क्या नाम देगा जमाना
यें कमजोर जान कर
आंसू देने वालों
हक़ और अधिकार का
जनाजा निकालने वालो
तकदीर के लूटेरों
तुम्हे क्या नाम देगा जमाना
कातिल शर्म कि दरिया
डूब-डूब मरोगे रोज-रोज
मुश्किल होगा मुंह छिपाना ।
तुम्हारी रची फरेब कि दीवारे
खूनी खोह क़ी दहाड़ती दरारे
लील गयी अरमान सारे
तुमने क्या रचा ताना बाना
सूख गए आंसू
हारता चला गया दीवाना ।
बेमौत मारा अरमान तूने
खुदा का हुक्म माना हमने
ना हारने कि जिद हमारी
तेरी तरकीबे डंसती रहेगी उम्र सारी
तुम्हे क्या नामे देगा ज़माना
तू वेश में भले हो आदमी
तुम्हे तो सच्चे कर्मयोगियों ने
शैतान है माना ।
ये कैसा अन्याय तुने कर दिया
अमानुष उंच-नीच के नाम पर
तालीम रौंद सद्काम को
मान ना दिया
नेक कर्मपूजा को दुत्कारा
आदमियत को फटकारा
ढोंगी भाग्य में भर दिया करा
हिसाब देगा जहां में
ना साथ देगा लूट का ठिकाना
डंसता रहेगा जन्म-जन्म
गरीब के आनु आंसू में नहाना ।
बूढी हुई आस डंस रही फाँस
मंजिले ध्वस्त किया तुमने
ना ध्वस्त कर पाए विश्वास
दौलत संतोष क़ी ,
तरक्की अदने की कहे संसार
होगी बद्दुआ की बदरी झराझर
तुम्हारी दुआरी
श्रम का गंगाजल
दाह कर देगा मुश्किलें सारी
ये नसीब के लूटेरो
तुम्हे क्या नाम देगा जमाना
पापी ........और क्या
जन्म-जन्म का पाप है
आंसू में नहाना ------------नन्द लाल भारती १०-१२-2011
Friday, December 9, 2011
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