कुछ तो डरा करो
दरकने लगी है दीवारे
विरान लगने लगे है
अरमानो के चौबारे ।।
दिल में खंजर
सजाने लगे है लोग
शहद की आड़ में
विष बोने लगे है लोग।।
कैसे जुड़े परत दर परत
अमानुष किस्म का आदमी
नोंच रहा परत दर परत ।।
चाहत बढ़ने लगी है
उसकी
फलफूल रहा लोभ
सिर विराजित रहे वो
करता रहे
शोषित आदमी के
हको का बेख़ौफ़ भोग ।।
लोभी बस चाहता है
भला अपना
हाशिये के आदमी का
टूटता रहे सपना ।।
होंठ पर खूनी हंसी
दिल से विष का रिसना
कहाँ कब और कैसे
होगा हितकारी
कैसे उठेगा अदना
ये शोषितों की नसीब के
लूटेरो
कुछ तो डरा करो
सब कुछ देख रहा है
विधना .......डॉ .नन्द लाल भारती 17.02.2013
दरकने लगी है दीवारे
विरान लगने लगे है
अरमानो के चौबारे ।।
दिल में खंजर
सजाने लगे है लोग
शहद की आड़ में
विष बोने लगे है लोग।।
कैसे जुड़े परत दर परत
अमानुष किस्म का आदमी
नोंच रहा परत दर परत ।।
चाहत बढ़ने लगी है
उसकी
फलफूल रहा लोभ
सिर विराजित रहे वो
करता रहे
शोषित आदमी के
हको का बेख़ौफ़ भोग ।।
लोभी बस चाहता है
भला अपना
हाशिये के आदमी का
टूटता रहे सपना ।।
होंठ पर खूनी हंसी
दिल से विष का रिसना
कहाँ कब और कैसे
होगा हितकारी
कैसे उठेगा अदना
ये शोषितों की नसीब के
लूटेरो
कुछ तो डरा करो
सब कुछ देख रहा है
विधना .......डॉ .नन्द लाल भारती 17.02.2013
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