Monday, December 21, 2015

हमने देखा है /कविता

हमने देखा है /कविता 
अपनी जहां में हमने देखा है 
जातिभेद में डूबे शैतान को 
उंच-नीच के  तूफ़ान को 
हाशिये के आदमी की 
ज़िन्दगी में 
आग लगाते हैवान को 
जी हाँ हमने देखा है  ........... 
अपनी जहां में हमने देखा है 
शोषित आदमी की कैद करते 
नसीब 
लूटते अरमान को 
शोषित आदमी की ज़िन्दगी 
आग का दरिया सिर पर 
तेज़ाब के बोझ को 
दर्द में जीते आंसू से 
ज़िन्दगी सींचते शोषित को 
जी हाँ हमने देखा है  ........... 
अपनी जहां में हमने देखा है 
हुनर की दुत्कार को 
योग्यता के बलात्कार को 
जातिवाद के ठीहे पर 
आदमियत के क़त्ल को 
सच कहूँ शोषित आदमी के 
साथ हुए हर जुल्म को 
जी हाँ हमने 
अपनी छाती पर होते हुए देखा है ........... 
डॉ नन्दलाल भारती 22.12  2015 

Sunday, December 20, 2015

आदमियत का गीत /कविता

आदमियत का गीत /कविता 
मैं अदना अपनी जहां का सिपाही बस 
मेरी चाह नहीं मैं 
राजपाट का मालिक बन जाऊं 
वैभव के  शीर्ष बैठ इतराऊं,……… 
बस अदने की चाह  इतनी सी 
सब गले मिले,सबको गले लगाऊं 
ना करे कोई विष की खेती,
ना डँसे जातिभेदका  विषधर 
संग संग चलो आगे बढ़ो
अपनी चाह यही प्यारे 
अपनी जहा गाए,मैं भी सुर  मिलाऊँ  
सब गले मिले,सबको गले लगाऊं……… 
जाति भेद  किया बहुत बिनाश 
अमानुषता के दाग को धो डाले 
जहाँ के माथे ,समता का रंग रच डाले
अपनी जहां का इसी में कल्याण 
यही गुहार लगाऊं 
अपनी चाह  नहीं कि मैं 
वैभव के  शीर्ष बैठ इतराऊं……… 
अप्पो दीपो भवः का भान 
देश धर्म अपना 
राष्ट्र धर्मग्रन्थ हो संविधान 
राष्ट्र और जनहित में फ़र्ज़ निभाये 
समतावादी समाज का  करे शंखनाद 
क्या छोटा क्या बड़ा 
भेदभाव तज  सब गले मिले,
सबको गले लगाऊं ……… 
चाह नहीं वैभव के शीर्ष बैठ इतराऊँ 
समता सदभावना की बयार 
जातिवाद का ना हो विवाद 
भारतवासी यही  पहचान यही बताऊँ 
 आदमी हूँ 
आदमियत का गीत  सुनाऊँ……… 
डॉ नन्दलाल भारती 21  .12  2015 

ये फिजाओं तुम तो गवाह हो

ये फिजाओं तुम तो गवाह हो 
मेरी तार-तार ज़िंदगी 
और इस के कारणों की भी 
अपनी जहां में 
कैद नसीब का मालिक 
हाशिये का आदमी हो गया हूँ
ये फिजाओं तुम,
नसीब के दुश्मनो से कह देना 
मैं जीना सीख गया हूँ……… 
परजीवी हमारे लहू पर पल कर 
हक़ लूट कर अछूत कह रहे है
तनिक संभावना संविधान से 
उसे भी झपट रहे,
नहीं चाहिए आरक्षण
संरक्षण की हम गुहार कर रहे 
दिखा दो हिम्मत 
बाँट दो हमारी तादात के अनुसार 
राष्ट्र सम्पदा धरती 
समता का अधिकार 
सदियों से मांग रहा हूँ 
अब तो आज़ाद देश में 
हवा पीकर जीना सीख रहा हूँ ……… 
डॉ नन्दलाल भारती 12.12  2015 

 


उनसे कह देना कोई /कविता

उनसे कह देना कोई /कविता 
उनसे कह देना कोई 
मैं हारा नहीं और हताश होकर मरा नहीं 
उन मुर्दाखोरो की लाख कोशिशो से भी 
मुर्दाखोरो को पसंद था 
मेरा सुलगता आज-कल और 
मेरी आँखों के झरते  आंसू 
जो कभी झरे  ही नहीं 
मैं आज भी जीवित हूँ,अपनी सांस पर 
धिक्कारता हूँ आज भी,
मुर्दाखोरो की विरासत को 
जो आदमी को आदमी नहीं,अछूत मानती है 
उनसे कह देना कोई 
अप्पो दीपो को अपनाकर  
मैंने  भी अपनी जहां  बना ली है 
मुर्दाखोरो के दिए दर्द को मथकर
दर्द से उपजी उम्मीदे,राह दिखाने लगी है 
मुर्दाखोरो से कोई कह दो 
आदमियत की राह धर लो  
मुर्दाखोरी के आतंक में कब तक 
यौवन धरे रहोगे ,
अरे मुर्दाखोरो 
अब तो दुनिया भी तुम पर  थूकने लगी है……… 
डॉ नन्दलाल भारती 19 .12  2015