Saturday, November 19, 2016

नोट बंदी का दर्द।।

।। नोट बंदी का दर्द।।
आजकल लाचार हो गया हूँ
खिस्से में कुछ नोट तो हैं
इतने में कुछ दिन पहले
महीने भर का राशन
ला सकता था
हाय रे नोट बंदी
उसी नोट के बदले
एक वक्त की रोटी नहीं
नसीब हो रही है
बैंक की लाईन में
एक दिन चला गया
ए टी एम पर लंबी लंबी
लाईने लगी है
समझ में नहीं आ रहा है
काम पर जाऊं
या बैंक या ए टी एम की लाईन में लगूँ
परदेसी हूँ हिंदी भाषी हूँ
दफ्तर से क्वार्टर और क्वार्टर से दफ्तर
सिलसिला जारी है
जरूरतों का गला घोंटने के अलावा
और कुछ नहीं है मेरे पास
कुछ दिन ऐसे ही चली राजनीति की असि
तो हम और हमारे जैसे लोगों का
जीवन आ जाएगा संकट में
संकट से उबरने का कोई
रास्ता नजर नहीं आ रहा है
मन रो रो कर सवाल कर रहा है
क्या नोटबंदी काले को सफ़ेद
करने का खेल है
आमआदमी को भूखे बेमौत मारने की
कोई गुप्त योजना
खिस्से में नोट तो है
एक चाय की हैसियत नहीं है
हाय रे राजनीतिक बाहबाही
बिना किसी तैयारी के
लेकर नोटबंदी के फैसले
आम आदमी को भूखे
मरने को मजबूर कर दिया
चहुओर हाहाकार है
आम आदमी कितना लाचार है
क्या खाऊं, कहाँ जाऊँ
समझ नहीँ पा रहा हूँ नोटबंदी है या मौत का पैगाम
सच नोटबंदी से लाचार हो गया हूँ।
डॉ नन्द लाल भारती
18/11/2016