कल को मौत क्यों ...?
ईमान विश्वास को दगा,
दिल को घाव गहरा
श्रम ,कर्व्यनिस्था,समर्पण
वफ़ा हुई बदनाम
आज अधमरा लहुलुहान
कल को मृत्यु दंड का क्यों
फरमान ॥
भूख-प्यास-व्रत-उपवास
श्रम की झराझर बुँदे
मर-मर कर जीवन पाती
उम्मीदे
आज मरी तो क्या
कल की हो जाती जवान ॥
रंग बदलती दुनिया में
भविष्य को जाती मौत
तालीम और सम्मान के माथे
थोपा जाता अब अपमान ॥
दम घोंटू जहर मीठा
होंठ नशीले
दिल में विष की खान
अरे मुखौटाधारी
सच्चा राही क्यों बेचे ईमान
भले ही ढोवे
सिसकता जीवन मौत समान ॥
मर-मर कर जीना
कठिन तपस्या
खून के रिश्ते बस
कनक की खेती समान
जीने की आसरा तो उम्मीदे
करते शोषण भयावह
कुतरते हक़-योग्यता
स्वार्थ की दुनिया वाले
कंस समान ॥
सच्चा राही जज्बा में दम भारी
मिल जाता मरती उम्मीदों को
बिन बाती का तेल
जीवन रंग मंच का खेल मान
जग जाने जीवन फूल
कर्म सुगंध समान ॥
थाम श्रम की लाठी
फ़र्ज़ का दामन
निश्छल मन की गहराई में
ढूढता संतोष की मोती
मरते आज ,
कल को मिली मौत का
मातम बिसार
कल के कैनवास पर टाँकता
उसूल के मोती चाँद समान ॥
मिल गया समाधान
फरेबी कोई क्या देगा मौत ?
खुद भयभीत कंस समान
कर प्रभु ध्यान ...
कूद पड़ता कर्म मंच पर
जिसका कोई नहीं
उसका तो बस भगवान.....नन्द लाल भारती /२७.०८.२०११
Saturday, August 27, 2011
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खून के रिस्ते बस,
ReplyDeleteकनक की खेती समान॥
आपकी कविता के प्रत्येक शब्द मेँ सच्चाई है, नंदलाल जी|
खून के रिस्ते बस,
ReplyDeleteकनक की खेती समान॥
आपकी कविता के प्रत्येक शब्द मेँ सच्चाई है, नंदलाल जी|