Friday, September 27, 2013

भय का आतंक /कविता

भय का आतंक /कविता
अपनी जहां में अकेला  हो गया हूँ ,
खैर सच भी तो  यही है,
सच से अनजान नही नहीं हूँ,

क्योंकि मैं जान चुका हूँ
लोगो की नियति
दरिया में डुबो कर मार देने की साजिश भी
यही हो रहा है अपनी जहाँ में

लोगो के साथ आज भी ,
अरमानो पर अंगारे बरसाए जा रहे है ,
समुद्री तूफ़ान की तरह भय आता है
एक और दहकता नया जख्म दे जाता है ,
मैं भी आतंकित रहता हूँ ,
अपनी ही जहां में ,
हक़ लोटने की साजिश शोषण,उत्पीडन,
काबिलियत का क़त्ल
क्या भय पैदा करने के लिए कम है

अपनी जहां में ,
यही भय ही तो है मुझे  और
मेरे अरमानो  को  कत्लेआम कर रहा है
दिन प्रतिदिन आज भी ,
मैं हूँ की अकेलेपन के  दर्द में डूबा
मरुस्थल की छाती पर
निशान छोड़ने की अभिलाषा में
भय से आतंकित होकर भी

बसर कर जहा हूँ अपनी जहां में………
 डॉ नन्द लाल भारती  27  .09.2013
हिस्से का सूरज ,कैदी हो गया है
आसमान पर अवैध कब्ज़ा ,
धरातल विरान  बन हो गया है ,
आँखों में भरा रहता है पानी
यही शोषित आदमी की कहानी ,
कंधे पर जिसके
नित मरते सपनों का बोझ
कर्मशील, श्रमवीर
मुकदर मरुस्थल हो गया है हिस्से का सूरज ,कैदी हो गया है ……………।

डॉ नन्द लाल भारती  27  .09.2013

Tuesday, September 24, 2013

नरपिशाच,विरासत & वक्त ललकार देता है/कविता

वक्त ललकार देता है/कविता 
वक्त करता रहता है शिनाख्त ,
गढ़ता रहता है पहचान
तुला पर आंक- आंक कर .
फर्ज पर फ़ना हुआ जो
शक्तिमान बना देता है ।
मुश्किलों में रहकर  जो
करे त्याग सेवा काम
बोये वफ़ा-ईमान ,
अदना हो भले ही इन्सान वही
तपस्वी समान होता है। 
क्षमा कर थाम ले हाथ जो
वही दयावान होता है।
समता-परमार्थ की राह पर जो
खुद को  करे न्योछावर
 इंसान वही भगवान होता है।
दे रहा हो जो  आंसू बो रहा जो
भेदभाव नफ़रत  के विष बीज
छिन  रहा हो हक़,सुख चैन 
इन्सान वही शैतान होता है।
अपना वादा बने नेक इंसान
बोते रहे समता-सदभावना के शब्द बीज
क्योंकि वक्त ललकार देता है। …। डॉ नन्द लाल भारती  25 .09.2013

विरासत/कविता 
चलती सांस जीवन अधारा ,
रुकी तो थम गया चक्र सारा ,
ना मिले दोबारा जीवन अनमोल ,
पानी का बुलबुला कहाया ,
अंजन पथ का पथिक
परायी दुनिया में मन रमाया
ना जाने कोई 
अगला पल कैसा होगा ,
क्या लायेगा कुछ
या कुछ ले जायेगा ,
उजली विरासत
जीवन की रिश्तो की माला
फ़र्ज़ से सींचना  है
यही यादगार रह जायेगा ……
डॉ नन्द लाल भारती  24  09.2013  


नरपिशाच /कविता

मुर्दाखोर नर पिशाच
कब्र खोद बैठे हैं,
दीन -वंचितों की  तरक्की की ,
हर राह रोक बैठे है ,
फिक्र सताती है  उनको
वंचितों की सांस क्यों नहीं
मिल जाती है उनको ,
वजह यही अपनी  जहां में

