दो गज जमीं /कविता
नहीं चाहिए दो गज जमीं
जिन्हे चाहिए वे भी करे विचार
दिन प्रति दिन कम होती जमीं
और
अपनो की बढ़ती भीड़
दो गज जमीं पर स्थाई कब्ज़ा
मौत के बाद भी
क्या बनता नहीं सवाल …?
अपनो पर लगता नहीं अत्याचार
जीवन के लिए जरुरी है जमीं
मौत के बाद ऐसी क्यों दरकार
मृत काया को क्या चाहिए
काष्ठ के कुछ टुकड़े कंडे-सरकंडे
आग की चिंगारी ,यही काफी है
हां…। चंद घडी के लिए
दो गज जमीं भी।
मौत के बाद भी जमीं पर
कब्ज़ा बनाये रखने की
ख्वाहिश रखने वालो
करो विचार
दो गज जमीं की क्यों दरकार
तज दो मौत के बाद भी
जमीं पर कब्जे का विचार
अपनी जहां
और
अपनो पर होगा उपकार।
डॉ नन्द लाल भारती
7 फ़रवरी 2015

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