Sunday, July 15, 2012

आस्था
भगवान को मैंने तो नहीं देखा है
ऐसा नहीं कि मैं नहीं मानता
भगवान्  को ,
मेरे पुरखो ने माना
मैं भी मानता हूँ
देखा नहीं है कभी मैंने
न तो हमारी खानदान में
किसी ने
हमने खोजा है भगवान्
अपने माँ-बाप में
यही आस्था है
यही भगवान्  के होने का सबूत भी
जहा आस्था है वही भगवान् है
जैसे मरकर भी माँ-बाप का आशीष बना रहता है
उनका एहसास बना रहता है
वैसे ही हैं भगवान्
हर जगह हमारे आसपास भी
आस्था ही तो है भगवान्
जैसे आस है तो जीवन है
वैसे ही आस्था है तो भगवान्
माँ-बाप के प्रति  बनी रहे आस्था
साकार रहेगे भगवान्
सच आस्थाही तो है भगवान् ..........नन्द लाल भारती १५.०७.२०१२

Tuesday, July 10, 2012

 नसीब

नसीब एक बहाना ठगने का
रुढीवादिता की खुराक
संतोष की सांस भी
अम्रित वचन
दर्द सहने  का  शाब्दिक उपचार
ठीक वैसे ही
जैसे
माँ बाप का सिर पर हाथ
या
किसी शुभ चिन्तक के मीठे बोल
यही है नसीब का तिलिसिम
जिससे मिलता है
आत्मसंतोष -सुख
जीवन में रंग भरने की उमंग
और
कर्मपथ पर चलते रहने की ताकत
जिसे हम मान बैठे हैं
नसीब ...................नन्द लाल भारती ११.०७.२०१२
 

Sunday, July 8, 2012

उजड़ी बस्ती का आदमी

उजड़ी हुई बस्तियों में
फिर
बेख़ौफ़ बहकने  लगी है
लपटें
मानवीय दर्द-अमानवीय दाह-कर्म
बार-बार की पुनरावृति से
सुलगते रहते है दर्द
और उठते रहते है सवाल
अपराधी कौन
दुर्भाग्य इंसानियत का
आतंक बूढ़ी व्यवस्था का
नहीं होता समाधान
तबाही रचती छूत-अछूत के अपराधियों की
सुनाती रहती दास्तान
कहा फर्क पड़ता है
छूत -अछूत की दुनिया में
कर्म-मानव धर्म -फ़र्ज़ कत्लेआम
बावरा दबा कुचला बेवस
विह्वल रचने को पहचान
करता रहता लाख कोशिश
दबे कुचले की घायल पहचान
जग बदला ना बदला बूढा विधान
ना थमती छूत-अछूत की लपटें
जारी नसीब की ठगे हक़ की डकैती
मानवता पर दाग भेदभाव
गढ़ देता छोटे लोग बड़े इल्जाम
शोषित के दिल में सुलगते दर्द
नयनो में बसते नव्य सपने
कैसा अन्याय ...?
विकास की धुरी शोषित
क्या मिला इस जग में
अछूत का दहकता दर्द
हाडफोड़ श्रम अछूत का जीवन संग्राम
छूट -अछूत की दुनिया
दर्द दहकता दर्द और  प्रलय प्रवाह
पग-पग पर अगिन परीक्षा
कर दिया जाता फेल बार-बार
हे छूट -अछूत दुनिया के रखवालो
उजड़ी बस्ती का आदमी
कैसे कहे आभार ...........नन्दलाल भारती /०८.०७.२०१२