उम्र गंवाने का पछतावा ......
उम्र गंवाने के बदले
दर्द के सिवाय क्या दिया
योग्यता -कर्म पूजा के
दुश्मनों ।
भेद की तलवार से
क़त्ल कर दिया
खुली आँखों के सपनों का ।
मैं बावला भ्रम में
जीता रहा ।
तुम्हारी महफ़िलो में
अर्थी निकलती रही
सपनों की
मैं उम्र गंवाता रहा ।
तुम आदमियत के
पक्षकार नहीं
भ्रम में रखने वालो
भविष्य को मौत देने वालो ।
तुमने अच्छा नहीं किया
बेगुनाह -कर्मयोगी की
नसीब का भेद की खंजर से
क़त्ल करने वालो ।
मै खुलो आँखों से सपने
सींचता रहा
तुमने रेगिस्तान बना दिया
मै उम्र लूटता रहा
कर्तव्य निष्ठा ईमान से ।
तुम्हारा दिया घाव
पल-पल डंस रहा है
विषधर की तरह
उम्र लूटाने का
पछतावा हो रहा है ।
मैंने खुदा माना
तुमने मुखौटा बदल लिया
दर्द के सिवाय क्या दिया
सालता रहेगा दर्द
नसीब की अर्थी का
धिक्कारती रहेगी
नेक आत्मा तुम्हे
गरीब के सपनों का तुमने
बलात्कार जो कर दिया ..............नन्द लाल भारती ..११-०९-२०११
Sunday, September 11, 2011
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नन्दलाल जी, आपका धन्यवाद, मै भी मेरे नौजवान भाईयोँ से अनुरोध करता हूँ कि किसी के योग्यता- कर्म का हनन ना करेँ.. बाहर से ही नही अंदर से भी बेदाग रहेँ और फिर किसी नंदलाल जी को यह लिखने की जरुरत ना पड़े। आपका फिर से धन्यवाद... आपने बहुत बड़ी बात लिख दी। - संजय रामटेके
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