अदना भी ख़ास हो जायेगा ./कविता
मिल जाए असली आज़ादी
संविधान हो जाए,पूरी तरह लागू
अपनी जहां में,अदना भी
शिखर तक पहुँच जायेगा ..........
लोकतंत्र का मकसद
समता -सदभावना ,सबका कल्याण
जातिनिपेक्षता,धर्मनिरपेक्षता
इंसान को इंसान होने का
सुख मिल जाएगा ..........
संविधान अपना ऋतु बसंत
सुप्रभात हुआ
अदने की अभिलाषा का भी
विस्तार हुआ ,
कैद नसीब के मालिक का
उध्दार हो जायेगा ..........
मिट जाए निशान
भेदभाव का अपनी जहां से
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का'
सदभाव कुसुमित हो जाएगा ..........
अपनी जहां में
संविधान की छाँव
बीत गयीं वो कारी रातेँ
ना होगा अब शोषित -अभिशापित कोई
समता-सदभाव का अभ्युदय
अपनी जहां में हो जाएगा ..........
होगी स्वर्णिम आभा अपनी जहां में
हर नर का होगा राष्ट्र-धर्म
लोकतंत्र के युग में
अदना भी ख़ास हो जायेगा ..........
डॉ नन्द लाल भारती 17.10.2014
-राष्ट्र-लोकतंत्र,और संविधान/कविता
आज़ादी और लोकतंतत्र को
लेकर हमने भी
बहुत देखे है सपने
आज़ाद देश अपना संविधान
सत्ताधीश लोग अपने
हाय रे कैदनसीब अपनी
सपने नहीं हो सके अपने
संविधान को राष्ट्रिय धर्मग्रन्थ
और
सत्ताधीशो को जननायक समझा
पर क्या। …?
भ्रष्ट -सत्ताधीश खूनी,
पर वाह रे अपना संविधान
और
संविधान बनाने वाले
संविधान और
संविधान बनाने वालो से
मन नहीं भटका
हम समझ चुके है
संविधान का सच
आज़ादी और लोकतंत्र के
असली मायने
पर मुखौटेधारी काले अंग्रेज
सत्ताधारी लागे बड़े सयाने
खलनायको जान लो
आधुनिक युग समतक्रांति
जातिनिरपेक्षता ,धर्मनिरपेक्षता का
है ऐलान
नहीं चलेंगे अपनी जहां में
जन-राष्ट्र-लोकतंत्र,संविधान
विद्रोही
जो विषधर समान
आओ हम सब भारतवासी
एकटूक कह दे
अरे खलनायको तुम
तोड़ चुके हो विश्वास के हर धागे
सुन लो कान खोलकर अब तुम
जन-राष्ट्र-लोकतंत्र,और
संविधान का सच्चा सिपाही,
युवा होगा आगे-आगे …………
डॉ नन्द लाल भारती 16.10.2014
युग निर्माता /कविता
संविधान में रमे हमारे दिल में
असली आज़ादी के
ख्वाब बसते है
हम अपनी माटी के दीवाने
संविधान को
भाग्य विधाता कहते है
पल्हना हो या इंदौर या
महानगरो के बिग बाज़ार
हम तो गाँव की
खुशिया ढूढते है
खेत की सोंधी माटी से
उठे हवा के झोंके
हमें तो चन्दन की
खूशबू लगते है
पर वाह रे अपनी जहां
यहाँ जाति -धर्म के सौदागर
लोकतंत्र के युग में भी
इंसानी फ़िज़ा दूषित करते है
गाव के जीवन में बसा भेदभाव
शोषितो की कराह गूंजती है
भूमिहीन शोषितो के श्रम से
खेतो में जीवन ज्योति
उपजती है
लोकतंत्र के युग में भी
शोषित मज़दूर तंगहाल
गरीबी के ओढ़ना -बिछौना में
मरते -जीते हैं
आएंगे अच्छे दिन अपने भी
ख्वाब में जीते है
काश हो जाते सपने पूरे
लोकतंत्र के युग में
असली आज़ादी की
जय जयकार वे भी करते
भारतीय संविधान को जो
भाग्य विधाता युग निर्माता कहते हैं …………।
डॉ नन्द लाल भारती 15 .10 .2014
आगे आगे जाना है /कविता
हमारी ख्वाहिश है
बस इतनी सी
हम सब अपनी जहां में
समतावादी बने रहे बस
असंभव तो नहीं था
पर सम्भव नहीं हो सका
आज तक
झाँक चुका हूँ उतर कर दिलो में
पर घाव के अलावा कुछ नहीं मिला
मुखौटाधारी
दूर के रहे या आसपास के
अंतड़ियों की ऐठनो से
उठती रहती है आग उनके
यही है अपनी जहा का दुर्भाग्य
भूल जाते है लोग
हम है माटी के पुतले
माटी का है चमत्कार
