Thursday, June 11, 2015

शुभाशीष की थाल लिए /कविता

शुभाशीष की  थाल लिए /कविता 
जानता हूँ मानता भी हूँ 
जरुरी भी है 
फ़र्ज़ पर फ़ना होना  ……………
दुःख घोर दुःख होता है 
परन्तु 
इस दुःख में जीवन का बसंत 
मीठा -मीठा सुखद एहसास 
और 
निहित होता है 
सकून भरा भविष्य निर्माण ……………
तभी तो माँ -बाप 
कन्यादान कर देते है 
सतीश अनुराग,अमितेश आज़ाद 
जैसे भाई आँखों में ,
अश्रु समंदर छिपाए 
हंसी ख़ुशी कर देते है 
शशि चाँद सी बिटिया को विदा  ……
वही बेटी जो माँ -बाप की ,
सांस में बसती है 
एक दिन माँ -बाप के घर से,
विदा कर  जाती है 
स्वंय की दुनिया बसाने के लिए  ……
वही हुआ कल बेटी विदा हो गयी 
घर-आँगन का मधुमास 
बेजान हो गया  
कभी पलकों के बाँध नहीं टूटे थे 
वह भी टूट गए  ……………
बेटी विदा हो चुकी है 
हवा के झोंको में जैसे 
बेटी के स्पर्श का 
एहसास हो जाता है रह रह कर 
मैं बावला भूल जाता हूँ 
एहसास में खो जाता हूँ 
कैसे हो पा…………?
बेटी के प्रतिउत्तर में निरुत्तर 
मौन के सन्नाटे को 
चिर नहीं पाता हूँ…… 
पलकें  बाढ़ से घिर जाती है 
अश्रुवेग पलकों में समा जाता है 
बेटी के सुखद कल के  लिए
हर झंझावात सह लेता हूँ 
मन सांत्वना देता है 
दिल तड़प जाता है बेटी की जुदाई में 
अंतरात्मा प्रफुलित हो जाती है 
बीटिया की सर्वसम्पन्नता की 
शुभकामना लिए 
मन कह उठता है बिटिया 
तूझे मायके की याद ना आये 
सदा सुखी रहे तू ……………
जीते रहेंगे हम तेरे लिए 
शुभाशीष की  थाल लिए ……। 
डॉ नन्द लाल भारती 24.05.2015   

मकसद/कविता 
अपने जीवन का मकसद 
ये नहीं कि 
दुनिया की दौलत और सोहरत पर 
कब्ज़ा हो जाये अपना 
ये नहीं हो सकता सपना अपना 
कुछ नहीं चाहिए यारो हमें 
बस जीवित रहने के लिए 
रोटी ,पानी और छाँव 
वह भी श्रम के एवज में खैरात नहीं 
इसलिए कि 
मानव होने के अपने दायित्वों के प्रति 
ईमानदारी बरता जाए 
इंसान होने के नाते 
एक अपनी चाहत ये भी है कि 
वर्णिक और वंशवादी आरक्षण के 
किले को अब ढहा दिया जाए 
सच्चा मानव होने के नाते  
मानवीय समानता के लिए 
बस अपने जीवन का
यही 
ख़ास मकसद है यारो 
मानव धर्म की रक्षा के लिए .......... 
डॉ नन्द लाल भारती 05.06.2015     

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