हाशिये के आदमी की
चौखट ख़ुशी ,
ठहर नहीं पाती  है
सच है यारो ,
शोषित आदमी को

छल-भेद भरी अपनी जहां
बहुत सताती है………………।
डॉ नन्द लाल भारती  23 09.2013  





Thursday, September 19, 2013

रहनुमाई का सद्-भाव/कविता

रहनुमाई का सद्-भाव/कविता 
उसकी भी क्या खुदाई है ,
देता है जीवन,सुख-दुःख ,छांव- धूप 
इसीलिए उसे खुदा  कहते है,
दिखता नहीं ,रहता है
आसपास हर कहीं,
दैविक,दुःख-दर्द को  ,
पाठशाला कहा जाता है ,
खुदा  का दिया दुःख-दर्द
वक्त की लहर में  बह जाता है ,
अदृश्य रहता है पर
खुदा  कहा जाता है ,
एक आदमी है उसी  का बंदा
खाता  है रोटी पीता  है पानी
हक़,जमीन पहाड़ तक डकार 
रहा  है अँधा ,
रहता है साथ-साथ ,
बसता है आसपास ,
रखता है बगल में खंजर
मौंका पाते ही भोंक देता है
बेरहम छाती के अन्दर ,
आदमी का दिया घाव ,
हरा रहता है ,
इसीलिए आदमी को आदमी ,
विषधर कहता है ,
हे  खुदा के   प्रतिनिधि  ,
क्यों बहाते हो लहू , देते हो आंसू
बोते हो नफ़रत
 ऐ खुद के बन्दों तुम्हारे दिलों पर
रहनुमाई का सद्-भाव
क्यों नहीं बसता है …………। डॉ नन्द लाल भारती  20.09.2013  







Wednesday, September 18, 2013

सार… & अँधियारा…/कविता …

सार…/कविता आज फिर आँखों के सब्र का
बाँध टूटने को था ,
पलको ने थाम लिया
दिल ने दम भरा
मस्तिष्क कहा रहता
पीछे,
विचार क्रांति का जज्बा
भर दिया ,
उठो कलम थामो
यही तुम्हारे जीवन की
तलवार है ,
जुट जाओ छांटने में,
दर्द,भेद,अत्याचार
यही है ,
परमात्मा की मर्जी
कलम के सिपाही हो ,
शोषित-वंचित हो
पर शिक्षित हो
संघर्ष तुम्हारे
अस्तित्व का सार………17. 09 .2013   

अँधियारा…/कविता

समझा चाँद जिसे
वह पिघला ना तनिक
अपनी जहां से,
समझा सूरज जिसे
 तरक्की  ऊर्जा
समाई जिसमें
जलाया अपनी जहा
उसी ने ,
ना चांदनी रात हुई अपनी
ना हुआ सुहाना दिन हमारा
लूटी नसीब का मैलिक
चीरने निकल पड़ा
थामे कलम हाथ
घनघोर अँधियारा…………।
डॉ नन्द लाल भारती 17. 09 .2013   


Tuesday, September 17, 2013

आदमी होने के सुख को न चुराओ/कविता

आदमी होने के सुख को न चुराओ/कविता

दबे कुचलो को तनिक
तरक्की की राह  पर चलते
पाँव पर जोर अजमाते ,संभलते देख
आज भी कुछ लोगो के
हिया दमन की आग
दहकने लगती है।
सदियों से आंसू पीया जो
नब्जे आज भी उसकी,
कराहे जा रही है।
कहा बराबरी का मौका ,
पग-पग पर कांटे पल-पल पर
धोखा ही धोखा।
भले आदमी चाँद पर चढ़ गया है
मंगल  पर बस्ती बसाने को
उतावला हो रहा है।
हाय रे जाति-भेद का मोह
मानवीय समानता रास आती
नहीं उसको
जाति वंश के नाम ठोंक -ठोंक ताल
थकता नहीं आज भी।
ऊँच -नीच जाति -भेद के नाम
दर्द परोसने वालो
कमजोर जानकर दबे-कुचलो की
जिन्दगी स्याह करने वालो
आँखों को आंसू देने वालो
खुदा से खौफ तो खाओ
आदमी हो आदमी के
आदमी होने के सुख को न चुराओ।
डॉ नन्द लाल भारती 17  .09 . 2013  
 

