ख्वाहिशें
आदमियत की ख्वाहिशे कई दिलों में
जीवित है आज भी ,
बंदिशों में जकड़े आहात है
धर्म जाति की कैद में लोग
कराह रहे है
हरे-हरे घाव लिए .....
आदमी होने के सुख से
बेदखल दोयम दर्जे के
आदमी भर रह गए है ........
दुर्भाग्य नहीं साजिश है ये
सत्ता की चाह में आदमी का
आदमी के खिलाफ ,
खैर अपनी जहां में
खुद को बनने का कहाँ
अधिकार प्राप्त है ..........
पहले धर्म की फिर जाति की
गला-तपाकर उंच-नीच
इतना ही नहीं
दैवीय विधान के खिलाफ़
अछूत तक बना दिया जाता है
पीढी दर पीढी गरीब ,भूमिहीन
आँखों में आंसू लिए
संघर्षरत रहने के लिए ...............
आखिरकार दोषी कौन है
यकीनन धर्म के नाम पर
आदमियत के खिलाफ चक्रव्यूह रच रखे
धार्मिक सत्ताधीश बन बैठे लोग ........
चक्रव्यूह ना टूटे
उंच-नीच के चक्रव्यूह में उलझे रहे आदमी
आदमी के सुख से वंचित होकर भी
जाति के अहंकार में तर -बतर
जय-जयकार करता रहे आदमी
यही तो साजिश है
धर्म-जाति के सत्ताधीशो की .......
हे आदमियत की ख्वाहिशे रखने वालो
पहचानो धर्मान्धता-रुढिवादिता में
भगवान् कहाँ ......?
खुद में तलाशे जाति -उपजाति की सरहदे तोड़कर
मातृभूमि को धरती का स्वर्ग बनाये
भेदभाव त्यागकर आदमियत के
ईश्वरीय परमानन्द प्राप्त करे
ख्वाहिशे होगे पूरी
समता-सद्भावना और राष्ट्रधर्म की ललकार करे .............डाँ .नन्द लाल भारती 24.01.2013
आदमियत की ख्वाहिशे कई दिलों में
जीवित है आज भी ,
बंदिशों में जकड़े आहात है
धर्म जाति की कैद में लोग
कराह रहे है
हरे-हरे घाव लिए .....
आदमी होने के सुख से
बेदखल दोयम दर्जे के
आदमी भर रह गए है ........
दुर्भाग्य नहीं साजिश है ये
सत्ता की चाह में आदमी का
आदमी के खिलाफ ,
खैर अपनी जहां में
खुद को बनने का कहाँ
अधिकार प्राप्त है ..........
पहले धर्म की फिर जाति की
गला-तपाकर उंच-नीच
इतना ही नहीं
दैवीय विधान के खिलाफ़
अछूत तक बना दिया जाता है
पीढी दर पीढी गरीब ,भूमिहीन
आँखों में आंसू लिए
संघर्षरत रहने के लिए ...............
आखिरकार दोषी कौन है
यकीनन धर्म के नाम पर
आदमियत के खिलाफ चक्रव्यूह रच रखे
धार्मिक सत्ताधीश बन बैठे लोग ........
चक्रव्यूह ना टूटे
उंच-नीच के चक्रव्यूह में उलझे रहे आदमी
आदमी के सुख से वंचित होकर भी
जाति के अहंकार में तर -बतर
जय-जयकार करता रहे आदमी
यही तो साजिश है
धर्म-जाति के सत्ताधीशो की .......
हे आदमियत की ख्वाहिशे रखने वालो
पहचानो धर्मान्धता-रुढिवादिता में
भगवान् कहाँ ......?
खुद में तलाशे जाति -उपजाति की सरहदे तोड़कर
मातृभूमि को धरती का स्वर्ग बनाये
भेदभाव त्यागकर आदमियत के
ईश्वरीय परमानन्द प्राप्त करे
ख्वाहिशे होगे पूरी
समता-सद्भावना और राष्ट्रधर्म की ललकार करे .............डाँ .नन्द लाल भारती 24.01.2013
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