सवाल ...............
वो खता जो हुई ही नहीं
भेद भरे जहां में
उसी की सजा मिल रही है
हाशिये का आदमी
लूटी नसीब नयन नीर से
सींच रहा है
उम्मीद है यारो कोई
बयार चल दे
बेगुनाही की दास्तान
खुदा से कह दे
दिल पर बोझ भारी
इंसानी टूटन, बनी है घुटन
यही बीमारी डंस रही
नसीब हमारी
छोटे लोग हो गए
जहां में हाशिये के आदमी
कौन सुने फ़रियाद
अंधी गूंगी बहरी हो गयी
सल्तनत हमारी
फरिस्ते के इन्तजार
बूढ़ी होती आँखे हमारी
बेगुनाही की सजा
माफी और ना नसीब के तारा के
उदय की कोई आस
ना लगती है पास
ना उम्मीद तो नहीं
मन करता सवाल
कब पूरी होगी बेगुनाही की
सजा हमारी
सवाल है हमारा
क्या जबाव दे सकेगी
सल्तनत हमारी ............नन्द लाल भारती ०२.०४.2012
Sunday, April 1, 2012
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