देश की माटी के है कर्जदार
देश की माटी का तिलक लगाओ
संविधान को राष्ट्रीय धर्मग्रंथ बनाओ
अप्पो दीपो भवः बुध्द की वंदना
जीवन अमृत हर दिल से उठे संवेदना
सदभावना का व्यवहार करे
ऐसी भावना जनकल्याण करेगी
हाशिये के आदमी का उध्दार करेगी
चमत्कार है अपनी माटी में
विकास है लोकतंत्र में
चमत्कार है संविधान में
आओ हम सब साथ चले
समता -सदभावना की राह बढे
कसम है लोकतंत्र के सिपाहियों
देश के सपूतो
स्वार्थ से दूर फ़र्ज़ पर फना हो जाना है
कर्म -पथ पर आगे आगे जाना है
डॉ नन्द लाल भारती 14 .10 .2014
संविधान का मान बढ़ाओ।/कविता
अपनी आज़ादी के,
सरसठ साल गुजर चुके
मगर शोषित समाज की,
न पूरी हुई आस
संकल्पित शोषित समाज का
विश्वास
देश मान और भारतीय संविधान
संविधान ही तो है जो
चाहत है सबका भला
क्या पुरुष क्या महिला
स्वधर्मी क्या गैर धर्मी
क्या जाति क्या परजाति
देता है सबको स्वतंत्रता
और
समानता का अधिकार
पर क्या सफेदपोश
सामंतवाद की सनक में मदहोश
नहीं चाहते
शोषित समाज का उध्दार
तभी तो आज भी जारी है
शोषण -उत्पीड़न ,अत्याचार
चीर- हरण बलात्कार,जातिवाद भरपूर
हाशिये का आदमी विज्ञानं के युग में
अछूत तरक्की से पड़ा है बहुत दूर
लगता है लोकतंत्र की नकाब ओढ़े
सामंतवादी सत्ता के भूखो के
इरादे नेक नहीं है
वे भेदभाव ,गरीबी, भूमिहीनता
जातीय अंतरद्वन्द चाहते है
सत्ता पर काबिज होने के लिए
सच आज भी ऐसा लगता है
तथाकथित लोकतंत्र के सिपाही
सत्ताधीश लोकतंत्र के आवरण में
दिखावे भर है
सही मायने में वे
सामंतवाद की जकड़बंदी में कसे हैं
निश्चय ही यह मुखौटा साजिश है
ऐसी साजिशो को देश द्रोह
कहा जाना चाहिए
भारतीय व्यवस्था में
ऐसी साजिशो को
बहुजन समाज के अरमानो का खूनी भी
देश के युवाओ जागो
ऐसी साजिशो के खिलाफ
कर दो ऐलान
ताकि बहुजन चल पड़े सरपट
शैक्षणिक सामाजिक और
आर्थिक प्रगति के पथ पर
हे भारत भाग्य विधाता युवा शक्ति
बहुजन समाज की ओर हाथ बढ़ाओ
अपनी आज़ादी और
भारतीय संविधान का मान बढ़ाओ।
डॉ नन्द लाल भारती 13 .10 .2014
देशहित -जनहित में/कविता
अपनी जहां में ,
सत्ता के भूखे सौदागर
सत्ता पर कब्ज़ा के
हर अवगुण सीख गए।
सामंतवाद की मौन आंधी,
आज भी बसती है
लोकतंत्र को प्रजा-तंत्र कहती है।
अपनी -अपनी जहां में आज़ाद
हमसब जाति -धर्मवाद
नफ़रत-भेदभाव की ,
खोखली शान में उलझे,
पिछड़े रह गए।
अपनी -अपनी जहां में
खंडित-विखंडित लोगो को
मुंगेरीलाल हसीन सपने दिखाना
रास आ गया।
यही छल -भेद जहां में
लोकतंत्र/जनतंत्र का
दुश्मन हो गया।
अरे देश के सपूतो
लोकतंत्र के सच्चे सिपाही
नौजवानो जागो
लोकतंत्र की अस्मिता बचाओ
संविधान को
राष्ट्रीय धर्मग्रन्थ बनाओ
शोषितो के ख्वाब को
पूरा कर दिखाओ
सत्ता के सौदागरों को,
दूर भगाओ।
उजड़ी बस्ती में
लोकतंत्र की असली
ज्योति जला दो
देश के सच्चे सपूतो उठो
आगे बढ़ो लोकतंत्र को
इन्तजार है तुम्हारी
देशहित -जनहित में तुमसे
विनती है हमारी
डॉ नन्द लाल भारती 12 .10 .2014
आहवाहन/कविता
हम सब अपनी -अपनी जहां में
आज़ाद है यारो
असली आज़ादी असली लोकतंत्र से
आज भी दूर है यारो………
अपनी जहां में आज भी
डंसता गुलामी का घाव पुराना
वही जातिवाद -भ्रष्ट्राचार
गरीबी ,नफ़रत-भेद की बेड़ियां
दूर असली आज़ादी का सुख
ना ही पास अभी लगता
असली लोकतंत्र का ज़माना ………
वह भी क्या ………?
