Saturday, March 31, 2012

बेचारी,दीनता के पार जाना

ठहरे लूटी किस्मत के मालिक
देख रहा जमाना
कैसी-कैसी बयानबाजी
आदमी एक चेहरा हजार
मुश्किल पहचान पाना
साजिशों के चूल्हे गरम
शरंड़ो की दुनिया, घाव पर घाव
निशाने पर अदना हरदम
नजर और नियति का दोष
अदने का सजता जनाज़ा
कैसे संभलेगा
अभिशापित आदमी
जिसे छलता रहा
चेहरा बदल -बदल कर जमाना
बहुत हुआ खड़ा हो जाने दो
बंद करो खोदना कब्रें
अदने आदमी को भी है
बेचारी,दीनता के पार जाना ......नन्द लाल भारती ३१.०३.२०१२

Friday, March 30, 2012

बनो और बनने दो

मधुमास उम्र और खुली आँखों के
सपने भी पतझर बनाये गए
ना खता ना गुनाह कोई
ना योग्यता ना तालीम में
खामी कोई
फ़र्ज़ पर फना होने को
तत्पर निरंतर
बस कमी एक हाशिये के लोग
माने गए
लोग ऐसे श्रम की मंदी में
बेधड़क रौंदे गए
पद-दलित ,श्रम और उम्र झराझर
नाम के साथ बद जोड़ा गया
वफ़ा ,त्याग,लहूलुहान हो गया
तालीम,योग्यता,समर्पण के
नूर बेनूर कर दिए गए
उम्र और सपने पतझर के विरान
श्रम और सत्य परेशान
मन आहत पर हार कहाँ
जीवन का ध्येय कर्म पूजा
हाशिये के आदमी को
नीचे रखने का षणयंत्र
निरंतर ....
वाह क्या कर्म और सच्चा श्रम
स्वर्णिम आभा
जहां का माली कद मंद-मंद
सरसता बनो और बनने दो का
गीत गाता बच गया..............नन्द लाल भारती ३१.०३.२०१२

Tuesday, March 27, 2012

वफ़ा को मैंने नसीब माना ...

वफ़ा को मैंने नसीब माना
क्या मिला....?
रोम-रोम डर जाते है
ऐसा उठा तूफ़ान कि ,
सब राख कर डाला
खता क्या थी समझ ना पाया
बस जिद या जनून
वफ़ा की राह चलने की
हाल -बेहाल नज़र आता है
ज़िंदगी जहर है तो पीना है
कर रहा बसर डूब कर चाह में
रह गया बंद गली का आदमी
आदमी ऐसा दर्द का जहर दे डाला
ना जाने कौन सी खता हुई
जहां में तकदीर लूटी
तस्वीर टूट गयी
मसकत भरे दिन आह भरी रातें
आदमी ,आदमी ना माना
कर्म को ईश आराधना माना
वफ़ा को मैंने नसीब माना
प्यारे जहां में ऐसा उठा तूफ़ान कि
सब राख कर डाला .......नन्द लाल भारती २८.०३.२०१२

केरला के प्रति कृतज्ञता

केरला के प्रति कृतज्ञता ................
केरला आकर लगा
मैं माँ की गोद में आ गया
सच भी तो है
ऐसा ही है केरला
हरा-भरा- विकास
सकूं के फलो से लदा
मैं माँ की याद में खो गया
मुझे लगा मेरी माँ का
आँचल सर आ गया
मैं माँ की गोद आ गया .....
माता मातृभूमि और भाषा
ऎसी ही है
देती हैं उड़ने को आकाश
पनाह और हर लेती हैं कराह
मन पर बोझ था
केरला की धरती ने आँचल फैला दिया
ह्रदय पर बसंत दस्तक दे गया
मुझे लगा प्यारे
सच मैं माँ की गोद में आ गया .........
केरला के लोग अपने लगे
बन्धु-बांधव परिवार जन-नातेदार
यही मातृभूमि का प्यारे
मैं भाव विभोर हो गया
स्वर्ग के द्वार केरला आ गया
मैं माँ की गोद आ गया ................
केरला स्वर्गभूमि
जिसके दर्शन की अंखिया रहती प्यासी
सलाम केरलवासियो
तरक्की आपकी
स्वाभिमान बढ़ गया
हम सब एक हैं
भले हो बोलियाँ अनेक
स्वर्गभूमि केरला तुम्हे सलाम
वंदे मातरम का ह्रदय से
शंखनाद हो गया
मैं माँ की गोद आ गया.....नन्द लाल भारती १५.०३.2012

