Thursday, December 15, 2016

कुत्ता/लघुकथा

कुत्ता/लघुकथा

भाभी धनतेरस के दिन उदास क्यूँ।
भइया की याद आ रही होगी सुमित्रा बोली।
कुत्ता भूँक गया भईया।।घर से दूर है तो याद आएगी ही पापी पेट का सवाल है, वरना घर परिवार से क्यूँ दूर जाते, उनकी अनुपस्थिति में कुत्ता वक्त बेवक्त भूँकता रहता है।
कुत्ता के भूँकने का इतना गम ?
भइया दो पांव वाला कुत्ता ।
मतलब आदमी ।
जी सही समझे।
वो कुत्ता कौन है भाभी।
पड़ोस में।
क्या ?
हां ।।।देखो ना सड़क पर बॉल्कनी बना रखा है, ट्यूबेल सड़क के मध्य है इतना ही नहीं हमारे गैरेज की तरफ इतनी बड़ी खिड़की खोल रखा है।मेरे घर के सामने गाड़ी धोता है।अंदर बाहर कीचड़ हो जाता है।हमारे घर के सामने कार खड़ी करने के लिए लड़ाई करता है।हमारे पेडो का दुश्मन बन बैठा है ।कहता है हम तुम लोगो को चार साल से झेल रहे हैं।
ये पडोसी तो सचमुच पागल कुत्ता है सुमित्रा बोली।
डॉ नन्द लाल भारती
15/12/2016

Saturday, November 19, 2016

नोट बंदी का दर्द।।

।। नोट बंदी का दर्द।।
आजकल लाचार हो गया हूँ
खिस्से में कुछ नोट तो हैं
इतने में कुछ दिन पहले
महीने भर का राशन
ला सकता था
हाय रे नोट बंदी
उसी नोट के बदले
एक वक्त की रोटी नहीं
नसीब हो रही है
बैंक की लाईन में
एक दिन चला गया
ए टी एम पर लंबी लंबी
लाईने लगी है
समझ में नहीं आ रहा है
काम पर जाऊं
या बैंक या ए टी एम की लाईन में लगूँ
परदेसी हूँ हिंदी भाषी हूँ
दफ्तर से क्वार्टर और क्वार्टर से दफ्तर
सिलसिला जारी है
जरूरतों का गला घोंटने के अलावा
और कुछ नहीं है मेरे पास
कुछ दिन ऐसे ही चली राजनीति की असि
तो हम और हमारे जैसे लोगों का
जीवन आ जाएगा संकट में
संकट से उबरने का कोई
रास्ता नजर नहीं आ रहा है
मन रो रो कर सवाल कर रहा है
क्या नोटबंदी काले को सफ़ेद
करने का खेल है
आमआदमी को भूखे बेमौत मारने की
कोई गुप्त योजना
खिस्से में नोट तो है
एक चाय की हैसियत नहीं है
हाय रे राजनीतिक बाहबाही
बिना किसी तैयारी के
लेकर नोटबंदी के फैसले
आम आदमी को भूखे
मरने को मजबूर कर दिया
चहुओर हाहाकार है
आम आदमी कितना लाचार है
क्या खाऊं, कहाँ जाऊँ
समझ नहीँ पा रहा हूँ नोटबंदी है या मौत का पैगाम
सच नोटबंदी से लाचार हो गया हूँ।
डॉ नन्द लाल भारती
18/11/2016

Thursday, April 21, 2016

मानवीय समानता/कविता

मानवीय समानता/कविता 
अपनी   जहां का जुल्म,
रिसते घाव खुरचता रहता है,
कभो कोइ मठाधीश,
कभी कोइ सत्ताधीश 
 सत्ताएँ स्वार्थ का केंद्र हो रही है .......
पहली अर्थात धार्मिक सत्ता तो 
शुरुआत से खिलाफ रही है 
आदमी को बांटती रही है 
कुछ अछूत बनती रही है 
ताकि आदमी होकर भी 
आदमी होने के सुख से  वंचित रहे
गुलामी की जंजीर में जकड़े 
तड़पते रहे  ......... 
कैसी सत्ता है आदमी को बांटती है 
स्व-धर्मी को अछूत मानती है 
आदमी में भेद कराती है 
आदमी के बीच खुनी लकीर खींचती है 
ये कैसी धार्मिक सत्ता यह तो राजनीति है 
निर्बल को निर्बल  की रणनीति है। ........ 
दूसरी यानि वर्तमान राजनैतिक सत्ता 
जिससे उम्मीद जागी थी
बीएड रहित जीवन की 
सम्मान विकास सम्मान शिक्षा की 
क्योंकि यह तो आज़ाद देश की 
संवैधानिक/लोकतन्त्रतिक सत्ता है 
लोकतन्त्रतिक सत्ता  से गोरे अब 
बहुत दूर जा चुके है
अपने लोग अपनी सरकार है 
हाय रे यहाँ तो 
जाति  धर्म के नाम पर तकरार है। ......... 
सत्ता सुख में बौराए लोग 
हाशिये के आदमी के दुःख पर मौन है 
कैसे होगा निवारण 
 हाशिये के आदमी दे दुःख का 
इस दर्द के बवंडर से जूझता 
सफर कर रहा  हूँ.......... 
देखता हूँ समता क्रांति के लिए 
धर्मधीश और सत्ताधीश साथ आते है 
या सदियों  से दम तोड़ रहे 
हाशिये के लोगो की तरह 
मानवीय समानता के लिए 
संघर्षरत
योहि तड़प -तड़प कर दम  तोड़ देता हूं  ......... 
डॉ नन्द लाल भारती 
21.04.2016

Tuesday, April 19, 2016

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Friday, January 1, 2016

मुबारक नया साल/कविता

मुबारक नया साल/कविता 
क्या किया जन-देशहित में  पूरे साल 
करें सच्चे मन से आकलन फिलहाल।
किया या नहीं किया ना करें अफ़सोस 
आओ चले नई राह, लेकर नई सोच। 
नई उमंग,नया एहसास नया साल है 
मिले खुशियों का उजास,नया उत्साह।
नई उम्मीदें,नया जोश,एहसास सुहाना
नव ऊर्जा संग बढे,त्यागे रिवाज पुराना।
नया साल,नया लक्ष्य ,जीवन खुशहाल 
क्या गैर क्या  बैर, जग में बने मिसाल। 
नया साल नई प्रतिज्ञा करे नई शुरुआत 
सदभाव जीओ और जीने दो की  हो बात। 
ना जाति भेद का दर्द,ना हो कोई नरसंहार ,
देशधर्म,संविधान धर्मग्रन्थ का हो संचार।
आस नया साल,समता संवृध्दि विकास
नया साल नई सौगात,  सुखद एहसास। 
त्याग कर  मन भेद,आओ हाथ बढाए,
अदना करे यही कामना 
2016...खुशियो की सौगात लेकर आये। 
नए साल की खुशियाँ छाई रहे पूरे साल 
कबूल हो अदने की शुभकामना,
मुबारक नया साल.. .........   
डॉ नन्द लाल भारती 
31, दिस. 2015