अभिलाषा/कविता
खुद को कर कुर्बान,
अपनी जहां को
आज़ादी की देकर सौगात
वे शहीद हो गए
कर्ज के भार अपनी जहां वाले
दबे के दबे रह गए …………
आज़ादी का उदघोष चहुंओर
अपना संविधान
लागू हुआ पुरजोर ....
पर नियति की खोट
आज़ादी के मायने बदल गए
ना पूरी हुई असली
आज़ादी की आस
ना हुआ संविधान
राष्ट्र ग्रन्थ ख़ास ख़ास …………
कहते है ,
कर्म से नर नारायण होता
अपनी जहां में आदमी
जातिवाद,भेदभाव से
दबा कुचला रह गया रोता …………
अरे लोकतंत्र के पहरेदारो
अपनी जहा के शोषितो की,
सुधि लो
शोषितो कि समतावादी
सुखद कल की
तुमसे है आशा
अब तो कर दो पूरी
असली आज़ादी की अभिलाषा…………
डॉ नन्द लाल भारती 03 .10 .2014
ललकार ....... कविता
रिपब्लिकन कहे या लोकतंत्र
मतलब तो एकदम साफ़
संघे शक्ति और
सब देशवासी एक साथ .......
या यो कहें ,
लोकतंत्र जातिनिरपेक्षता -
पंथनिरपेक्षता -धर्मनिरपेक्षता
राष्ट्र-लोकहित ,
मानवीय मूल्यों का
पुख्ता अधिकार .......
कल भी अपना
कुछ ख़ास नहीं रहा
आज भी ठगा -ठगा सा
कल से तो है आस .......
फिक्र है भारी अपने माथे
लोकतंत्र के दुश्मन
जातियुध्द -धर्मवाद
दहकता नफ़रत का प्रवाह
क्षेत्रवाद -नक्सलवाद
सीना ताने .......
रक्षक होते भक्षक ,
सफ़ेद करते काले
हाशिये के आदमी की
फ़रियाद यहां कौन माने .......
बदलता युग बदलती सोच
लूट रहा
असली आज़ादी का सपना
कैद ही रह गया
शोषित आदमी का सपना .......
आओ सब मिलकर करे
ललकार ,
संविधान का हो अक्षरशः पालन
तभी मिलेगी असली आज़ादी ,
कुसुमित रह पायेगा
मानवीय हक़ और अधिकार .......
डॉ नन्द लाल भारती 02 .10 .2014
लोकतंत्र का उद्देश्य--------
लोकतंत्र का उद्देश्य
परमार्थ ,देश हित
मानव सेवा लोकमैत्री सदभाव
मानव को मानव होने का
सुख मिले भरपूर
शोषण अत्याचार ,भेदभाव
अपनी जहां से हो दूर,
शूद्र गंवार ढोल पशु नारी
ये ताडन के अधिकारी
अपनी जहा में ना गूंजे ये
इंसानियत विरोधी धुन
समानता राष्ट्रिय एकता को
अब ना डँसे
कोई नफ़रत के घुन
अरे अपनी जहां वालो
रिपब्लिकन यानि लोकतंत्र के
मर्म को पहचानो
संविधान को
जीवन का उत्कर्ष जानो
आओ कर दे ललकार
रिपब्लिकन विचारधारा
और
संविधान से ही होगा
अपनी जहां का उध्दार--------------------
डॉ नन्द लाल भारती 01 .10 .2014
लोकतंत्र------
लोकतंत्र की चली हवा
अपनी जहां में
अथाह हुए
स्वाभिमान अपने
देश आज़ाद अपना
जाग उठे सारे सपने
लोकत्रंत्र हो गया साकार
देश अपना ,
अपनो की है सरकार
हाय रे निगाहें
उनकी और न गयीं
ना बदली तकदीर उनकी
हाशिये के लोग जो
टकटकी में
उम्र कम पड़ गयी
अब तो तोड़ दो
आडम्बर की सारी सरहदे
खोल दो समानता ,
हक़ -अधिकार की बंदिशे
आओ सपने
फिर से बो दे प्यारे
अपनी जहां में
निखर उठे मुकाम
लोकतंत्र में ,
बसे प्राण आस हमारे।
डॉ नन्द लाल भारती 30 .09.2014
लोकतांत्रिक के मायने
लोकतांत्रिक होने के मायने
समता-सद्भावना की ,
सकूँ भरी साँसे
लोकंमैत्री की निश्छल बहारे ,
बिसर जाए दर्द के
एहसास भयावह सारे
ना आये याद कभी वो
कारी राते ,
हो स्वर्णिम उजियारा
संविधान का
अपनी जहाँ में
चौखट -चौखट नया सबेरा
तन -मन में नई उमंगें
सपने सजे हजार
आदमियत की छाये बहार
स्वर्णिम रंग में रंग जाए
शोषितो का हो जाए उध्दार
संविधान राष्ट्र -धर्म ग्रन्थ का
पा जाए मान
हर मन में हो
राष्ट्र का सम्मान
भेद-भाव से दूर
सद्भावना से दीक्षित
हर मन हो जाए चेतन
मिट जाए जाए
जाति -क्षेत्र की हर खाईं
आतंकवाद -नक्सलवाद की ना
डँसे परछाईं
मान्य ना हो जाति भेद का समर
लोकतांत्रिक होने के असली मायने
बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय
सर्वधर्म -समभाव
राष्ट्र-हित सर्वोपरि यही है सार
ना गैर ना बैर कोई
हर भारतवासी
करे संविधान की जय जयकार
लोकतांत्रिक होने के
असली मायने अपने
पी रहा रहा हूँ विष
जी रहा हूँ
लोकतंत्र के सपने लिए --------डॉ नन्द लाल भारती 29.09.2014
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