Monday, October 7, 2013

वफ़ा .....

वफ़ा के राही  बढ़ता जा अपनी राह पर ,
 गम के दौर है  तो क्या,मिट जायेगे सारे ,
बच  जायेगा तेरा निशाँ काल के गाल पर।
………………. 
बदले जहां में हम भी बदल रहे,
खौफ है खुद तेरा ,
रिश्ते नहीं बदल रहे।
………………।
कनक सा जहा बसंत सी जवानी ,
वाह रे अदने की नसीब ,
नयनो से रिस रहा पानी।
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हम भी कोहिनूर थे अपनी जहां के यारो
भेद की  ऐसी चली  असि अपनी जहां में  ,
बेनूर हो गए यारो।
…………………।
बहारो की मल्लिका मेरी गली भी आया करो
कैद नसीब के मालिक को ढाढस तो बंधाया करो।
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दर्द बहुत है यारो काँटों की राह पर ,
फ़ना होने की जिद है वफ़ा की राह पर.
………………………
ये ज़माने वाले क्या देंगे,ना उम्मीद हूँ उनसे

जख्म दिए है देते रहेगे,फ़रियाद है तो बस खुदा से।
डॉ नन्द लाल भारती  07  .10 .2013

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