शब्द बने पहचान /कविता
प्यारे ह्रदय उजियारे जानता हूँ
मानता भी हूँ
जीवन में आदमी का चेहरा
महानता की शिखर ,
सुंदरता का चरम ,
प्यार का पागलपन भी हो जाता है..............
कई देवता बन जाते है
कई देवदास कई देवदासिया
कई रंक भी हो गए
चहरे के नूर में उत्तर कर ..............
जग जानता है
आदमी जब तक सांस ले रहा है
नूर है चहरे का तब तक
सांस बंद होते ही बिखर जाता है
पंच तत्वों में फिर मुश्किल हो जाती है
चहरे की पहचान ..............
वही चेहरा जिस पर लोग मरते थे
राजपाट लूटाते थे
नहीं हो सका नूरानी मुक्कमल
मानता हूँ
मेरा चहेरा तो हो ही नहीं सकता
क्योंकि ना मै किसी राजवंश से
ना किसी औद्यौगिक घराने से
ना किसी धर्म-सत्ताधीश
और
ना किसी राजनैतिक सत्ताधीश की
विरासत का हिस्सा हूँ ,
पर अदना भी ख़ास बन सकता है
नेक कर्म से वचन से जन और
कायनात हित में अक्षरो की पिरोकर भी
इन्ही सदगुणों से तो कालजयी है
रविदास ,कबीर,अम्बेडकर, स्वामी विवेकानंद
अब्राहम लिंकन सुकरात और भी कई
प्रातः स्मरणीय ..............
मैं जानता हूँ मैं कुछ भी नहीं
परन्तु मेरी भी अभिलाषा है
इंसान होने के नाते, ह्रदय उजियारे
चेहरा नहीं शब्द बने पहचान हमारे ..............
डॉ नन्द लाल भारती
12 जून 2015
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