कवितायें

क्या कहू कहने को
शब्द कम पड़ जाते हैं
आपकी बदौलत प्यारे
मेरे अक्स रह जाते है
पराई दुनिया से
हम क्या पाते
आप हैं तो दुनिया है
आपकी नियामत
हम उम्र पाते हैं ...............नन्द लाल भारती ..२१.०३.२०१२
००००००००००००
ये बहार का आलम
जवाँ उम्र हमारी
बसंत नहीं चढ़ा फिजा में
दिल में तासीर हमारी
बाते हम सदा
सदाचार प्यारे
खुदा नहीं हम
उसी कि प्रतिनिधि है
ये जीवित तस्वीर हमारी ....नन्द लाल भारती २१.०३.२०१२
००००००००००००००
कहने को तो हम
खुद को माली कहते है
खुदा गवाह है
कितनो की जड़े
खोदते रहते हैं
ये मत भूलो
सजा से हम बंच जायेंगे
खुदा के घर देर है
अंधेर नहीं
सच कहते हैं ......नन्द लाल भारती .......२१.०३.२०१२
००००००००००००
ये महकती बहारे
बरसती रहे
हमारे जहां में
हम है फूल प्यारे
भले कांटे दुखाते हो
दिल हमारे
सुगंध हम में है
कांटे दर्द देते है सारे .......नन्द लाल भारती ॥ २१.०३.२०१२

जहां के तारे...............

अपने जहां की क्या बात करूँ
यहाँ तो दर दर की ठोकरें
पल- पल आंसू झरते है
कसम की कोई बात नहीं
दोयम दर्जे का आदमी कहते हैं
ख्वाहिशे यहाँ भी जन्म लेती है
ये जमाने की रीति है
गरीबो पूरी नहीं होती है
ये तो कर्म बीज बोते हैं
जहां पसीने से सींचते रहते है
रिरकती जहां के मालिक
ख्वाब जीते-मरते हैं
क्या भलमनस्त
जहां के तारे को
दोयम दर्जे का आदमी कहते हैं .............नन्दलाल भारती २७.०३.2012

Sunday, March 11, 2012

फ़र्ज़ पर कुर्बान..........

श्रम का अवमूल्यन हो रहा है
ईमानदारी,वफादारी और
समर्पण भाव पर
अंगुलिया उठती रहती है
वह जनता था तो बस
फ़र्ज़ पर मर मिटना......
थक हार कर जब वह
घर लौटता तो
साथ आती कई मुश्किलें
और चिंताएं भी
जो डराती रहती
और छीन लेती नींद भी
वह बैठ जाता गुनने-धुनने
परिणाम.....कर्मपूजा महान
और वह सब विसारकर
तैनात हो जाता फ़र्ज़ पर .......
उम्र के बसंत
खोते रहे वक्त की गर्त में
उसके हिस्से का आसमान
छिनता चला गया
अब वह जान गया था कि
भेद और शोषण भरे जहां में
नसीब कैद कर ली जाती है
फिर भी
वह चला जा रहा था
अपनी मस्ती में
फ़र्ज़ पर कुर्बान होने .....नन्दलाल भारती १२.०३.२०१२

Saturday, March 10, 2012

दौर बुरा .........

