मौन था
मस्तिष्क में चलचित्र था
कल का
दिल के रीलें
चल रही थी लगातार
बड़ी मुश्किल से दोनों को
जोड़ा
और कर भी
फिर शुरू हुई प्रार्थना
खुदा,गाड,वाहे गुरु
बुध्दम शरणम गच्छामि
जय महावीर यानि बस
प्रार्थना ही प्रार्थना .......
भूखों के रोटी के लिए
भूमिहीनो को खेती के लिए
निराश्रितों के आसरा के लिए
मानवता-समता,राष्ट्रहित
और सर्व कल्याण के लिए
आराधना
खुद के लिए कुछ नहीं
देखना है
कब होती है कबूल
प्रार्थना .........नन्द लाल भारती ..१२.०१.२०१२
कल मैंने सुना था
कल मैंने सुना था
एक आदमी को कहते
मैं आदमी हूँ
अफ़सोस पहचान मेरी
आदमी नहीं
जाति-धर्म हो गया है
यह महाठगिनी
तुकडे-तुकडे बाँट चुकी है
आदमी और
खंडित हो चूका है
देश भी
आँख मसलते हुए
वह चिल्लाया
अरे अब तो चेतो
मानव और राष्ट्र धर्म के लिए
मैं निहाल हो गया सुन
अदने आदमी के विचार
आओ एक बार हम सभी
इस मसले पर क्यों ना
करे मन से विचार ....नन्द लाल भारती १२.०१.२०१२
एक आदमी को कहते
मैं आदमी हूँ
अफ़सोस पहचान मेरी
आदमी नहीं
जाति-धर्म हो गया है
यह महाठगिनी
तुकडे-तुकडे बाँट चुकी है
आदमी और
खंडित हो चूका है
देश भी
आँख मसलते हुए
वह चिल्लाया
अरे अब तो चेतो
मानव और राष्ट्र धर्म के लिए
मैं निहाल हो गया सुन
अदने आदमी के विचार
आओ एक बार हम सभी
इस मसले पर क्यों ना
करे मन से विचार ....नन्द लाल भारती १२.०१.२०१२
हाशिये के आदमी का जीवन
हाशिये के आदमी का जीवन
हो गया है
कटी पतंग जैसा ,
कैसे-कैसे लोग
तरक्की के पहाड़
चढ़ रहे ,
दौलत के मीनार
रच रहे
हाशिये का आदमी
पसीना बहता
रोटी आंसू से गीला करता
उपेक्षित जस का तस
तरक्की से दूर फेंका
बाट जोह रहा
देखो दगाबाजो को
दिन दुनी रात चौगुनी
तरक्की कर रहे
देशी रकम से विदेश पाट रहे
हाशिये के आदमी की
उम्मीदों का खून कर रहे
अरे हाशिये के लोगो
अब तो कर दो ललकार
शादियों से क्यों
टुकुर-टुकुर ताक रहे ..नन्द लाल भारती १३.०१.२०१२
हो गया है
कटी पतंग जैसा ,
कैसे-कैसे लोग
तरक्की के पहाड़
चढ़ रहे ,
दौलत के मीनार
रच रहे
हाशिये का आदमी
पसीना बहता
रोटी आंसू से गीला करता
उपेक्षित जस का तस
तरक्की से दूर फेंका
बाट जोह रहा
देखो दगाबाजो को
दिन दुनी रात चौगुनी
तरक्की कर रहे
देशी रकम से विदेश पाट रहे
हाशिये के आदमी की
उम्मीदों का खून कर रहे
अरे हाशिये के लोगो
अब तो कर दो ललकार
शादियों से क्यों
टुकुर-टुकुर ताक रहे ..नन्द लाल भारती १३.०१.२०१२
भ्रमकांड
खूब चले भ्रमकांड
शरंड जलौका के कर
मारते रहे सपने
खुद चढते रहे शिखर .
अदने करते रहे
जीने के अभ्यास
सींचते रहे सपने
रेंग-रेंग कर .
शरंड के विष बाण
जलौका का मीठा जहर
कमजोर के नसीब पर
बरसाते रहे कहर .
