Tuesday, October 27, 2015

रावण का दहन बंद करे

रावण  का दहन बंद करे 
रावण के पुतले का दहन क्यों 
जलाना है 
तो अपने मन में बैठे
रावण को जलाओ ........ 
छुआछूत जातिवाद ,दहेज़ दानव 
भ्रष्ट्राचार के रावण को जलाओ ........ 
जलाना है तो 
समानता सदभाना का 
दीप जलाओ 
राष्ट्र और संविधान के प्रति 
श्रध्दा की 
अमर ज्योति जलाओ ........ 
रावण का पुतला जलाना 
समय श्रमशक्ति, गाढ़ी की 
बर्बादी है ........ 
जबकि भूखी प्यासी तरक्की से 
दूर देश की गरीब आबादी  
आओ रावण के पुतले का 
दहन बंद करे 
छुआछूत जातिवाद ,दहेज़ दानव 
भ्रष्ट्राचार आदि बुराईयो के ,
दहन का प्रारम्भ करे। ........ 
डॉ नन्दलाल भारती  22.10 2015  

दलितों अब तो जागो /कविता

दलितों अब तो जागो /कविता 
अपनी जहा जो 
सोने की चिड़िया थी कभी 
वही जहां मुर्दाखोरो की 
बस्ती हो गयी है 
शासन हुआ बौना 
दलितों  की ज़िंदगी 
सस्ती हो गयी है ........
अपने मन में मलाल 
आँखों से आंसू झरते है 
कभी थ्रेसर में पिसते 
कभी आग में भस्म होते
कही माँ-बहनो के  आबरू को 
मुर्दाखोर नोचते 
अट्टहास करते है ........
कौन युग में पहुंच गयी 
अपनी जहाँ 
दलितों के लहू के प्यासे 
मुर्दखोर यहाँ 
दलितों के दमन का कारण 
जातिवाद 
दलितों रूढ़िवादी धर्म से उपजी 
जाति को त्यागो ........
दलितों अब तो जागो 
जातिवाद का झमेला त्यागो 
दलितों संगठित हो जाओ 
अपनी जहां
अपना अस्तित्व बचाओ........ 
दलितों चेतो '
वरना अपनी जहा जो 
सोने की चिड़िया थी कभी 
वही जहां मुर्दाखोरो की 
बस्ती बनी रहेगी 
तुम्हारा हक मान-सम्मान 
तुम्हारी ज़िंदगी मुर्दाखोरो के लिए 
खिलवाड़ का सामान बनती  रहेगी........ 
 डॉ नन्दलाल भारती  22.10 2015   

कर दो प्रतिकार /कविता

कर दो  प्रतिकार /कविता 
दलितों की ज़िन्दगी कुत्तो बिल्लियों 
जैसी सस्ती कैसे हो गयी 
कर्मवीर,श्रमवीर,भाग्य विधाता 
राष्ट्र का असली वारिस 
धरती से अपनी प्रथम 
सूर्योदय के दिन से है नाता ……… 
दलित कोई विदेशी संतान नहीं 
अपनी जहाँ की मॉंटी का है थाती 
अपनी जहां अपना आसमान,
अनुरागी की जीवन बाती 
साम,दंड भेद की बदौलत 
हजारो सालो से  पी रहे लहू 
शोषक आक्रमणकारी 
नहीं लगी लगाम
लोकतंत्र के युग में भी 
आज भी घिनौना खेल है जारी ……… 
ज़िंदा जलाया जाता है,
थ्रेसर में पिसा जाता है 
मान-सम्मान हक-अधिकार 
लूटा जाता है 
फिर भी रखता है
अनुराग अलौकिक अपनी जहां पर 
शोषित दमित दलित 
शोषण का जहर पीकर 
अपनी जहां में जीता है ……… 
कल मिलेगा सम्मान,समतावादी समाज 
यही होती है इंतजार 
पर क्या वो कल नहीं आता 
मिल जाती है सपने बोन की सजा 
जला दिया जाता है जिन्दा 
मुर्दा की तरह 
मुर्दाखोर जश्न मनाते 
अट्टहास करते है 
अपने गुनाह को छिपाने की साजिश रचते है 
दलितों को कुत्ता बिल्ली कहते है ……… 
दलितों  कब तक पीओगे 
अत्याचार शोषण का जहर 
संगठित हो,जागो ,उठो 
और आगे बढ़ो 
नोंच कर फेंक दो
रूढ़िवादी जाति -धर्म का मुखौटा 
कर दो  प्रतिकार 
अपनी देश अपनी मांटी 
अब तो ले लो अधिकार ……… 
 डॉ नन्दलाल भारती  22.10 2015  