अंखिया ढूंढ-ढूँढ उजियारा
होने लगी है अब बूढ़ी,
चेहरा पर थकावट के बोझ
झुर्रीदार मोटे-मोटे निशान
हारे नहीं आज भी
झराझर श्रम,
खोज-खोज मुस्कान
अर्जक गढ़ रहा पहचान
शरंडो का शोर भयावह
मर्यादा सहमी-सहमी
दरिंदो का दौर बेशर्म
नहीं ममता-समता-सुरक्षा
भय-भेद-भ्रष्टाचार का
डराता मौन ऐलान
अपनी तो सिसकती सुबह
उदासी में दम भरती शाम
चेहरा बदलने में माहिर
आदमी डराता अविराम
सासत में आम-अदने-
आदमी की जान
साजिश का दौर बुरा
नहीं ठहरता इन्सानियत की
तुला पर अब इंसान ..............नन्दलाल भारती ११.०३.२०१२

Friday, March 9, 2012

चन्दन सा थम जाता है .,,,,,,,,,,,

अच्छा को बुरा साबित करना
दम्भियों की पुरानी आदत है ,
खूबियों में निकालकर कमियाँ
संघर्षरत नेक आदमी को
निगाहों में गिराया जाता है ,
थम जाए हौशले
मरते रहे सपने
मिट जाए कर्म की सुगंध
कर्मयोगी कहाँ गिरता
गिरकर खड़ा हो जाता है ,
ईमान की राह पर चलने वाला
हारता नहीं हराया जाता है ,
पीठ पीछे भोंकना खंजर
दो मुँहे आदमी की आदत
तभी तो सत्य तंग किया जाता है,
सत्य को झूठ साबित करने वाला
आदमियत का क़त्ल करने वाला
नर पिशाच यारो
नेकी का काम उसे नहीं भाता है ,
रचता चक्रव्यूह कर्मयोगी के खिलाफ
परन्तु कर्मयोगी
काल के गाल पर चन्दन सा
थम जाता है ......नन्दलाल bharati 10.03.2012

चन्दन सा थम जाता है .,,,,,,,,,,,

अच्छा को बुरा साबित करना
दम्भियों की पुरानी आदत है ,
खूबियों में निकालकर कमियाँ
संघर्षरत नेक आदमी को
निगाहों में गिराया जाता है ,
थम जाए हौशले
मरते रहे सपने
मिट जाए कर्म की सुगंध
कर्मयोगी कहाँ गिरता
गिरकर खड़ा हो जाता है ,
ईमान की राह पर चलने वाला
हारता नहीं हराया जाता है ,
पीठ पीछे भोंकना खंजर
दो मुँहे आदमी की आदत
तभी तो सत्य तंग किया जाता है,
सत्य को झूठ साबित करने वाला
आदमियत का क़त्ल करने वाला
नर पिशाच यारो
नेकी का काम उसे नहीं भाता है ,
रचता चक्रव्यूह कर्मयोगी के खिलाफ
परन्तु कर्मयोगी
काल के गाल पर चन्दन सा
थम जाता है ......नन्दलाल bharati 10.03.2012

Thursday, March 8, 2012

कल होली थी .......

कल होली थी रंग भी बरसे
बरसों पहले जैसे ना सरसे
सरसे भी कैसे वक्त कहा...
हेलो -हाय- बाय-बाय चलते-चलते
मिलावटी रंग कहीं तन बदरंग या
कोई जख्म ना दे दे का भय ..............
महंगाई और मिलावट के द्वन्द के बीच
होली सजी जली और मनी
कल ही होली बीती
आज निशान ढूढ़ना पड़ रहा है ..........
मिलावटी दिखावटी कहाँ ठहरेगा
महंगाई का असर दिखेगा
होली खुशियों का त्यौहार
सद्भावना,संस्कृति परंपरा बसंत बहार.....
बदलते वक्त में होली मनाने के
तरीकों पर करें विचार
चावल, कंकू, हल्दी या चन्दन का
तिलक लगाए
पानी पैसे की तरह ना बहाए .....
घर के बने व्यंजन
खिलाये और खाए
समभाव सद्भाव संग खुशियाँ मनाएं
त्यौहारों के असली अस्तित्व बचाए
भारतीयता के राह जाएँ ......नन्दलाल भारती ०९.०३.२०१२

Wednesday, March 7, 2012

बधाई हो कन्हाई.....