लूटी नसीब अदने होते गए
बेनूर और तरक्की से भी दूर
फिर क्या चली ऐसी हवा
शरंड और जलौका के खिलाफ
ना कर सका कोई बाल बांका
ये भ्रम कांड खूब रुलाया
अदानो का ध्यान
चींटियों कि ओर गया
अब क्या अदने भी
टूट पड़े
छीन लिए अपना हक़
शरंड और जलौका के जबड़े से
जो था सदियों से दूर .......नन्द लाल भारती ...१४.०१.२०१२
शरंड जलौका के कर
मारते रहे सपने
खुद चढते रहे शिखर .
अदने करते रहे
जीने के अभ्यास
सींचते रहे सपने
रेंग-रेंग कर .
शरंड के विष बाण
जलौका का मीठा जहर
कमजोर के नसीब पर
बरसाते रहे कहर .
लूटी नसीब अदने होते गए
बेनूर और तरक्की से भी दूर
फिर क्या चली ऐसी हवा
शरंड और जलौका के खिलाफ
ना कर सका कोई बाल बांका
ये भ्रम कांड खूब रुलाया
अदानो का ध्यान
चींटियों कि ओर गया
अब क्या अदने भी
टूट पड़े
छीन लिए अपना हक़
शरंड और जलौका के जबड़े से
जो था सदियों से दूर .......नन्द लाल भारती ...१४.०१.२०१२
डन्वरूआ
दन्वरूआ/danwarooaa की चाकचौबंद
पहरेदारी के बीच से
निकाल लाया था कश्ती
संघर्ष और तालीम की
पतवार के सहारे......
किनारे लगती कश्ती
संघर्ष और तालीम यौवन पाते
उसके पहले दन्वरुऊआ /danwarooaa के
योध्दाओं ने
बोल दिया हमला
कश्ती तार-तार हो गयी
लहुलुहान हुआ मैं भी
कश्ती डूब रही है
और मैं सवार हूँ
सद्कर्म पर विश्वाश के सहारे
क्योंकि संघर्ष और तालीम के
प्रारब्ध
दन्वरूआ /danwarooaa
ख़त्म नहीं कर सकते
हमारे .............नन्द लाल भारती १६.०१.२०१२
पहरेदारी के बीच से
निकाल लाया था कश्ती
संघर्ष और तालीम की
पतवार के सहारे......
किनारे लगती कश्ती
संघर्ष और तालीम यौवन पाते
उसके पहले दन्वरुऊआ /danwarooaa के
योध्दाओं ने
बोल दिया हमला
कश्ती तार-तार हो गयी
लहुलुहान हुआ मैं भी
कश्ती डूब रही है
और मैं सवार हूँ
सद्कर्म पर विश्वाश के सहारे
क्योंकि संघर्ष और तालीम के
प्रारब्ध
दन्वरूआ /danwarooaa
ख़त्म नहीं कर सकते
हमारे .............नन्द लाल भारती १६.०१.२०१२
वक्त की करवट
वक्त की करवटों ने बदल डाली है
इंसान कि तस्वीर कितनी
पिछली से मेल खाती नहीं
आज की तस्वीर अपनी ................
आदमी है कि पद-दौलत
उंच-नीच-अमीर-गरीब की
गांठे बांधे पड़ा है ,
और
अभिमान की तलवार पर खड़ा है
खुद को कहता बड़ा है ........
लहूलुहान कर छाती पर चढ़
आगे निकालने में लगा है
अंधी दौड़ का हथियार
जातिवाद-धर्मवाद-क्षेत्रवाद-भाई-भतीजावाद
बना लिया है .
इन सब के बाद भी वक्त को
धोखा कहा दे पाया है कि आज दे पायेगा ...
एक दिन सारे हथियार फेल हो जाते है
उम्र भी साथ छोड़ने को आतुर हो जाती है
गुमानी चारो-खाना चित हो जाता है
शरंड,जलौका सभी अभिमानी
गिड़ गिडाते है
आंसू बहाते है
गुनाह,अपराध करनी पर अपनी
चेतो खुदा के बन्दे है
भले ही बूढ़ी हो जाए सूरत अपनी
वक्त के गाल पर उजली तस्वीर
टँगी रहे अपनी.................नन्द लाल भारती .. १७.०१.2012
इंसान कि तस्वीर कितनी
पिछली से मेल खाती नहीं
आज की तस्वीर अपनी ................