Tuesday, September 10, 2013

थका-थका बेचैन/कविता

थका-थका बेचैन/कविता खूब बहाया श्रम,
खूब फूंक-फूंक कर रखा पाँव
अपनी जहां में ,
पर क्या हाशिये के लोगो के हिस्से ,
शोषण,उत्पीडन,भय भूख ,भूमिहीनता
भेद ,निर्धनता और लाचारी ,
ये दीवाने वफ़ा के पर
हाय रेअपनी जहां
वफ़ा काम ना आयी ,
सुलग रहे अपनी
जहां  के लोगो की  खफा में ,
गड़  रहे शूल
अपनी जहा के भेद भरी राहो में ,
शूल छेड़ कर दिल निकल रहे आरपार ,
सूख रहे आंसू आँखों में ,
ना जाने कितनी सदियों से ,
श्रम लूट जहा हक़ छीन रहा
नसीब जिनकी कैदखाने में ,
वंचित -दींन  जानकर
डुबोया जा रहा दर्द के दरिया में ,
हाथ कुंजी जिसके वही लगे है
हक़ और खजाना हथियाने में
ये अपनी जहां वालो
हाशिये के लोगो की सुधि ले लेते
शोषित-वंचित थका-थका बेचैन,
दीनता,भेदभाव के  दर्द से कराहता
जी रहा जो,   अपनी जहां में……।

डॉ नन्द लाल भारती 11  .09 . 2013  

Monday, September 9, 2013

हे धरती के चाँद सितारों /कविता

हे धरती के चाँद सितारों /कविता
कागज के नोटों की ऐसी

पड़ी काली  परछाईं ,
 आदमी हो रहा बावला ,
बिसर रही वफाई ,
मिलावट,भ्रष्टाचार नफ़रत की ,
ऐसी आग लगी है ,
आदमी को बस  दौलत की
भूख बढी  है ,
आदमी आदमी का लहू ,
बहाने लगा है ,
मानवता कराहने ,रिश्ता
तार-तार होने लगा है ,
अवसरवादी अनजान ,
बनने लगा है
कपटी चेहरा बदल-बदल ,
ठगने लगा है ,
जानता है पहचानता है ,
मुट्ठी बांधे आये है
हाथ फैलाये निश्चित है जाना ,
कागज की नोटों   की चाहत  में डूबा
भेदभाव,भ्रष्टाचार को ,
उन्नति है माना  ,
दुनिया की सबसे बड़ी दौलत
प्यार, आत्मविश्वास और सच्चे मित्र
खूब बढ़ाओ ये दौलत  खुद के प्यारो ,
काल  के गाल पर ,
लम्बी उम्र पा  जाओगे
करो विश्वास
जीवन फूल कर्म सुगंध
हे धरती के चाँद सितारों ………
डॉ नन्द लाल भारती 10  .09 . 2013  

राह दिखा दे /कविता

राह दिखा दे /कविता

ये ऊपर वाले अब तो ,
राह दिखा दे
अपनो बन्दों को जो
उपकार,उदारता समानता ,
भूलते जा रहे है ,
दयाभाव,अहिंसा से दूर,
जा चुके है
सच्चाई और कर्त्तव्य पर
खरे नहीं उतर रहे है ,
अँधा बांटे रेवड़ी अपने को दे
चरितार्थ करने लगे है ,
लूट जाही कमजोर की नसीबे
शोषित-वंचित तुम्हारी दुनिया में
बिन पानी की मीन हो रहे है ,
ये ऊपर वाले अब तो राह ,
दिखा देते ,
 अदना,दर्द पीकर जीने वाला
किससे करेवफ़ा की उम्मीद
तुम्हारी दुनिया में ,
हाड -मांस के बने  लोग
कागज के टुकड़ो में ,
बिक रहे  है
डॉ नन्द लाल भारती 09   .09 . 2013  