बसंत पंचमी, माँ भारती के
आराधना का दिन
इसी दिन फल फूल से लदा
रेड का पेड़ कट गया
काकी खूब गरियायी
ओरहना घर-घर दे आयी II
बच्चे इकट्ठा हो आये
काकी के कुंडी बजाये
काकी चिल्लाई
रेड के चोर आये
बच्चे खिलखिलाए और
जोर से चिल्लाए
काकी बुरा नो मानो होली आयी
काकी दांत लगाई आधे गाल मुस्काई
डंडा गाड़ने के जश्न में काकी
हंसी -खुशी आयी II
सजने लगा होली का डंडा
बच्चो ने खड़ा कर लिया पहाड़
नीम-बांस के पत्ते ,कंडे,पुआल,
रहतठा,लकड़ी का ,
होली के दिन पूरे गाँव की
हाजिरी में
होलिका दहन हुआ
लपटे दूर -के कई गांवो तक
देखी गयीं
लगा अहंकार भस्म हो गया II
खुशी में जश्न जमा
बांस की पिचकारी से निकला रंग
आकाश तक उड़ा
भर-भर मुट्ठी गुलाल गाल मले
गले मिले -मिलाये
गुड -बतासे मिठाई खिलाये -खाए II
बज उठे ढोल नगाड़े
शुरू हुआ होली के गीत संगीत
बिरहा,नांच गाने के संग
भंग -ठंडाई का दौर
जो देर रात तक चला
पूरा गाँव होली के जश्न में रहा डूबा II
वो भी क्या दिन थे
हाथ तंग और खुशिया भरपूर
मेहमान देवता
आज भी होली है
हाईटेक जमाना है
लेकिन समय कि कमी
ना मिलने-मिलाने का बहाना II
जोर आजमाईश की रस्सा-कसी
इसी बीच महंगाई का
उठ रहा धुंआ वैसे
भूंज गयी हो कुन्तलो आग में
लाल मिर्च जैसे
और
भर आयी हो आँखे II
आस्था-विश्वास रीती-रिवाज है
होली त्यौहार
कितनी क्यों ना हो महंगाई
उड़ता रहेगा गुलाल रंग
सोच-विचार में डूबा
इसी बीच गृह लक्ष्मी सजी -सजाई
थाली लेकर आयी
माथे गुलाल लगाई
बोली होली के
फिर क्या उठ गयी
गूज बधाई हो बधाई ......नन्द लाल भारती ०८.०३.२०१२

कसम उम्र भर .....

नहीं थमा जीवन सफ़र प्यारे
शरंडो के झरते जुल्म सारे
बचाता गया साबूत
सबका रखवाला
पर ढोने को मिला कमर तोड़
रिसता दर्द ,मशकत
मरते सपनों का बोझ
ज़माने का हर चौराहा
सूना लगा प्यारे ......
जहां चाह वहाँ राह
यही होता है विश्वास और
वंचित गरीब आदमी की थाती
मशकते बहुत चाह सकून
सहने को दर्द तड़पने को बेबस
झरता श्रमनीर झराझर
शरंडो की जोर अजमाईस का
मैदान मिलता
शोषितों की छाती
शरंडो की खूनी प्यास से
छलती रही शोषितों की चाह सारी......
शरंडो की सत्ता और
जोर अजमाईस से
शोषित कभी ना थे बेखबर
छ्ला जा रहा है उनका मंतव्य
बिछ रहे शूल राह निरंतर
कब तक जारी रहेगा सफ़र.................
शूल की सेज पर जीने को
शोषित हो रहा अभ्यस्त
यही नसीब बना दी गयी है
शोषित हाशिये के आदमी की
वह भी दृढप्रतिज्ञ
मंजिल की चाह में खा लिया है
चलते रहने की कसम उम्र भर ..............नन्दलाल भारती ०७.०३.२०१२

Monday, March 5, 2012

दुश्मन...........

