Tuesday, May 28, 2013

हार नहीं ,हताश नहीं.......

हार नहीं ,हताश नहीं.......
हार नहीं हताश नहीं न तो उदास
भले लेकर बैठा लूटा मधुमास
दुर्भाग्य कहे या कुछ और
लूटी नसीब वही
जहां बिता उम्र का मधुमास
तन मन बुध्दि निचोड़ कर ............
मधुमास कर दिए पतझड़ लोग वही
सदियों से बनाये आ रहे जो लोग
बदले युग में बदली सोच नहीं
उंच-नीच-जातिवाद -धर्मवाद की ओट
दमन के औजार अजमा रहे वही लोग ..............
जीतने की धुन ऐसी अदना की
बार-बार की हार से हार नहीं
तालीम,हक़ का निकला जनाजा
उम्र पद रही कम मलाल यही ...........
सदा निभाता साथ ,
जख्म,दर्द ,लुटे नसीब की एहसास
रचाने की तमन्ना
उम्र को मिल गयी सौगात
उजाल स्वर्णिम कलम संसार
जीवन थाती बची है पास
हार नहीं ,हताश नहीं उदास नहीं
भले बना दिया नर पिशाच
पतझड़
जीवन का मधुमास ..........डॉ नन्द लाल भारती 29.05.2013

Sunday, May 26, 2013

क्रांति तेरा आना

क्रांति तेरा आना क्रांति तेरा आना होगा सुफलम मंगलम
करता तेरा आह्वाहन ,जाग जाए पीड़ित जन मे
समानता-विकास की आस
मजदूरों की बस्ती में कर दे उजास
क्रांति उतर जा तू पिछड़े अपने गाँव ,
पिछडा गाँव अपना ,जहां धधकती भेद की आग ,
भूमिहीनता ,गरीबी का नहीं कटा अभिशाप
श्रमवीर निरापद के हिस्से क्यों अन्याय
क्रांति तेरा आना मंगलकारी होगा
श्रमवीरो की बस्ती में उजियारा होगा
क्रांति तेरा आह्वाहन  बदले युग में आ जा एक बार
भूमिहीनता गरीबी के खिलाफ कर जा ललकार
दबंगों को देखो जमीन के मालिक वहो
गाँव समाज की जमीन भूमिहीनों का हिस्सा पर
कब्ज़ा रखते वही
भूमिहीन श्रमवीर भर रहे सांस उखाड़े पाँव
गरीब सदियों से शोषित उपेक्षित ढो रहे घाव
ना भूमि आवंटन ना कोइ पुख्ता रोजगार
नसीब कैद उनकी लौटा दो लूटा अधिकार
भेद-भूमिहीनता का कट जाए अभिशाप
क्रांति तेरा आना होगा मंगलकारी
क्रांति तेरा आह्वाहन जगा जा ललकार
पहचान लो पथराई आँखों की आस
क्रांति उतर जा अपने गाँव एक बार ...............
डॉ नन्द लाल भारती 27 .05.2013

Friday, May 24, 2013

विचार/कविता

विचार/कविता
अपनी जहाँ में ना खुले
शोषित आदमी की नन्सिब के ताले
ना रहा कोई  उद्यम शेष
गुन सहूर तालीम कर ली हासिल
कैसी योग्यता नसीब पर पड़े है ताले
भेद भरी जहाँ का पोषण क्यों
ये अपनी जहां के रखवाले .............
सदियाँ बीती आये-गए ढेर महान
राम-कृष्ण -वाहे गुरु -महावीर बुध्द भगवन
दुर्भाग्य अपनी जहां   का
भभकती रही जाती भेद की आग
नयन पथराये ,ना बदल शोषित का भाग्य
हाड़ रिसता निरंतर चिपका पेट
ऐ अपनी जहां वालो क्यों
लटका दिए शोषित की नसीब पर ताले
जातिवाद के नाम अन्याय क्यों ...?
जबाब क्यों नहीं ये अपनी जहां वाले ..........
युग बदल पर ना बदली
भेदभाव से पोषित अपनी जहाँ
आदमी अछूत,कुए का पानी अपवित्र यहाँ
कैसे बसेगी तरक्की ...? कैसे ठहरेगा स्व मान
भय भूख का जीवन आफत में जान
अपनी जहां वालो करो विचार
भेद भाव की कुरीति
शोषित जन -राष्ट्र के विकास जड़ दिए ताले
आओ ढहा दे भेद की दीवारे ,चटका दे हर ताले
अपनी जहां में कुसुमित रहे समता सदा
ये अपनी जहाँ के रखवाले ......डॉ नन्द लाल भारती 25.05.2013


