सुलगता बोझ /कविता
कैसा रहा होगा वो सुखद युग
कैसा रहा होगा वो सुखद युग
अनुभूति जिसकी सतयुग जैसी
वो लोग कैसे रहे होगे ,
नेक सदकर्मी सभ्य समतावादी
नेक सदकर्मी सभ्य समतावादी
कुसुमित रहा होगा रिश्ता मानवतावादी ।
वह युग जहां मिलता रहा होगा
सच को आसमान ,
योगयता ज्ञान को भरपूर सम्मान ,
कर्म का कुसुमित रहा होगा ठिकान।
आज भी एक युग है और
जहा जातिवाद के विष बेल से
डरा सहमा आदमी
डरा सहमा आदमी
पहचान पर मुखौटा ओढ़े हुए है
क्योंकि जातिवाद से आतंकित है
भ्रष्ट्राचार से पीड़ित है ।
सच के पर है
आदमियत लहुलुहान है
योगयता वफ़ा इमान कर्त्तव्यपरायणता
परेशान है ।
काश आज का आदमी आदमी बना रहा होता
छाती पर जातिवाद -भ्रष्ट्राचार का सुलगता बोझ
आज के युग में ना होता ।
डॉ नन्द लाल भारती
14 मार्च 2014
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