मुर्दाखोरो की बस्ती में/कविता

मुर्दाखोरो की बस्ती में/कविता 
मुर्दाखोरो  की निगरानी में,
छाती पर मरते सपनो का बोझ 
जीवन असुरक्षित हो गया है 
श्रमफल का चीरहरण ,
हक़ का क़त्ल ,
योग्यता का बलात्कार होने लगा है ........
नफ़रत-भेद ,वादो -विवादों का तांडव 
मुर्दाखोरो के बस्ती 
बन चुकी है   कब्रस्तान 
लूट गयी नसीब
मुर्दाखोरो की जहां  में 
ऐसी खूनी जहां को 
अलविदा
 कहने को मन कहने लगा है ........
मुर्दाखोरी की चौकसी गिध्द निगाहें 
शोषित हाशिये के कमजोर आदमी के 
लहू पर टिकी है 
श्रम की उपज हो या कर्म का प्रतिफल 
या योग्यता की दमक 
या जीवन की तपस्या 
मुर्दाखोरो की टोली बोटी-बोटी 
नोचने पर लगी है ........
शोषित हाशिये के आदमी का 
ना कल था ना आज है 
लगता है ना कल रहेगा सुरक्षित 
शोषित हाशिये के लोग
हर और बेदखल है ........
कौन सुने गुहार 
अपनी जहां
मुर्दाखोरो का ठिकाना हो गया है 
शोषित हाशिये के लोगो का 
सांस भरना मुश्किल हो गया है  
मुर्दाखोरो की बस्ती में 
हाशिये के आदमी की 
नसीब का कत्ल 
योग्यता का बलात्कार होने लगा है ........
डॉ नन्द लाल भारती 
13.10.2015     

दर्द आदमी का नहीं , उसकी कायनात का होता है /कविता .......

दर्द आदमी का नहीं ,
उसकी कायनात का होता है /कविता ........
दर्द कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं 
और नही 
हमदर्दी बटोरने का कोई जरिया 
दर्द तो मन की तड़पन ,बदन के मर्दन की 
ह्रदय की कराह से उपज ,दंश होता है दर्द ............
दर्द दैहिक हो,दैविक हो ,या भौतिक हो 
दर्द अचानक मिला  हो 
 लापवाही या  खुद की गलती 
अथवा किसी कि  बेवकूफियों से 
मिले जख्म से उपजा हो दर्द 
परन्तु  दर्द  दर्दनाक होता  है ............
छाती या तन के किसी हिस्से का हो
दर्द शरीर के इतिहास भूगोल को 
बिगाड़ देता है 
मन को आतंकित कर 
नयनो को निचोड़ देता है 
हर जख्म से उपजा दर्द ...........
सच दर्द एक तन एक मन 
अथवा  एक व्यक्ति का नहीं रह जाता 
परिवार मित्र समूह
सगे  सम्बन्धियों  
का हो जाता है दर्द...........
दर्द की कई वजहें हो सकती है 
आकस्मिक दुर्घटना ,आतंकवाद, जातिवाद 
नारी उत्पीड़न शोषण अत्याचार 
और भी कई वजहें 
दर्द का असली एहसास तो 
उसी को होता है सख्स जो
मौत को छाती से गुजरते देखा होता है   ..........
जख्म चाहे जैसी हो 
हर जख्म  दर्द लिए होती है 
दर्द में दहन होता है 
दर्द का बोझ ढोने वाले शख्स के 
जीवन के पल,टूटते है उम्मीदों के बांध ..........
बहती है गाढ़ी कमाई बाढ़ के पानी ककी तरह 
थकता है हारता है मन 
टूटता है बदन कराह के साथ 
निचुड़ते है  कायनात के नयन 
आखिर में जीतती है हौशले की उड़ान 
सच सुकरात हो गए महान ..........
दर्द के उमड़ते सैलाब के  दौर में 
ना पीये कोई जहर का घूँट 
ले ले संकल्प, 
ना बने हम  किसी के दर्द का कारण 
इंसान है इंसानियत खातिर 
हो सके  तो करें निवारण 
क्योंकि दर्द बहुत दर्द देता है 
दर्द एक आदमी का नहीं ,
उसकी कायनात का होता है .........
 डॉ नन्दलाल भारती  30 09 .2015