आस्था/कविता
रूढ़िवाद,खूनी कर्मकांड,जातिवाद ,
भेदभाव का विरोधी हूँ
परन्तु
इसका ये मतलब नहीं कि
विशुद्ध नास्तिक हूँ ,.............
मानता हूँ तो एक परमसत्ता को
आस्थावान हूँ उसके प्रति
यह भी जरुरी नहीं कि
मेरी आस्था विशालकाय पत्थर ,
सोने,चांदी की मूर्तियों में हो ,.............
जिसे कई वेषधारी लोग घेरे हुए हो
पूजा वे खुद करने की जिद पर अड़े हो
जहां पूजा के नाम पर
दूध ,मेवा और दूसरे खाद्य सामग्री
बहाया जाता हो ,.............
वही दूध ,मेवा और दूसरे खाद्य सामग्री
जो भूखो को जीवन दे सकता है
शायद इस अपव्यय से
भगवान भी नाखुश होता हो ,.............
इसीलिए मुझे,
हर वह घर मंदिर लगता है
जहाँ से इंसानियत का फूटता है सोता
इंसानी समानता का होता है दर्शन
जीओ और जीने दो का,
सदभाव प्रस्फुटित होता है
जहां असहाय और लाचार की
पूरी होती है मुरांदे
बुजुर्ग और कांपते हाथो को
मिलता है सहारा ,.............
ऐसे घर मुझे विहार, मंदिर
मस्जिद,गुरुद्वारा लगते है
और
मिलती है आस्थावान बनने रहने कि
अदृश्य ताकत भी ,,.............
जानता हूँ जब से मानव का
धरती पर पदार्पण हुआ है
तब से ही अपने परिवार का
अस्तित्व रहा है परन्तु
प्रतिनिधि बदलते रहे है
ईश-दर्शन शायद किसी को हुए हो ,.............
इतिहास बताता है ,
चार पीढ़ी तक तो किसी को नहीं हुए है
इसीलिए मैं हर उस इंसान में
भगवान को देखता हूँ ,.............
जिसमे जीवित होते है ,
दया करुणा ममता समता,परमार्थ,
सदभाव और तत्पर रहते है हरदम
अदने का पोछने के लिए आंसू
सच ऐसे घर-मंदिर,इंसान-भगवान से
पोषित होती है मेरी आस्था,.............
डॉ नन्द लाल भारती 24.06 .2015