Wednesday, May 22, 2013

खुद को खुदा न बनाओ

खुद को खुदा  न बनाओ
वाह  रे अपनी जहां के कातिल लोग
खूब कर रहे
दबे कुचलो  की नसीबो का भोग
सर नोचे या पटके दर-दर माथ
लूटती रही नसीब
तकदीर के कातिलो के हाथ ................
कातिलो के नाम प्रतापी जैसे
विजय अवध देव-इंद्र  राज-इंद्र ऐसे
रह गए शोषित लोग हाथ मसलते
झरता रहा झराझर  श्रम
तालीम,योग्यता ,हक़ बेमतलब
अपनी जहाँ में ......................
कर्मपूजा फ़र्ज़ पर फना  होने वाला
होगा अच्छा ,कल में जीने वाला
धोखा मिलता पल-पल
कांटे गड़ते पग-पग पर
श्रमवीर   कहाँ हारने वाला
जीता नहीं जो अपनी जहां में .....
तरक्की से दूर राह ताकता
संतोष की दौलत का रखवाला
ना मिली तरक्की ना नसीब हो सकी आज़ाद
बदला  बहुत कुछ
बस ना बदल जाति-पाँति का दर्द ....................
नसीब के कातिल रंगते  रहे
पीढ़ियों के सुनहरे भविष्य
लूटी नसीब के मालिको के हक़ से
ठगा आदमी कहा जी सका चैन से ................
ये शोषितों की तकदीर के दुश्मनों
होश में आ जाओ तुम
खुद को खुदा  न बनाओ
लगेगी आग जब तुम्हारी जहाँ में
ना बचा पाओगे तुम ................डॉ नन्द लाल भारती 23.05.2013

Monday, May 20, 2013

धरती का लाल/ कविता

धरती का लाल/ कविता काश अपनी जहां में
कोइ चमत्कार हो जाता
धरती का  लाल विधान सभा संसद तक पहुँच पाता
लालबहादुर शास्त्री होते
आदर्श अपने
उनकी बाताई राह पर चलता
भले ही अर्थ की तुला पर
व्यर्थ ठहरता ,
अफ़सोस तनिक न करता
दुनिया के सामने
मतदाता  का कद बढ़ाता
संसद का स्वाभिमान  बढ़ाता
दागियो के लिए
विधान सभा संसद के
दरवाजे हो जाते बंद सदा
हर आँखों में सपने धरती के लाल
लालबहादुर के सजते
अम्बेडकर का समातावाद
सर चढ़ कर बोलता
ना होता किसी बस्ती के
कुएं का पानी अपवित्र
नर-नारी सम्मान होते
ऊँच -नीच का कोइ राग न होता
निः शुल्क शिक्षा होती एक सामान
सम्मान संग रोजी-रोटी की गारंटी
भूमिहीनता जातिवाद का न बजता डंका
देशद्रोही भ्रष्टाचारियो की
जल जाती लंका
जगत देश की जय जयकार करता
दुनिया में देश का गौरव बढ़ जाता
काश कोई चमत्कार हो जाता
धरती का  लाल विधान सभा
संसद पहुँच जाता ....डॉ नन्द लाल भारती 21.05.2013