ना जाने क्यूं कुछ लोग
दुश्मन मान बैठे हैं,
मेरा गुनाह है तो बस
मैं
देश, आम आदमी, शोषितों-वंचितों के
भले की बात कहता हूँ
यूहि दुश्मन मान लिया गया हूँ...
मेरी कब्र खोदे है,
बुराईयों के खिलाफत में उभरे
मेरे शब्द
रूक गयी मेरी तरक्की
लूट गया हक़ सरेआम
खुशियों पर खूब ओले पड़े
और पड रहे हैं
किन्तु जी बहलाने के लिए मिल गए है
कई उजले तमंगे ...........
सच तो ये है कि मैं और हमारे लोग
कभी विरोधी नहीं रहे
ना नेक आदमी का ना आदमियत का
ना राष्ट्र का ना राष्ट्रीय एकता
ना मानवीय समानता का
फिर भी
मैं और मेरे जैसे लोग
दूध में गिरी मक्खी की तरह
दूर फेंक दिए गए हैं ....
हाँ मैं समर्थक हूँ
जल -जी -जंगल और प्रकृति का
स्व-धर्मी समानता-नातेदारी का
आदमियत-सर्वधर्म सदभावना का
शोषितों-वंचितों के
सामाजिक-आर्थिक उत्थान का
और राष्ट्रधर्म का .......
मैं समझ गया हूँ
मेरी राह फूल तो नहीं
कांटे जरुर बिछेगे
मैं खुश हूँ अपने कर्म से
जो राष्ट्रद्रोह तो कतई नहीं
अन्याय,जातिवाद-धर्मवाद का
सरंक्षण भी नहीं .........
मेरी खुली आँखों के सपनों का
दहन तो हुआ है ,पर गम नहीं
क्योंकि सभी मुट्ठी बांधे आये हैं
हाथ फैलाये जाना है
बस देश ,प्रकृति और
हाशिये के आदमी के हित में ,
स्वर बुलंद करना है
भले ही कुछ निगाहों में
दुश्मन बना रहूँ ..........नन्द लाल भारती ०६.०३.२०१२

Sunday, March 4, 2012

अनवरत जारी है पुरुषार्थ ........

पुरुषार्थ और कौतुहल भरे
इन्तजार में
पांच दशक पुराना हो गया हूँ
उड़ान भरने और आकाश छूने की
ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी
भेद भरे जहां में आज तक .......
जहां दशको के पुरषार्थ को
आंसू और जख्म मिले है
अभी तक
पंख नोंच-नोंच उखड़े गए
आगे पीछे कुआं और
खाई खोदा गया
ताकि असमय अलविदा कह दू
ऐसा नहीं हो सका
बचाती रही कोई अदृश्य शक्ति .....
लालसा बढ़ती रही और पुरषार्थ भी
ऊँची उडाने भरने के लिए
गफलत और रंजिश के शोर
सपनों के क़त्ल की साजिश
सफल होती रही
शरन्ड़ो और जलौकाओ के
इशारे पर .........
हक़ को बेख़ौफ़ ढाठी
आँख फोड़ने हाथ काटने
रोटी छिनने की शाजिशे भरपूर हुई
हौशले की आक्सीजन पर
ख्वाहिशे कम नहीं हुई ...........
पुरषार्थ के दुश्मनों
शरन्ड़ो और जलौकाओ को
कहाँ पता ख्वाहिशे अंतरात्मा की
उपज होती है
विश्वाश है ख्वाहिशे होगी काबू
खुदा की अदालत में
एक दिन
क्योंकि आस्था के साथ
अनवरत जारी है पुरुषार्थ .........नन्दलाल भारती ..०४.०३.२०१२

Saturday, March 3, 2012

यहाँ बचता कुछ नहीं.......

