Thursday, August 29, 2013

शूल भरी राह/कविता

शूल भरी राह/कविता 
सच लगने लगा है ,
कुव्यवस्थाओ   के बीच थकने लगा हूँ ,
वफ़ा,कर्तव्य परायणता पर
शक की कैंची चलने लगी है ,
 ईमान पर भेद के पत्थर बरसने लगे है
कर्म-पूजा खंडित करने की  ,
साजिशे तेज होने लगी  है ,
पुराने घाव तराशे जाने लगे है ,
भेद भरी जहा में बर्बाद हो चुका है ,
कल-आज भी
कल क्या होगा,क्या पता
कहा से कौन तीर छाती में छेद  कर दे ,
चिंतन की चिता पर बूढा होने लगा हूँ
उम्र के मधुमास पतझड़ बन गए है
पतझड़ बनी जिन्दगी से
बसंत की उम्मीद लगा बैठा हूँ ,
कर्मरत मरते सपनों का बोझ उठाये
फिर रहा हूँ
कलम का साथ कोई  बन जाए
मिशाल अपनी भी
इसी  इन्तजार  में शूल भरी राहो  पर
 चलता जा रहा हूँ।,,,,,,,,,,,, डॉ नन्द लाल भारती 30. 08. 2013 ।



Monday, August 26, 2013

कैसे-कैसे लोग /कविता


कैसे-कैसे लोग /कविता
अपनी जहाँ के कैसे-कैसे लोग
तरासते खंजर कसाई जैसे लोग ,
अदना जानकर लूटते हक़
छिन  जाते आदमी होने का सुख,
कर रहे युगों से कैद नसीब
अपनी जहाँ के लोग……
कैसा गुमान ,वार रार ,तकरार
करते रहते लहुलुहान ,अदने का जिगर
भले ना हो कोई गुनाह
भय,शोषण ,उत्पीडन आतंक
दिल को कराह। …………
अपनी जहां में उम्र गुजर रही
अदने की जिन्दगी दर्द की शैय्या पर
मुश्किलें हजार कांटो का सफ़र
बेमौसम अंवारा  बादल बरस रहे
डूबती उम्मीदे,किनारे नहीं मिल रहे। ……।
अदना हिम्मत कैसे हारे, सत्याग्रह कर रहा
हौशले से जीने का सहारा ढूंढ रहा
सदियों से कसाईयो से चौकन्ना
खुली आँखों से सपना बो रहा। …. डॉ नन्द लाल भारती 26.08.2013  



Saturday, August 24, 2013

दर्द /कविता

दर्द /कविता
बयानबाजी कंपा देता बार-बार मन
अपनी जहां में सालता रहता दर्द,
लोग कोइ साप कोइ नागनाथ ,
खुद की कसम कोई मौन सा
घुसा  देता  जानलेवा दर्द………
साझा की गुस्ताखी भी
 दे देता दर्द ,
ना साझा की मौन स्वीकृति
मन भी मान गया
दूर तक पहुंचे ललकार
जुड़े इन्कलाब
ऐसा औजार हाथ आ गया। ……
औजार क्या कलम सुख-दुःख का
अपना साथ सच्चा ,
सुनने -कहने का सामर्थ्य पक्का ………
मन भी हो जाता हरा-भरा
उठ जाता छाती से दर्द
सकून मिलाता वैसे जैसे
छनकर मिलता टुकड़े  धूप का सुख
मौसम हो  हाड़फोड़ सर्द………… डॉ नन्द लाल भारती 25.08.2013  