मुक्कमल आज़ादी /kavita

मुक्कमल आज़ादी ना मिली  मुकम्मल आजादी
ना खुली ना मिली तारक्की की राहें
अपनी जहां को यारो .....
मुश्किलों के दौर संघर्षरत जीवन
झर श्रम बीज निरंतर
मन की बगिया में बची अपने
सपनों की हरियाली ............
ठगों के मनो में मनो खोट
भय भेद भ्रष्टाचार सताती चोट
हौशलो के दम फूलने लगे है
अपनी जहां के ................
शोषितों का हल बुरा
झेलते दोहरी मार
जातीय रुढ़िवादी  समाज में उपेक्षित
अर्थ की तुला पर ठहरे व्यर्थ सदा
संविधान किया पंगु
अपनी जहां में .................
शोषितों का जीवन
अग्नि परीक्षा का दौर सदा
सपनों की सवारी जीवन उनका
ना मिली मुक्कमल आज़ादी
आजाद देश में गुलाम रह गए
तरक्की ताकते रह गए
 अपनी जहां में यारो .......डॉ नन्द लाल भारती 20.05.2013

Thursday, May 16, 2013

बात कहता हूँ /कविता

बात कहता हूँ /कविता

भयभीत आज  और कल से भी
सच तभी तो
ज़माने से खौफ खाता हूँ
भय के मोहाने पर बैठा
खुदा को पास पाता  हूँ 
भरोसा है उसी का
तभी तो अपनी बात  कह जाता हूँ .
भय में जीना, कोई जीना नहीं यारो
मजबूरियां है ,
भेद भरे जहां में बसर करना है 
भय में जीने के कई सबूत है यारो
  सुलगता भेद का  अंगार
ऊँची तालीम लूटी नसीब है यारो
तरक्की से दूर फेंका
मैं भी आदमी हूँ ,
आदमी होने का दम  भरता हूँ ,
लूटी नसीब का आदमी हुआ क्या
दोयम दर्जे का बना दिया गया हूँ ,
बाधित है भेद भरे जहां में रास्ते सारे 
कांटे बिछे है सरे-राह हमारे 
फिर भी बढ़ने और जीने का
सम्मान संग हौशला रखता  हूँ 
खुद का बंदा हूँ
आदमी की बोयी खौफ में भी
अपनी बात कहता हूँ ......... डॉ नन्द लाल भारती  17.05.2013

Wednesday, May 15, 2013

सारे जहां से अच्छा देश हमारा है /कविता

सारे जहां से अच्छा देश हमारा है /कविता
कैसा जहां हो गया है अपना
जान से जो प्यारा है ,
सारे जहां से अच्छा देश हमारा है .
बनी बुराइयां माथे
कलंक यहाँ ,
जातिवाद का प्रकोप
आदमी अछूत यहाँ .
शोषितों की कैद नसीब
सकूं की बयार कहाँ ,
जातिवाद से उपजी महामारी
भेद,भय भूख भ्रष्ट्राचार यहाँ .
वक्त गवाह पलको पर ठहरे
आंसू के भार
तरक्की की बाते बस
पल रहा सदियों से रार .
उखाड़े पाँव युगों से
शोषितों का नहीं हुआ उध्दार .
जीने का आसरा हौशला
शोषितों की पूँजी शेष ,
सरेआम लुटे गए हक़ अपनी जहां में
जीवन साथी उम्मीदों के अवशेष ,
कर्तव्यनिष्ठ हार ना माना शोषित बावरा ,
उम्मीदों की सांस
 श्रम की कश्ती जीवन सहारा .
शादियों से उत्पीदित घायल आहे ,
नस-नस कराहे
कैद नस्सेब का मालिक
जीओ -जीने दो सम्मान संग
यही दोहराए .
शोषण,अत्याचार,भेदभाव से दबा
बहुजन हिताय उसका नारा
अनुराग अलौकिक रखता
ईश वंदना जैसे गाता
सारे जहां से अच्छा देश हमारा ...डॉ नन्द लाल भारती 16.05.2013

