दर्द /कविता
दर्द दांत का अकेला नहीं होता
सिर्फ दांत में
कैद कर लेता है पूरा बदन
दर्द दांत का, छेद डालता है
खूनी खंजर के जख्म जैसे
नाक ,कान ,आँख
ऐठन डाल देता है
गर्दन में …………
झूठ नहीं सच है
दर्द भोगने वाले जानते है
काया काँप उठती है
अतड़िया तड़प उठती है
दांत के दर्द में …………
छीन जाता है सकून
पेट में भूख का
झोंका उठता रहता है
दांत इजाजत नहीं देते
जब होता है दर्द दांत में ……
होती है तो बस जदोजहद
ज़िन्दगी पतझड़ हो जाती
बसंत में भी
पलके रिसने लगती है
जब जब उठता है
दर्द दांत में …………
सच ऐसे ही दर्द का ,
जीवन हो गया है
हाशिये के आदमी का
स्नेह का झोंका तनिक
सकून दे जाता है
दर्द में कैद आदमी को …………
उपचार जब मिल जाता है
बेपटरी ज़िंदगी
पटरी पर दौड़ पड़ती है
काश
भारतीय समाज में
जातिवाद से उपजे
भयावह दर्द का
पुख्ता इलाज हो जाता …………
हाशिये के आदमी का
जीवन हो जाता सफल-समान
दौड़ पड़ता अदना भी
विकास के पथ पर सरपट
जातिवाद रूपी
दांत के दर्द की कैद से छूटकर
सदियों से जो दर्द
पालथी मार बैठा है
भारतीय समाज में …………
डॉ नन्द लाल भारती 01.09. 2015

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