गुलाम का दौर रहा होगा
देश की आज़ादी के लिए
आज़ादी की ऐसी ललक
लहू का दरिया बहा होगा ………
जीने नहीं दे रहा होगा
गुलामी के दर्द का आक्रोश
आक्रोश से उठे दर्द ने
जगा दिया था जोश ………
खूब हुए बलिदान
आखिरकार छिन लिया
अपना देश लूटेरो से
सौप दिया सत्ता
अपनो के हाथो में ………
अपनो ने क्या दिया विचार करे ………?
वही बांटो सत्ता पर कब्ज़ा ,बनाये रखो
जातिवाद -सामंतवाद -वंशवाद
भ्रष्ट्राचार का जहर
अपनी जहां वाले आज भी
ढ़ो रहे हर अभिशाप मगर ………
आहवाहन तुम्हारा लोकतंत्र के दीवानो
जागो उठ खड़े जाओ
असली आज़ादी की ज्योति जलाओ ………
अभिशापित शोषित आदमी के
हर मरते ख्वाब पा जाए जीवनदान
हे समता -सदभावना के सिपाहियों
आगे बढ़ो ,
वक्त तुम्हे कहेगा महान ………
डॉ नन्द लाल भारती 11 .10 .2014
असली लोतंकत्र चाहिए /कविता
अपनी जहां कैसी आज़ादी ………?
कैसा लोकतंत्र ………?
आदमियत पर होता प्रहार निरंतर
कर्मयोगी -श्रमवीर आँका जाता
निम्नतर अक्सर ………
क्या शासन क्या सुशासन
कैसा प्रशासन ………?
अपनी जहां में बस
स्वार्थ- पक्षपात अभियान ………
जातिवाद-नफरत बोये जाते है
सत्ता के सिंहासन पर
लोकतंत्र के पहरेदार
मतलबवश मौन पाये जाते है………
हाशिये का आदमी
नित नए चक्रव्यूह में फंसा
जीता है
मरते सपनो का बोझ
कंधो पर लिए
उम्मीदों में जीता है ………
बहुत हुआ
दर्द का बोझ हो गया है भारी
वंचितो शोषितो तुमसे
गुहार है हमारी ………
अपनी जहां को तुम्हारे
आक्रोश की ज्वाला चाहिए
जिससे पिघल जाए
पाषाण हृदय
क्योंकि
वंचितो शोषितो और
हाशिये के लोगो को
संविधान का असली रूप
असली आज़ादी और
असली लोतंकत्र चाहिए ………
डॉ नन्द लाल भारती 10.10 .2014
.............................. ..................
