माना कि हमारे पास वो ,
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23.01.2014
दौलत ओहदा कहाँ
बस बची खुदनसीबी
इतनी सी अपनी भी
इतनी सी अपनी भी
अपनी जहा में
हो जाती है सुबह
सूरज के संग
रात गुजर जाती है
चंदा के रंग ,
हमें मलाल नहीं खुदा से
आदमी से जरुर है ,
बाँट दिया जो खंड-खंड
आदमी को
आदमी ना होने का मिलता है दंड
आदमी ना होने का मिलता है दंड
काश कोई मिल जाता
२१वीं सदी में नया मसीहा ,
गूथ देता बिखण्डित ,
मनका -मनका को ,
हो जाता रोशन अपना जहा भी भी
मिल जाती हर दौलत मन को……।
डॉ नन्द लाल भारती
आज़ाद दीप -15 एम -वीणा नगर
इंदौर (मध्य प्रदेश)452010 
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