Sunday, August 7, 2011

सूरज कब उग पाता है ....

सूरज कब उग पाता है .....?


हंसी ना बसी होंठ हमारे
दुःख कि गठरी नित
होती जाती भरी प्यारे ,
जग बैरी लागे लोग पराये
बेगानेपन का घाव गहरा
ह्रदय चीरता रिसता घाव
नित होता रहता हरा ।
नाग पनाग उरग विषधर
घात लगाए बैठे अजगर
ऐसे में कैसे लक्ष्य साध्य
हो पायेगा
देखना है अपने हिस्से का
सूरज कब उग पायेगा ।
हाशिये के आदमी पर
चौतरफा प्रेत छाया
सपनों में जीता
आया में जीवन के दिन खोता
मीठा वचन जहरीला
भ्रम का जाल बिछाते लोग
मुखौटाधारी सपने चुरा
भरपूर करते उपभोग ।
अदना विकास दूर फेंका
श्रम कि रोटी आंसू से करता
गीली
आज को भूल कल में
खो जाता
कहता कल होगा अपना
हुआ सबेरा नया
उम्मीदे होती कुसुमित
पर क्या
उजियारे में हक़ लूटा जाता ।
प्यासा समता बहुजन सुखाय
भेद-भाव -भ्रष्टाचार के युग में
सपने छीने जाते
हक़ कि लूट भयावह
बर्बादी के घाव नए मिल जाते ।
देख-देख घाव नित नए -नए
भयावह रूप नकाबपोशो के
आँखों में समन्दर उमड़ जाता है
देखना है ,
भेद-भरे जहा में
शोषित उत्पीडित आदमी के हिस्से का
सूरज कब उग पाता है .......नन्द लाल भारती ---०७-०८-२०११

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