जनतांत्रिक युग में/कविता
काश मेरी आँखे
ना देखीं होती
दिल ना किया होता भान
जनतांत्रिक युग में
आदमी - आदमी में भेद
वंश-वर्ण के नाम पर
विषपान ………
जनतांत्रिक युग में
तहकीकात किया
अपनी और अपने समक्ष
व्यक्तियों तो पाया
सफलता दूर बहुत पडी है
असफलता छाती प् खड़ी है ………
जनतांत्रिक युग में
जीवित है सपने
अपने और उनके भी
रिसते जख्म से कराहते
ज्ञानी ,विज्ञानी कर्मयोगी ,महान
घायल लहूलुहान
लग रहे है सभी ………
जनतांत्रिक युग में
जातीय- धार्मिक -रूढ़िवादी
बंदिशों में जकड़ा
साबूत और रूढ़िवादी दिलो पर
जमीं नफरत की मैल
कँटीले खर-पतवारों से
उठ रहे दर्द कि
तहकीकात कर लिया है
रूढ़िवादी समाज के
पेवन को उधेड़ते हुए.………
सोंचता हूँ क्यों ना कर दे
ऐलान
ठोंक दे ताल बना ले
हथियार
लोकतंत्र ,संविधान
रिपब्लिकन विचारधारा को
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के लिए
जनतांत्रिक युग में.……….
डॉ नन्द लाल भारती 09 .10 .2014
बिगुल बजा दो /कविता
लोकतंत्र का युग स्वर्णिम
हमारे गांव कि कैद
नसीब ऐसी
बंजर-कांटेदार जमीन जैसी
जहां ना पहुंची आज़ादी
ना ही संविधान की परछाई ………
कैसी आज़ादी……?
कैसा लोकतंत्र ……?
वहां वही बात पुरानी
जातिवाद का उठत धुँआ
अपवित्र शोषित बस्ती का,
हैंडपाइप और कुंआ ………
चौखट-चौखट जमीदारी,
पैमाइश
शोषित का तन-मन जैसे
कंगलो नुमाइश ………
अरे लोकतंत्र के पहरेदारो
जागो
स्वार्थ को अब त्याग दो
लोकतंत्र का बिगुल,
बजा दो ………
डॉ नन्द लाल भारती 0 8.10 .2014
अपनी जहां और मैं भी /कविता
विश्व की सर्वोपरि संकल्पना
स्वर्णिम आभा जहां का
भारतीय संविधान
दुनिया का गर्व लोकतंत्र
भारत हुआ महान.................
अपनी जहां में जातीय-भेद
सब पर है भारी ,
भेदभाव -नफ़रत
इंसानियत के माथे कलंक
देश की महामारी......................
सच कहता हूँ
भेद भरी अपनी जहां वालो
जान लो अपने क़त्ल का ,
गवाह मैं भी हूँ
लोकतंत्र ज़ख्म छिलने का
वक्त नहीं होता
पुराने हर दाग मिटाने का
विकास के शिखर जाने का
स्वर्णिम वक्त होता ...........
युवाओ वक़्त की नब्ज पहचानो
और
कर दो ललकार बेधड़क
समानता का हकदार तो
मैं भी हूँ ...........
कह दो उनसे
सुन लो भेद का सुलगता
दर्द देने वालो
लगता होगा मुबारक तुम्हे
हमारा दहकता दर्द तुम्हे
देख लो
अपनी जहां के प्रति वफादार
निर्विकार मै हूँ ...........
आंधिया चली तुम्हारी
सुनामी भी आये तुम्हारे बहुत
अपनी जहां में
पुश्तैनी हुकूमत क्या ……?
धरोहर जीने के सहारे तक
लूटते चले गए
मैं अनुरागी माटी के
अपने उसूल पर फना होता रहा
भले ही अहकता
तुम्हारे दिए दर्द से
अपना वजूद मिटने नहीं दिया
जहां से ………।
अरे अपनी जहां के नवजवानों
ललकार कर कह दो
चढ़ चूका है लोकतंत्र का नारा
संविधान का अक्षरशः पालन
और
असली आज़ादी लक्ष्य हमारा …।
ठोंक कर ताल कर दो ऐलान
अरे अँधियारा बोन वालो
अँधेरे को चीरने निकल पड़ा हूँ ………।
नवजवानों सुन लो विनती
लोकतंत्र की नईया के
तुम्ही खेवईया
असली आज़ादी का सपना
हवाले तुम्हारे
सच मानो नयन ज्योति
अपनी जहां और मैं भी
जी रहे सहारे तुम्हारे ………।
डॉ नन्द लाल भारती 0 7 .10 .2014
लोकतंत्र की पतवार/कविता
अरे भारत के नवजवानों
संविधान के रक्षको
असली आज़ादी
और
लोकतंत्र दीवानो। .........
