Friday, July 26, 2013

हे पुरुषोत्तम ………

हे पुरुषोत्तम ………
हे पुरुषोत्तम, नर देवता
तेरा स्वागत ,अभिनन्दन
झुकता माथ , जुड़ता  हाथ
अभिनन्दन ,वन्दन ……।
पूजा थाल ,फैले हाथ
शब्द ब्रहम लेखन सामाग्री ,
तेरी पूजा
कथा-हवन आरती ……
ख्वाहिश ,नर देवता
बना रहे जीवन फूल
कुसुमित रहे मन
कुसुमित रहे कर्म
सजदा में सदा  उठे हाथ
मन ररहे धवल साफ़ ………
दृढशक्ति दे दे
हे नर देवता तथास्तु  कह दे …….
अदना करे वंदना
हे नर देवता
कबूल करो आराधना …. डॉ नन्द लाल भारती 27.07.2013


Saturday, July 20, 2013

हाल सुनो........................


हाल सुनो........................
यारो अपनी जहां के हाल सुनो,
मरे सपने बहुत ,जाल ना बुनो ,
जख्म रिसते डराते हरदम पुराने ,
बदलता जहाँ पर  घाव रोजाने ,
आदमी को आदमी कहाँ माने ,
आदमी को तौलने के औजार पुराने ,
भेद  की ज्वाला लगी है ख्वाब खाने ,
भेद की जाम पर रोशन मयखाने ,
जीए कैसे दहकते जख्म थामे ,
कल,आज और कल भी लगे डराने
यारो अपनी जहां के हाल सुनो,
मरे सपने बहुत ,जाल ना बुनो..........
डॉ नन्द लाल भारती
21.07 .2013     

Saturday, July 13, 2013

पूजा कर्म/कविता

पूजा कर्म/कविता
 हुआ पूजकर्म अपना
शब्द साधना ,
कबूल हुई नरोत्तम को आराधना ......
ना जीत ना कोइ हार
कुसुमित हुआ संसार
अदना की बगिया से
उठने लगे सदविचार .....
अर्थ की तुला पर '
ना ठहरे  कोई  भार
सृजन धर्म जीवन सार .....
जीत-जीत हार
पुलकित रहे विचार
दुआ हुई कबूल
दिल से  उगे  शब्द बीज
बने  जीवन हार ...
शब्द बीज बने रहे बने वट-वृक्ष
जीवन साध हमारी ,
हे नर -देवता शत-शत नमन
अदना करे वंदना तुम्हारी ...डॉ नन्द लाल भारती 14.07.2013     

कलम का सिपाही/कविता

कलम का सिपाही/कविता

जिंदगी के ख्वाब थे ,अपने भी हरे-भरे ,
वाह रे कैद नसीब के मालिक
धरातल पर जब-जब उतरे ,
दिल रोया पाँव जले ......
हाल क्या बयाँ  करू
निशान  दहकते दाग बन चुके
जिद पक्की ना हारे ना रुके .......
निरापद को सजा ऐसी
भविष्य दहल गया ,
हरा -भरा ख्वाब पतझर बन गया .....
बदल युग, दर्द का ना थमा सिलसिला
सपने कत्लेआम वही
जहां जीवन का मधुमास बिता ........
दहकते घाव पर ना हार ना रार
उसूल की राह चलता रहा
मरते सपनों का भर थामे
घंटी की तरह बजता ही रहा ...
कलम साथ, करने की जिद
आखिर  बयार ने रुख बदल दिया ,
आस के बाग़ उग गये
जीने के सहारे मिल गए .........
करामात ये  जमात
दर्द से भरे हम वही पर
साथ जमात है
यही कर्म की सौगात है ........
बरखुरदार ,हम तो दीवाने
समय के पुत्र दर्द पीते हैं
जहां के लिए जीते है .......
ढाढस यही अपना भी
हौशले के स्याही से
शब्द बीज बोता  चला गया
ना टूटे कसमे वादे
कलम का सिपाही कहा गया ......डॉ नन्द लाल भारती  14 .07 .2013   

Saturday, July 6, 2013

नसीब के कातिल/कविता

नसीब के कातिल/कविता
नसीब के कातिलों नसीब के कातिलों ने
ना जाने क्यूं ....?
मेरी मौत की कसम है
 निभायी .....।
फ़ना हुआ मैं अपनी
वफ़ा पर यारों
कातिलो ने मेरे अरमानो की  बस्ती में
आग है लगाई .....
पेट में थी पल  रही भूख
खुली आँखों में थे
जीवित सपने रचे .......
हौशले के  ताप से
सपनों में सूरत थी नाजर आयी .......
वाह रे कातिल निगाहें
क़त्ल की सजा सुनायी ........
फना हुआ मैं और
मेरे सपने अपनी जहां में
नफरत भरे अपने जहां में
यारों कोई  तालीम काम ना आयी .......
मरते सपनों की  शैय्या थामे
निरापद दर्द पी रहा हूँ
फ़ना होने के सिवाय
नाकामयाब तरकीब हर कोई
नसीब के कातिलो ने
ऐसी कसम निभायी
मरता रहा जी-जी कर
सपने मरते रहे अपने यारों
बेमतलब तालीमें  और तरकीबे
नफ़रत बोने वाले लोग लगते है
कसाई
हाय रे अपनी जहां के कातिल  लोग
तुम्हारी वजह से नसीब उम्र ना पाई .....
.डॉ नन्द लाल भारती 07.07.2013