Monday, April 29, 2013

ये वफ़ा के राही


ये वफ़ा के राही
अपनी धुन में चलते जाना
मुश्किल है डगर
मगर
निशान है छूटते जाना
तुम न रहोगे
दुनिया रहेगी
भले हो दुनिया पराई
इंसानियत के पुजारी
तुम्हे ना भूल पायेगे 
 ये वफ़ा के राही
तुम अपनी धुन में
औरो के लिए जीए जाना
वक्त की उड़ती रेत  पर
तुम्हारा होगा ठिकाना ...डॉ  नन्द लाल भारती 30 .04 .2 0 13    

अपयश/कविता

अपयश/कविता 
दिल की बगिया में बोये सपने
धुधली निगाहों में बसे रह गए
काश हकीकत में होते कुसुमित
सपनों के सौदागर
खंजर भांजते चले गए
पसीने की सुगंध साथ थी जो
पहचान गढ़ती रही वो
अपनो की भीड़ में पराये हो गए
नसीब के दुश्मन
जाति -धर्म  के चक्रव्यूह
बिछाते रह गए
सपने मरे बेमौत कर्मफल लूटा
कर्म की जिद थी कमेरी दुनिया के आदमी की
धुधली निगाहों में सपने बचे रह गए
ढोंग के पुजारी नसीब के माथे
अपयश मढ़ते रह गए ......डॉ नन्द लाल भारती 30.4 .2013      

Saturday, April 20, 2013

अपना हक़ मांग लो ...

अपना हक़ मांग लो ...


आहे भरी-भरी, श्रम झराझर
उम्मीदों के बसंत हरे-भरे
शोषित आदमी के मुकदर पर
दुश्मनों के तेग खींचे-खींचे ,
हौशले के आगे
तेग के बेग तनिक डरे-डरे |
बदले युग में भी भेदभाव भारी
उत्पीडन शोषण सीनाजोरी |
तांडव है बेख़ौफ़ जारी 
तेज कटारी  चेहरा बदले
साजिशों का खेल ,सदियों से  जारी
अछूत  को अछूत,गरीब को गरीब
बनाने का अमानवीय खेल
बदसूरत है जारी ।
शोषित के आगे भय
पीछे विरान  दहकते दर्द की परछाई 
युग बदल दुनिया सिमटी पर ,
शोषित की नसीब बसंत ना पायी ।
अरे ठगी नसीब के मालिको
शोषितों-वंचितों  कलम तो थाम लो
गुनाहगारो को पहचान लो
बदली दुनिया में हक़ जान लो
चेहरा बदलने वालो को
तुम्हारी तरक्की कहाँ बर्दाश्त
अपना हक़ मांग लो ..............डॉ नन्द लाल भारती  14 .4 .2013  



Sunday, April 14, 2013

हाथ तो मिला लो ......

हाथ तो मिला लो ......
जीवित पत्थर के सनम,
खुनी पंजे जिनके
टूटे न जो लूट लिए
भाग्य उनके
अपनी जहां के मालिको को
सुलगते घाव दिए
छीन गयी उम्मीदे
अरमानो की बस्ती में
आग भर दिए
सुधि में जहां ठगा गया ,
पत्थर  दिलो द्वारा कैद नसीब 
थोपी गरीबी को भाग्य कहा गया
खुद का वास्ता भी नहीं
डरा सका पत्थरो को
लूटते रहे कातिल
करते रहे बदनाम किस्मत को
झरे झरझर श्रम के शोले
ठगों  ने झोंके
 गरीबो की किस्मत में ओले
खुद का वास्ता ये ठगी
किस्मत वालो
अपनी जहां के मालिक
मिल जायेगा तुम्हारा लूटा हक़
आपस में हाथ तो मिला लो ..............डॉ  नन्द लाल भारती 13.4.2013