Thursday, January 24, 2013

ख्वाहिशें .................

ख्वाहिशें
आदमियत की ख्वाहिशे कई दिलों में
जीवित है आज भी ,
बंदिशों में जकड़े आहात है
धर्म जाति की कैद में  लोग
कराह रहे है
हरे-हरे घाव लिए .....
आदमी होने के सुख से
बेदखल दोयम दर्जे के
आदमी भर रह गए है ........
दुर्भाग्य नहीं साजिश है ये
सत्ता की चाह में आदमी का
आदमी के खिलाफ ,
खैर अपनी जहां में
खुद को बनने का कहाँ
अधिकार प्राप्त है ..........
पहले धर्म की फिर जाति की
गला-तपाकर उंच-नीच
 इतना ही नहीं
दैवीय विधान के खिलाफ़
अछूत तक बना दिया जाता है
पीढी दर पीढी गरीब ,भूमिहीन
आँखों में आंसू लिए
संघर्षरत रहने के लिए ...............
आखिरकार दोषी कौन है
यकीनन धर्म के नाम पर
आदमियत के खिलाफ चक्रव्यूह रच रखे
धार्मिक सत्ताधीश बन बैठे लोग ........
चक्रव्यूह ना टूटे
उंच-नीच के चक्रव्यूह में उलझे रहे आदमी
आदमी के सुख से वंचित होकर भी
जाति के अहंकार में तर -बतर
जय-जयकार करता रहे आदमी
यही तो साजिश है
 धर्म-जाति के  सत्ताधीशो की .......
हे आदमियत की ख्वाहिशे रखने वालो
पहचानो धर्मान्धता-रुढिवादिता में
भगवान् कहाँ ......?
खुद में तलाशे जाति -उपजाति की सरहदे तोड़कर
मातृभूमि को धरती का स्वर्ग बनाये
भेदभाव त्यागकर आदमियत के
ईश्वरीय परमानन्द प्राप्त करे
ख्वाहिशे होगे पूरी
समता-सद्भावना और राष्ट्रधर्म की ललकार करे .............डाँ .नन्द लाल भारती 24.01.2013

Sunday, January 13, 2013

आगे आओ तुम ................

आगे आओ तुम ................
मत पाकर मतवाले हो गए 
हम पाषाणों को मसीहा मान गए
उम्मीदों की गठरी भारी बाँध  ली
रहनुमाई करेगे वो
लोकतंत्र के पहरेदार वो
नामे ढो  रहे जो ...........
मसीहा बने रहने की ढोल पीट-पीट
आग बो रहे है वो
महंगाई अत्याचार,भ्रष्टाचार ,जातिवाद
बलात्कार भले  घोंट दे दम
नहीं फूलता कभी उनका दम ...............
बस इतना करते है
आम आदमी के लहू -पसीने से
संरक्षित किले से बाहर निकलते है
बयान देते है .............
अगले बयान तक किले में  रहते है
बयान भले उनका कर दे
मर्यादा का चीरहरण .............
फर्क नहीं पड़ता कोइ उन पर
वे और उनके लोग
सुरक्षित किले में बने रहते है
फर्क पड़ता तो उनका भी लहू
खौल उठता  ......................
सर कलम होने ,शहीद के शव में
भरने की सच्चाई पर
कूद पड़ते जंग में .........
पर नहीं कुसी पर बने रहना
उनको आता है
स्विश  बैंक स्व-हित उनको भाता है
नवजवानो कमान थामो तुम
देश को जरुरत है तिम्हारी
राष्ट्रहित-जनहित में आगे आओ तुम ..........डाँ नन्द लाल भारती 13.01.2013

Friday, January 11, 2013

मंजिले और भी है ..............

ऐ सर नावाने वालो सोचो जरा
जय -जयकार किसकी क्यों कर रहे हो
शान में किसकी स्व-मान गँवा रहे हो-------
यहाँ कहा होगी दुआ कबूल तुम्हारी
चौखट ऐसी जहां गैर के हक़ के,
 लूट की मारामारी  ........
सर नवाने की जिद है क्यों ठानी
अमानत भी ना रह पायेगी
महफूज तुम्हारी ...........
सर नवाने की कसम खा ली है
तुमने अगर
भगवान ,गॉड ,खुदा की दर पर
दस्तक दिया कर .......
वही ठाँव एक जहां होगी
दुआ कबूल तुम्हारी ......
मन हो साफ़ उद्देश्य हो नेक तुम्हारा
जीवन,आदमी ,चरित्र ,राष्ट्र और
जगत निर्माण तुम्हारा ...
कर्म में न हो खोट तुम्हारी
न करना कभी देश और गरीब की
हिय पर चोट दुधारी ....
चेहरा बदल-बदल कर डंसने वालो की
चौखट पर माथा से जीवन हुआ तबाह
ना मिली मंजिले
ऐसा लेले कसम जगत प्यारे
सद्कर्म-फ़र्ज़-आदमियत हो
बसी जेहन तुम्हांरे ........
इमान की गठरी मज़बूत हो सिर तुम्हारे
व्यवहार में बसी रहे
जीओ और जीने दो की बयार
धन का भले ना जोड़ सको पहाड़
तुम्हारे नाम वक्त के आरपार
बरसता रहेगा प्यार ......
ऐ सर नवाने वालो सोचो जरा
शान में किसकी सर नवा रहे हो
जान जाओ पहचान जाओ तुम
ऐ सर नावाने वालो सोचो जरा
जय -जयकार किसकी क्यों कर रहे हो
शान में किसकी स्व-मान गँवा रहे हो-------
यहाँ कहा होगी दुआ कबूल तुम्हारी
चौखट ऐसी जहां गैर के हक़ के,
 लूट की मारामारी  ........
सर नवाने की जिद है क्यों ठानी
अमानत भी ना रह पायेगी
महफूज तुम्हारी ...........
सर नवाने की कसम खा ली है
तुमने अगर
भगवान ,गॉड ,खुदा की दर पर
दस्तक दिया कर .......
वही ठाँव एक जहां होगी
दुआ कबूल तुम्हारी ......
मन हो साफ़ उद्देश्य हो नेक तुम्हारा
जीवन,आदमी ,चरित्र ,राष्ट्र और
जगत निर्माण तुम्हारा ...
कर्म में न हो खोट तुम्हारी
न करना कभी देश और गरीब की
हिय पर चोट दुधारी ....
चेहरा बदल-बदल कर डंसने वालो की
चौखट पर माथा से जीवन हुआ तबाह
ना मिली मंजिले
ऐसा लेले कसम जगत प्यारे
सद्कर्म-फ़र्ज़-आदमियत हो
बसी जेहन तुम्हांरे ........
इमान की गठरी मज़बूत हो सिर तुम्हारे
व्यवहार में बसी रहे
जीओ और जीने दो की बयार
धन का भले ना जोड़ सको पहाड़
तुम्हारे नाम वक्त के आरपार
बरसता रहेगा प्यार ......
ऐ सर नवाने वालो सोचो जरा
शान में किसकी सर नवा रहे हो
जान जाओ पहचान जाओ तुम
मंजिले और भी है
सद्कर्म की राह पर निकल पड़ो  तुम--------------डाँ नन्द लाल भारती ....12.01.2013