Tuesday, May 14, 2013

ये दौर कैसा दौर है

ये दौर कैसा दौर है ये दौर कैसा दौर है
काँटों का सफ़र दर्द का शोर है
बेखुदी उनकी
दर्द सुनने को  कानो  में
ना बचा जोर है
मूंद  आँखे छाती पर
पाँव जमा रहे
भले में भूले अपने ऐसे
खुदा  हुए खुद 
उनकी रहनुमाई का दौर हो जैसे
बेदर्द कहने को वो भी
 आदमी का वेश धरे है 

अरमानो का क़त्ल शौक उनका
स्वार्थ में भले  बहे गैर की आँखों से लहू 
यही गहने है अमानुषों के
ये दौर कैसा दौर है
जहां दबे -कुचालो की न होती सुनवाई
आह का दहकता दरिया
सपनों ने शक्ल ना पाई
खंड-खंड हुआ इंसान
जाति के तराजू होती आदमी की पैमाइश
देख हाल दबे कुचालो के
आँखों से लहू टपकते
कौन सुने कराह रंग बदलते दौर में
खुदाई का ढोंग है
दबा कुचला किया जा रहा कमजोर है
ये दौर कैसा दौर है 
नन्द लाल भारती  15  .5 .2 0 1 3 

छलकते जाम/कविता

छलकते जाम/कविता 
झलकते जाम बहकती  महफिले 
अपनी जहां में किस काम की
पल की मौज नतीजा भयावह
धन का क्षय मन होता पापी
लत बुरी सुख -शांति दहकती 
जंगल की आग सी 
छलकते जाम बहकती  महफिले
किस काम की .................

छलकते जाम बहकती  महफिलो का शौक
घर मंदिर की तबाही के कारण
अबोध भूख में रिरकते
छूट जाते विद्या मंदिर से नाते
रिश्ते नाते टूट जाते
महापाप बेवफाई के सबूत साबुत
कलह का कारण भी पुख्ता
कह दो अलविदा प्यारे
कसम तुमहे तुम्हारी शान की
छलकते जाम बहकती  महफिले 
अपनी जहां में किस काम की ..........
नन्द लाल भारती  14 .5 .2 0 0 1 3 

Saturday, May 11, 2013

हे माँ मेरी माँ .....

हे माँ मेरी माँ 
हे माँ मेरी माँ ...............
तू ही तो अपनी भगवान
परोपकारी,जान,अपनी  पहचान .
दर्द मेरे बदन, तुम्हे सताया
पीकर विष तुमने मुझे सफल बनाया .
तू जीवन धारा तुमसे कुसुमित जहाँ
हे माँ मेरी माँ तुम बिन बसंत कहाँ .
तेरे हाथ उठे जब-जब माँ
मिले तथास्तु के वरदान माँ मेरी माँ .
भगवान कृपा निधान मेरी माँ 
जिसने मुझे बनाया वो मेरी माँ .
कहते है,हैं कोइ सर्वशक्तिमान
हे माँ मेरी माँ मैंने तुम्हे  है पाया .
माँ तेरी याद जीवन थाती
जीवनदायिनी माँ तू दीया बाती .
याद रहेगा सदा तेरी नेकी का पैगाम
हे माँ मेरी माँ तुम्हे शत-शत प्रणाम ..डॉ नन्द लाल भारती 12.05.2013
---------------------------------------------------------------------
मदर्स डे  की हार्दिक मंगलकामनाएँ .....
-----------------------------------------------------

Thursday, May 9, 2013

बहारो तुम ना रूठा करो .....