Saturday, September 7, 2013

अभिमान /कविता

अभिमान /कविता भेदभाव,पद-दौलत का अभिमान ,
जाति -भेद नफ़रत करे,
आग में घी का काम ,
बेलगाम करता मन,क्रोध और काम ,
कंस का यौवन धर जाता इन्सान
प्रेम,करुणा  सहानुभूति का,
 नहीं रहता भान ,
सोच,समझ, स्व-विवेक खो जाता ,
जबान ,बुरी आदत और गुस्सा पर
अभिमानी लगाम न रख पाता ,
बुरी संगत ,स्वार्थ और
 निंदा में डूबा इंसान
खुशामद की चाह ,घमंड ,
पद -दौलत का नंगा  प्रदर्शन
फ़र्ज़ से अनजान,
दमन की कश्ती पर सवार,
 कैसे पायेगा सम्मान ,
ना करो
जाति -पद दौलत का अभिमान ,
उठ जाएगा कद,
करो अक्ल,चरित्र तालीम का गुणगान
 दमकता रहेगा सम्मान।  
डॉ नन्द लाल भारती 08  .09 . 2013  

छोटी-छोटी कविताये

 छोटी-छोटी कविताये 

प्रकृति से किया जो प्रेम

ईश्वर  के प्रति ,
आस्थावान कहा जाए ,
घर-मंदिर के लिए   बहा
पसीना जो
राष्ट्र निर्माण के काम आये वो ,
परिश्रमी ऐसा
राष्ट्र सेवक कहा जाये ,
विद्या से जुड़ा जब
निखरा  श्रम ,
कर्म को मिली पहचान ,
उज्जवल ,
ईश्वर ,परिश्रम और विद्या
श्रेष्ठ उन्नति के
धवल निशान ,
परिश्रम संग जब  निष्ठां
त्याग
और सद्भाव मिले
परिश्रमी हो जाते
देवतुल्य पूज्य महान………डॉ नन्द लाल भारती 06  .09 . 2013  

सच है माँ  बाप   ,
धरती के भगवान,
सेवा जिनकी ईश,
आराधना समान ,
मानव जीवन में
जवानी मतलब
उम्र का उत्कर्ष ,
जीवन का उत्थान
आदमी बन सकता
अराध्य श्रेष्ठ महान। …….
डॉ नन्द लाल भारती 06  .09 . 2013  
सचमुच मानव जीवन
सर्वोत्तम ,
मामूली नर भी
हो सकता नरोत्तम ……
सुना है देवताओ को भी
होती है ताक ,
पाने को मानव जीवन,
माँ बाप और जवानी
मिलते जीवन में बस
एक बार ,
समझ गया जो नर
रहस्य इनका
धन्य हुआ  जीवन उसका
गूंजी सफल गाथा 
वक्त के आरपार …….
डॉ नन्द लाल भारती 06   .09 . 2013  
बात पते की रखना है
हरदम याद ,
अतीत की चिंता क्यों करना……?
बीते को  विसारते रहना ,
कल क्या होगा ,कुछ नहीं पता ,
कल को लेकर क्यों बैठना …?
भविष्य होगा सुखद ,
अंधभक्त ना है बनाना………
श्रमेव जयते, कर्म पूजा ,
वर्तमान ना जाने पाए
बेकार……
पकड़ में आ   गयी
जब बाते ये  अनमोल ,
सच मानो  सपने  हुये  साकार।
डॉ नन्द लाल भारती 05  .09 . 2013  






संत वाणी अथक साधना
राह दिखावे ,वक्त सुनाये ,
वचन अनमोल सुहाने ,
किये अनुसरण जो
वक्त के आरपार गए
पहचाने …………
रोगी ,दुखी और
आदमी द्वारा बनायी
छोटी जाति के लोगो की ओर
जो हाथ बढ़ाये
वक्त गवाह
मानव वही देवदूत कहलाये। …….
डॉ नन्द लाल भारती 04 .09 . 2013  





परायी दुनिया
लोग पराये
 दर्द तो मिलेगा ,
जीवन में जिसे
 कुछ ना मिला
उसे मरकर कर
क्या मिलेगा ,
जिसके जीवन का
लूट गया हो मधुमास
जी रहा हो जो
उम्मीद की सांस
सच दुनिया में यारो
रंज-दर्द -ए -गम हजार है
सच्चा फ़रिश्ता जो
पीकर जहर
बो  रहा हो सदाचार है ,
खुशनसीब है वही
परायी दुनिया में
मिल रहा
है जिन्हें सद्प्यार…………………।
डॉ नन्द लाल भारती 03.09 . 2013