Monday, April 14, 2014

उध्दार दिवस /कविता ( अम्बेडकर जयंती विशेष )

उध्दार दिवस /कविता

( अम्बेडकर जयंती विशेष )
बाबा तेरा आना हो गया मंगलकारी
जय भीम संस्कार दुआ सलाम हितकारी
टूट गया जाति भेद का किला भयावह ,
आज़ाद कैद नसीब निखार  आया ,
शोषित कर्मवीर श्रमवीर उठ खड़ा हुआ
छाती तान है बोला
इंसान सच्चे संस्कृति प्रकृति ,
देश की सांस ,सांस हमारी
बाबा तेरा आना हुआ मंगलकारी……।
बाबा तेरा प्रताप नोचे पर  पाये
उड़ान भरने को आगे-आगे धाए
संविधान श्रेष्ठ राष्ट्र धर्म ग्रन्थ हमारा ,
शोषित और आधी आबादी का,
 स्व-मान बढ़ाया
बाबा तेरा संघर्ष हुआ कल्याणकारी
बाबा तेरा आना हुआ मंगलकारी…………………
बाबा तुम ना होते तो ,
जातिभेद का चक्रव्यूह कैसे  टूटता  ?
 अपनी जहां में होते बेगाने परिंदे ,
शोषण ,जुल्म ,अत्याचार ,दहकता दर्द ,
अपमान ही मिलता
शोषितो का उत्थान नारी को सम्मान
बाबा तेरे संघर्ष की नेक कमाई
उध्दार दिवस चौदह अप्रैल
डॉ भीम राव अम्बेडकर जयंती
शोषित जन बांटे मन-मन भर बधाई
राष्ट्र गौरान्वित विश्व हर्षाया
चौखट -चौखट  छाई उजियारी
जय भीम संस्कार दुआ सलाम हितकारी
बाबा तेरा आना हो गया मंगलकारी …………
डॉ नन्द लाल भारती 12 .04  2014.

अम्बेडकर जयंती ..........

अम्बेडकर जयंती  ..........
देवदूत भारत रत्न डॉ भीम राव अम्बेडकर ,
राष्ट्र के गौरव, बहुजन हिताय ,
बहुजन सुखाय के राही ,
संकटमोचन दुखहर्ता
शोषित समाज के
नयंनज्योति-मसीहा
बाबा का जीवन संघर्ष ,
अछूत ,हाशिये के आदमी ,
कमेरी दुनिया के लोगो
आम आदमी ,नारी उध्दार
और सफल मनोकामना ,
14 अप्रैल उध्दार दिवस,
स्वाभिमान दिवस ,
सौभाग्य दिवस
अरुणोदय  नव -नव ,
मंगल  प्रभात
 जय भीम कायनात
14 अप्रैल अम्बेडकर जयंती  की
 ढेरो बधाई
अनंत मंगलकामना … डॉ नन्द लाल भारती
13  .04  2014.


नास्तिक/कविता

नास्तिक/कविता
माना कि अपनी जहां   में
नास्तिक हो गया हूँ ,
खैर नास्तिक होने की पुख्ता
वजहें भी तो हैं ,
 आस्तिक होने से मिला क्या……?
यही ना छल ,दंड ,भेद ,
सुलगता हुआ जख्म
दहकता हुआ दर्द ,
अहकता हुआ मन ,
झंझावाते अनेको ,छुआछूत
जातिवाद ,नफ़रत
उत्पीड़न ,आदमी होने के सुख से बेदखली
कैद नसीब के मालिक होने का दर्द।
आस्तिक हूँ, आस्थावान हूँ
 मानवता के प्रति ,
दर्द के रिश्ते के प्रति
देश  कायनात के प्रति
और
एक ईश्वरीय सत्ता के प्रति भी
सच यही मेरी  नास्तिकता है
अपनी जहां में
प्रज्जवलित है जो
अप्पो दीपो भवः की तेल बाती से ..........
डॉ नन्द लाल भारती 15 .04  2014.



Tuesday, April 1, 2014

भेदभाव की तपती लू /कविता

भेदभाव की तपती लू /कविता
आहत आज स्वर्णिम आभा की ,
आग उगलती लू से ,
सच यही लू
राख कर रही है सदियों से
हक़ ,कर्म-श्रम- सृजन
और कुछ अपनी जहां में..........
मुखौटाधारी रोप रहे हैं
जातीय-भेद नफ़रत ,भ्रष्ट्राचार
साजिश दगाबाजी की विषबेल
दिल पर जमी उनके
सदियो पुरानी मेल
दमन की आग उगलती रहती है ………
विषबेल रोपने वाले,धोखा देने वाले
आदमियत का क़त्ल करने वाले
चढ़ते जा रहे है शिखर
हड़फोड़ाने वाला जिसकी जहां
जिसका हक़ वही
प्यासी निगाहों से ताक रहा
अपनी जहां में…………।
भेद शोषण अत्याचार की आग
उगलती लू
लहुलुहान किये रहती है
कमजोर नीचले तबके के आदमी का जीवन
और तबाह होता रहता है
कल भी अपनी जहां में ………।
यही है वह आग सदियों पुरानी
स्वाहा कर रही है जो
हाशिये के आदमी की तरक्की
और आदमी होने का सुख भी
बो रही हा दमन के बीज निरंतर
सच आज की स्वर्णिम आभा में भी
शोषित दमित अहक-अहक दहक रहे
भेदभाव की तपती लू से ,
आज भी अपनी जहां में। …………
डॉ नन्द लाल भारती 01 .04 2014.