अपने फ़र्ज़ को पहचानो
अब तो तुम हाशिये के
आदमी के दर्द को
पहचान लो
रिपब्लिकंन विचारधारा
लोकतंत्र को ऊँची उड़ान दो .........
हाशिये का आदमी
तुम्हारी तरफ ताक रहा है
हाशिये के आदमी और
देश को जरुरत है तुम्हारी .........
नयनज्योति तुमको जरुरत है
देश और
समतावादी समाज की .........
उठ खड़े हो जाओ प्यारे
बहुत देर हो चुकी है
और ना करो अब .........
कसम है तुम्हे
तुम्हारे होश की जोश की
लोकतंत्र की पतवार थाम लो .........
डॉ नन्द लाल भारती 0 6 .10 .2014
जन जन तक पहुँचाना है /कविता
रिब्पब्लिकंन /लोकतंत्र
जंजीरो को चटकाने की
ताकत
अंधियारे के पार
उजियारा रोपने का है
साहस .........
लोकतंत्र सुधि-बुध्दि का ,
अथाह संचार
मुक्तिदाता जनहित की
पुकार .........
दुनिया बदलने की ताकत
लोकतंत्र
अपनी जहां के बाधित क्यों
लोकतंत्र .........
अपनी जहां में लोकतंत्र
सफल बनाना है
असली आज़ादी
हाशिये के आदमी
और
जान-जान तक
पहुँचाना है .........
आओ लोकतंत्र के सिपाहियों
जातिवाद-धर्मवाद को त्यागे
बहुजनहिताय -बहुजसुखाय
की राह
चले आगे-आगे .........
डॉ नन्द लाल भारती 05 .10 .2014
Email- nlbharatiauthor@gmail.com
http:// nandlalbharati.blogspot.comhtt p http;//www.hindisahityasarovar .blogspot.com http://wwww. nlbharatilaghukatha.blogspot. com http://wwww.betiyaanvardan. blogspot.com
.............................. .....................
संविधान /कविता
पुष्पवर्षा,हृदयहर्षा
आज़ादी का कर अमृतपान
अपनी जहां अपना संविधान .........
हरे हुए मुरझाये सपने
अपनी-अपनी आज़ादी,
अपने- अपने सपने ................
अपनी जहां अपना लोकतंत्र ख़ास
हर मन विह्वल,पूरी होगी आस ...........
आज़ादी का एहसास सुखद
दिल को घेरे जैसे बसंत ................
अपनी धरती अपना आसमान
समता -सदभावना,विकास हो पहचान .......
जातिववाद -सामंतवाद का अभिशाप ]
नहीं ख़त्म हो रहा
बहुजाहिताय-बहुजन सुखाय का
सपना दूर रहा ................
अपनी जहां वालो आओ करे
लोकतंत्र का आगाज़
देश में हो सर्वधर्म -समभाव
संविधान हो साज ................
डॉ नन्द लाल भारती 04 .10 .2014
अभिलाषा/कविता
खुद को कर कुर्बान,
अपनी जहां को
आज़ादी की देकर सौगात
वे शहीद हो गए
कर्ज के भार अपनी जहां वाले
दबे के दबे रह गए …………
आज़ादी का उदघोष चहुंओर
अपना संविधान
लागू हुआ पुरजोर ....
पर नियति की खोट
आज़ादी के मायने बदल गए
ना पूरी हुई असली
आज़ादी की आस
ना हुआ संविधान
राष्ट्र ग्रन्थ ख़ास ख़ास …………
कहते है ,
कर्म से नर नारायण होता
अपनी जहां में आदमी
जातिवाद,भेदभाव से
दबा कुचला रह गया रोता …………
अरे लोकतंत्र के पहरेदारो
अपनी जहा के शोषितो की,
सुधि लो
शोषितो कि समतावादी
सुखद कल की
तुमसे है आशा
अब तो कर दो पूरी
असली आज़ादी की अभिलाषा…………
डॉ नन्द लाल भारती 03 .10 .2014
ललकार ....... कविता
रिपब्लिकन कहे या लोकतंत्र
मतलब तो एकदम साफ़
संघे शक्ति और
सब देशवासी एक साथ .......
या यो कहें ,
लोकतंत्र जातिनिरपेक्षता -
पंथनिरपेक्षता -धर्मनिरपेक्षता
राष्ट्र-लोकहित ,
मानवीय मूल्यों का
पुख्ता अधिकार .......