Tuesday, August 20, 2013

हिंदी जीवन थाती /कविता


हिंदी जीवन थाती /कविता 
कल-युग उथल-पुथल ,स्वार्थ का जारी दौर
घायल हम, अपनी भाषा और आज़ादी
हिंदी लाओ  देश बचाओ की है आंधी ,
माता-मातृभूमि और मातृभाषा को लेकर
दिल में पलते जज्बात तूफानी ,
ख्वाहिश, जहां में गूंजे जय हिंदी ,
जय हिन्दुस्तानी ,
जीवन ज्योति हिंदी  भाषा ,
अपनी है पहचान ,
मत मातृभूमि और मातृभाषा पर
क्यों ना हो जाए कुर्बान ,
उपकार मातृभाषा का कैसे  भूल जाऊं
मातृभूमि पर हुआ अवतरण जब ,
गूंजा घर-आँगन सोहर गान ,
हिंदी जय-विजय अपना स्व-मान
राष्ट्र भाषा हिंदी गगन सी छायी ,
पाँव पड़े धरती पर
जब जिह्वा हिंदी में तूतलाई,
मा की ममता ,
पिता का प्यार हिंदी में पाया ,
जीओ और जीन दो का उदगार ,
मातृभाषा में आया ,
आजादी की भाषा हिंदी सेतु
विश्व गुरु का शोभित सम्मान ,
बदले युग में पाए हिंदी अपनी
विश्व भाषा का मान ,
घायल हम,अपनी भाषा और आज़ादी
आगे आओ,मान बढाओ ,
राष्ट्र गौरव हिंदी भाषा
बनी रहे जीवन थाती। … डॉ नन्द लाल भारती  13.08.2013

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Saturday, August 10, 2013

खून के बदले /कविता




खून के बदले /कविता 
खून के बदले मिली आजादी
पल में रुलाये,पीला में हंसाये
इन्कलाब,वन्दे मातरम ,
भारत माता के शहीद पुत्रो की
याद दिलाये, जोश जगाये
खाए छाती पर गोली,लटके फांसी
काल के गाल पर छाये
खून के बदले मिली आजादी
पल में रुलाये,पल  में हंसाये। ……………… 
टूटे सपने ,सूनी मांगे,भरी आँखे
रह गयी आस लगाए
वीर देश के सच्चे सपूत
फिर लौटकर ना आये
दीवानों के कुर्बानी अपनी आज़ादी
कसम अपनी जहां वालो
कुर्बानी की कीमत छाती से लगाए
खून के बदले मिली आजादी
पल में रुलाये,पल  में हंसाये। ……………… …
खुशहाली आजादी के जो
सूरज चाँद सितारे
भारत माता के वीर शहीद थमाये
युग बदाल  बदल गये मायने
आतंकी पड़ोसी टाक-झांक लगाए
सावधान उनसे भी जो कहने को
जन -राष्ट्र  की सम्पदा लुटे खाए
देशद्रोही वे ,उन्हें सबक सीखाये
खून के बदले मिली आजादी
पल में रुलाये,पल  में हंसाये। ………………
प्रांतवाद ,जातिवाद ,धर्मवाद ना सींचे
दुश्मन आँख दिखाए आँखे खींचे
मत पाकर मतवाले हुए जो
अपने मत पर आंके
ऐसी कसम निभाये
आजादी अपनी जान से प्यारी
आंच ना कोई आये
माता मातृभूमि और राष्ट्रभाषा का
मान बढ़ाये
खून के बदले मिली आजादी
पल में रुलाये,पल  में हंसाये। ……………… डॉ नन्द लाल भारती 10.08.2013   





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Friday, August 2, 2013

देश धर्म हो हमारा/कविता

 देश धर्म हो हमारा/कविता 
 कैसे होगा असली आजादी का ,
सपना साकार ,
कब बसेगी खुशहाली शोषित के द्वार ,
दे रहा माँ के आँखों को आंसू ,
आमजन का हक़ लूट रहा भ्रष्टाचार ,
नफ़रत जातिवाद का हो रहा प्रसार
वक्त बुरा आओ करे विचार ,
गिध्द नज़र पडी है
टूट रही सब्र की घड़ी है ,
लोकतंत्र लहोलुहान आह भर रहा ,
लोकतंत्र के रक्षक भ्रष्टाचार ,
विष बो रहे ,
ईमानदारी, वफ़ा सत्य परेशान
हाड-फोड़  कराह रहा शोषित इंसान ,
विज्ञानं का युग पर ना मिटा जाति  भेद ,
ना लूटी नसीब हो सकी आज़ाद ,
अपनी जहां में कैसे होगा विकास ,
क्या यही था आजादी का मंतव्य
स्वार्थ में नहाये रक्षक ,भूल  गए गंतव्य ,
शोषण, अत्याचार,बलात्कार,भ्रष्टाचार
नियति में समाया
खून के बदले आज़ादी का मान घटाया ,
आओ करेविचार ,
आंम -आदमी शोषित वंचित का हो विकास
समता-सद्भावना राष्ट्रहित का गूंजे नारा
भारत के लोगो जागो  अब जाति धर्म द्वेष नहीं ,
देश धर्म हो हमारा …। डॉ नन्द लाल भारती 02.08 .2013