प्यार कहे या सच्चा मदिरापान
ईमान,विश्वास और समर्पण का
जो मिलता किसी दुकान पर नहीं
नसीब कहे या
जन्म-जन्म का प्रारब्ध
बन जाता रोग ऐसा
जिसकी दवा कुछ नहीं...............
देव तुल्य है इंसान वो
जिसकी मन्नते हुई पूरी
रोशन हुआ जहां
मिला खुदा का परसाद
सच्चा प्यार
उसे किसी बला का भय नहीं..............
रार-ना तकरार,बरसे बहार
सर्वस्व समर्पण
तत्पर करने को हर सांस निछावर
मिल गया गंगाजल सा प्यार तो
और चाहिए क्या बस प्यार
कुछ नहीं यार .................
जानता प्यार की मदिरा में
डूबा दीवाना
रेत जैसे उड़ जाती ज़िंदगी
प्यार पाने आग का
दरिया पार करने में
खौफ नहीं खाता...........
भले मुट्ठी में आये कुछ नहीं
कामनाओ के कैनवास पर
मन चाहे रंग भर जाते
विरान जहां में स्वर्ग के सुख उतर आते
रंग बदलती दुनिया में और क्या चाहिए
कुछ भी नहीं
प्यार मदिरा में उतरा जो सच्चे मन
चाहता भी कुछ नहीं..............
मिल गया सच्च्चा प्यार
जीवन सफल,मन आँगन में
हरदम बसंत बहार
भूल गया दीवाना दर्द जहां का
बह चली खुशबू प्यार की
कबूल करो पैलगी हमारी
प्यारे बनो, प्यार बढ़ाओ
ज़िंदगी समय का रेत प्यारे
यहाँ बचता कुछ नहीं.................नन्दलाल भारती ०४.०३.०२०१२

Friday, March 2, 2012

टूटने लगी हैं आस्थाए.

टूटने लगी आस्थाएं
ढहने लगे विश्वास के ठीहे
उभरने लगे नित,दर्द नए-नए
मन बावरा खुद गुने,खुद सुने
रंग बदलती दुनिया में,कौन सुने.............
आस की सांस पर जीवन
होंठ जैसे सीले हैं प्यारे
खुले तो यातना-प्रताड़ना
उजड़ते नसीब हमारे
देख जहां की खोट
मन घबराए...........
जग जाने परमशक्ति के आगे
बौने हम कितने
कलुषित व्यवहार
लूट-खसोट,गफलत-रंजिश
रार-तकरार
विसर गया करतब
शेष विषैला मतलब..........
अंखिया ताके जोजन कोस
अनदेखी वैसी
जैसी भरी दोपहरी में ओस
भरते दम जैसे
पक्के मीत
हाय रे लोग परसते विष
राग-द्वेष,छल बल से
लूट रहे कल
आम-हाशिये के आदमी की
कौन हरे बाधाये
अब तो टूटने लगी हैं आस्थाए....नन्दलाल भारती/ ०३.०३.२०१२

Thursday, March 1, 2012

कैसा मिल रहा है घाव..........

हे विधना ये कैसा ....
मिल रहा है घाव
माँगा ना था जो कभी
क्या-क्या नहीं किया
ठगी नसीब सवारने के लिए
तन को गार दिया
जीवन की पूंजी ज्ञान और
तालीम का दान भरपूर
मन की खुली किताब से
मान
नसीब अपनी वही
ढाक के तीन पात;
जाति वंश की तुला पर
आँक कर घाव दिए
क्या यह अन्याय नहीं
विधना तू तो जनता है
असली गुनाहगार
कौन है....?
मैं गुनाहगारो से मिल रहे
घावों के दर्द से
हर पल कराहता रहता हूँ
आबरू पर कीचड़ उछाला जाता रहा है
हक़ से बेदखल किया जाता रहा हूँ
पद-दलित बनाये रखने के
चक्रव्यूह में फंसता रहा हूँ
दर्द और तंगी के दल-दल में
धंसता रहा हूँ
ऐसे छेदते दर्द में विधना
तनिक विस्मृत नहीं हुई तुम्हारी
याद
तुम्हे ही तो हाजिर-नजीर मान कर
पार कर लेता हूँ
आदमी द्वारा बिछाया हर
चक्रव्यूह और
हर अग्निपरीक्षा भी
यकीन है मुझे विधना
पद-दलित के अभिशाप से
मुक्त हो जाउंगा
मेरे साथ तुम बने रहोगे
और
मैं तुहारे
यही मेरे जीवन की जीत होगी.............नन्दलाल भारती....०२.०३.२०१२