आदमी है कि पद-दौलत
उंच-नीच-अमीर-गरीब की
गांठे बांधे पड़ा है ,
और
अभिमान की तलवार पर खड़ा है
खुद को कहता बड़ा है ........
लहूलुहान कर छाती पर चढ़
आगे निकालने में लगा है
अंधी दौड़ का हथियार
जातिवाद-धर्मवाद-क्षेत्रवाद-भा
बना लिया है .
इन सब के बाद भी वक्त को
धोखा कहा दे पाया है कि आज दे पायेगा ...
एक दिन सारे हथियार फेल हो जाते है
उम्र भी साथ छोड़ने को आतुर हो जाती है
गुमानी चारो-खाना चित हो जाता है
शरंड,जलौका सभी अभिमानी
गिड़ गिडाते है
आंसू बहाते है
गुनाह,अपराध करनी पर अपनी
चेतो खुदा के बन्दे है
भले ही बूढ़ी हो जाए सूरत अपनी
वक्त के गाल पर उजली तस्वीर
टँगी रहे अपनी.................नन्द लाल भारती .. १७.०१.2012
बदल गयी नियति
बदल गयी है नियति
आज के आदमी की
गैर के सुख को देख
दुखी होने लगे हैं
लोग ...............
वो बुध्द थे वो महावीर
आदमी के दुःख से
कितने दुखी हुए थे
निकल पड़े थे
दुनिया के सुख के लिए
दुःख दर्द में खुशियाँ
कांटने वाले वंशज
और
कहाँ गए वे लोग ..............
दर्द का रिश्ता होता है
सबसे बड़ा
आज जख्म को खुरच कर
दर्द उभारने में
लगे हैं स्वार्थी लोग ..............
चेहरा बदलते
स्वार्थ की भूख पर करेगे
काबू
जब संतोष को धन
मानेगे
दर्द का रिश्ता सवारेगे
चौखट से दूर नहीं
भागेगा लोभ
काल के गाल पर
अमर हो जायेगे
पर-पीड़ा में हाथ
बढ़ाते लोग .................नन्द लाल भारती ......१९.०१.२०१२
आज के आदमी की
गैर के सुख को देख
दुखी होने लगे हैं
लोग ...............
वो बुध्द थे वो महावीर
आदमी के दुःख से
कितने दुखी हुए थे
निकल पड़े थे
दुनिया के सुख के लिए
दुःख दर्द में खुशियाँ
कांटने वाले वंशज
और
कहाँ गए वे लोग ..............
दर्द का रिश्ता होता है
सबसे बड़ा
आज जख्म को खुरच कर
दर्द उभारने में
लगे हैं स्वार्थी लोग ..............
चेहरा बदलते
स्वार्थ की भूख पर करेगे
काबू
जब संतोष को धन
मानेगे
दर्द का रिश्ता सवारेगे
चौखट से दूर नहीं
भागेगा लोभ
काल के गाल पर
अमर हो जायेगे
पर-पीड़ा में हाथ
बढ़ाते लोग .................नन्द लाल भारती ......१९.०१.२०१२
बेटी
बेटियों से मत जोड़ो अब
रुढ़िवादी धारणाये
सोच बदल डालो
मिलेगा सकून
धुल जाएगी मेल
एहसास प्रसून सा
देखना......
बेटी जहां की सांस
समझना
बढ़ रही है
क्यों रोकना
बेटी की उड़ान में
स्व-मान देखना...........
भ्रूण हत्या-भेदभाव
दहेज़ दूसरी
और
महामारियों को प्यारे
महापाप समझना
बेटी में शशि ,सूर्य कि ताकत
धरती का उपहार देखना ........नन्द लाल भारती .....२०.०१.२०१२
रुढ़िवादी धारणाये
सोच बदल डालो
मिलेगा सकून
धुल जाएगी मेल
एहसास प्रसून सा
देखना......
बेटी जहां की सांस
समझना
बढ़ रही है
क्यों रोकना
बेटी की उड़ान में
स्व-मान देखना...........
भ्रूण हत्या-भेदभाव
दहेज़ दूसरी
और
महामारियों को प्यारे
महापाप समझना
बेटी में शशि ,सूर्य कि ताकत
धरती का उपहार देखना ........नन्द लाल भारती .....२०.०१.२०१२
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