कल भी अपना
कुछ ख़ास नहीं रहा
आज भी ठगा -ठगा सा
कल से तो है आस .......
फिक्र है भारी अपने माथे
लोकतंत्र के दुश्मन
जातियुध्द -धर्मवाद
दहकता नफ़रत का प्रवाह
क्षेत्रवाद -नक्सलवाद
सीना ताने .......
रक्षक होते भक्षक ,
सफ़ेद करते काले
हाशिये के आदमी की
फ़रियाद यहां कौन माने .......
बदलता युग बदलती सोच
लूट रहा
असली आज़ादी का सपना
कैद ही रह गया
शोषित आदमी का सपना .......
आओ सब मिलकर करे
ललकार ,
संविधान का हो अक्षरशः पालन
तभी मिलेगी असली आज़ादी ,
कुसुमित रह पायेगा
मानवीय हक़ और अधिकार .......
डॉ नन्द लाल भारती 02 .10 .2014
लोकतंत्र का उद्देश्य--------
लोकतंत्र का उद्देश्य
परमार्थ ,देश हित
मानव सेवा लोकमैत्री सदभाव
मानव को मानव होने का
सुख मिले भरपूर
शोषण अत्याचार ,भेदभाव
अपनी जहां से हो दूर,
शूद्र गंवार ढोल पशु नारी
ये ताडन के अधिकारी
अपनी जहा में ना गूंजे ये
इंसानियत विरोधी धुन
समानता राष्ट्रिय एकता को
अब ना डँसे
कोई नफ़रत के घुन
अरे अपनी जहां वालो
रिपब्लिकन यानि लोकतंत्र के
मर्म को पहचानो
संविधान को
जीवन का उत्कर्ष जानो
आओ कर दे ललकार
रिपब्लिकन विचारधारा
और
संविधान से ही होगा
अपनी जहां का उध्दार--------------------
डॉ नन्द लाल भारती 01 .10 .2014
लोकतंत्र------
लोकतंत्र की चली हवा
अपनी जहां में
अथाह हुए
स्वाभिमान अपने
देश आज़ाद अपना
जाग उठे सारे सपने
लोकत्रंत्र हो गया साकार
देश अपना ,
अपनो की है सरकार
हाय रे निगाहें
उनकी और न गयीं
ना बदली तकदीर उनकी
हाशिये के लोग जो
टकटकी में
उम्र कम पड़ गयी
अब तो तोड़ दो
आडम्बर की सारी सरहदे
खोल दो समानता ,
हक़ -अधिकार की बंदिशे
आओ सपने
फिर से बो दे प्यारे
अपनी जहां में
निखर उठे मुकाम
लोकतंत्र में ,
बसे प्राण आस हमारे।
डॉ नन्द लाल भारती 30 .09.2014
लोकतांत्रिक के मायने
लोकतांत्रिक होने के मायने
समता-सद्भावना की ,
सकूँ भरी साँसे
लोकंमैत्री की निश्छल बहारे ,
बिसर जाए दर्द के
एहसास भयावह सारे
ना आये याद कभी वो
कारी राते ,
हो स्वर्णिम उजियारा
संविधान का
अपनी जहाँ में
चौखट -चौखट नया सबेरा
तन -मन में नई उमंगें
सपने सजे हजार
आदमियत की छाये बहार
स्वर्णिम रंग में रंग जाए
शोषितो का हो जाए उध्दार
संविधान राष्ट्र -धर्म ग्रन्थ का
पा जाए मान
हर मन में हो
राष्ट्र का सम्मान
भेद-भाव से दूर
सद्भावना से दीक्षित
हर मन हो जाए चेतन
मिट जाए जाए
जाति -क्षेत्र की हर खाईं
आतंकवाद -नक्सलवाद की ना
डँसे परछाईं
मान्य ना हो जाति भेद का समर
लोकतांत्रिक होने के असली मायने
बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय
सर्वधर्म -समभाव
राष्ट्र-हित सर्वोपरि यही है सार
ना गैर ना बैर कोई
हर भारतवासी
करे संविधान की जय जयकार
लोकतांत्रिक होने के
असली मायने अपने
पी रहा रहा हूँ विष
जी रहा हूँ
लोकतंत्र के सपने लिए --------डॉ नन्द लाल भारती 29.09.2014