बहारो तुम ना रूठा  करो 
बहारो तुम ना रूठा  करो
लूट गयी सरेजहाँ नसीब
बेमौत मर  रहे सपने सारे
तुम्हारी आस में तमन्ना जागी है 
बहारो तुम ना रूठा  करो
मेरे द्वार कभी झिलमिलाया करो
................
सताती ये परायों की दुनिया
खुद की सांस पर ना भरोसा रहा
परायी दुनिया के लोग छलते है
खुद को न जाने क्यों खुद कहते है
उठ गया भरोसा नसीब के दुश्मनों से
तुम तो तनिक हौशला बढाया करो बहारो तुम ना रूठा  करो ..............
लूटेरे काबिज है यहाँ-वहाँ
सदियों से नसीब लूटने की फल  रही
साजिश यहाँ
अपनी जहां में मर रहे नित सपने हरे-भरे
अपनी ले से दिल को नहवाया करो

बहारो तुम ना रूठा  करो ..............
हो चुकी है शिनाख्त तुम्हारी बेबसी की भी 
हमारी गली में आने की मनाहायी है तुम्हे
आजाद होती तुम ना छला जाता श्रम 
ना लूटा गयाहोता हक़ यहाँ
दीन  की आँखों का पानी पहचान लो
 हाशिये के लोग हक़  की पहचान करे 
अपनी आजादी की तुम भी  ऐलान करो 
अब बहारो तुम ना रूठा  करो ..............
डॉ नन्द लाल भारती
10 .05.2013

Wednesday, May 8, 2013

आदमियत की राह तो जाओ .......

आदमियत की राह तो जाओ .......
सच्ची गाथा नर से नारायण
परमार्थ भाव जब नर में जागा .
जीवन अमर हुआ ऐसे नर का
धरती पर स्वर्ग का सुख पा जाता .
बदला  युग पर ना बदके लोग
अपनी जहां को डंसता जाति भेद का रोग .
छूत -अछूत के नाम आदमी ना भाता
तालीम बौनी अदने की हक़ लूट जाता .
अदना की कोई  ना  सुने फ़रियाद यहाँ
छोटे लोग कह कर दण्डित किया जाता .
बूँद-बूँद लहू  पसीना बन कर अदने का
लिखता विकास धरती को स्वर्ग बनाता .
नसीब उसके दहकता भेद भय औरर भूख 
अदना हो भले शिखर,जीवन का सुख लूट जाता।
सच्ची गाथा नर से नारायण
जातिवाद के शिकार,स्वार्थी आदमी भूल जाता
अदना का दर्द कौन जाने, कराह अनसुना हो जाता .
कसम है तुमको नारायण ना बन सके तो क्या ....?
अपनी जहां में नरोत्तम बन कर दिखाओ
जाति भेद का मुखौटा उतारो
आदमी हो आदमियत की राह तो जाओ .......
डॉ नन्द लाल भारती
09 .05.2013
 

Tuesday, May 7, 2013

साजिश का मंत्र /कविता

साजिश का  मंत्र /कविता 

बित गए जीवन के बसंत पच्चास
तालीम योग्यता भरपूर  पर हाय रे
भेद हारता गया हर बार
हार-हार नहीं हारा जीत की
जीवित है मन में आस .....
कर्म-धर्म-फ़र्ज़ जीत के औजार
ना जीत सका इस जहां में
जहां क्षेत्र-जाति वर्ण आदमी को
तौलने के है औजार ..............
यही है यहाँ सत्ता-धर्म राज
जहां बेमौत मारी जाती है
ख्वाहिशें
जीत कर भी हार जाता है
छोटे कुनबे का आदमी
यही है इस जहां का जातीय कुराज .......
इस जहां में छोटे को और छोटा
गरीब को अतिगरीब
उंच को और उंच धनिखा को धन-पशु
बनाये रखने की साजिश का
फलफूल रहा है मंत्र
जातिवाद,क्षेत्रवाद ,भ्रष्टाचार ,उत्पीडन,
शोषण की भट्ठी पर  सुलगता देश
जहाँ असहाय सा हो गया लोकतंत्र ......डॉ नन्द लाल भारती 08.05.2013