ओल्डएज होम/कविता
अरे नव जवानो धर्म-कर्म काण्ड त्यागो
धरती के जीवित भगवान को पहचानो
ओल्डएज होम का पता पूछना उनका
तुम्हारी उड़ान पर सवाल खड़ा कर रहा है
धरती का भगवान क्यों बेघर हो रहा है ……
कापते हाथ,आँखों में अँधियारा,
लूटाया जीवन का बसंत तुम्हारे लिए
वही नाथ अनाथ हो रहा है
दर्द में जीया,स्वर्णिम भविष्य सीया
किस गुनाह की सजा ,
धरती का भगवान छाँव ढूढ़ रहा है ……
कितने हो गए मतलबी ,
पत्थर के सामने सिर पटकते अब
जीवित भगवान बोझ लग रहा है ,
घुटने बेदम लिए
वही शाम ढले सहारा खोज रहा है ……
जाए कहा लाचार कब्र में पाँव लटकाये
ओल्डएज होम का पता पूछ रहा है
ये उड़ान , ऊॅंचा मचान देंन किसकी
श्रम से बोया लहू से सींचा ये मुकाम किसका
स्वार्थ के सौदागरों सोचो जरा
क्या गुनाह, वही भगवान बेबस आज
दर्द का जहर पी रहा है ……
धरती के जीवित भगवान माँ-बाप
मान दो सम्मान दो,ढलती शाम में ,
भरपूर छाँव दो ,
वक्त पुकार रहा है
नव जवानो धरती के भगवान को पहचानो
ना खोजे ओल्डएज होम का सहारा वे
खा लो कसम ,ना हो
धरती के भगवन का निष्कासन
वक्त धिक्कार रहा है
ये अदना गुहार कर रहा है……
डॉ नन्द लाल भारती 23 .09. 2015
अरे नव जवानो धर्म-कर्म काण्ड त्यागो
धरती के जीवित भगवान को पहचानो
ओल्डएज होम का पता पूछना उनका
तुम्हारी उड़ान पर सवाल खड़ा कर रहा है
धरती का भगवान क्यों बेघर हो रहा है ……
कापते हाथ,आँखों में अँधियारा,
लूटाया जीवन का बसंत तुम्हारे लिए
वही नाथ अनाथ हो रहा है
दर्द में जीया,स्वर्णिम भविष्य सीया
किस गुनाह की सजा ,
धरती का भगवान छाँव ढूढ़ रहा है ……
कितने हो गए मतलबी ,
पत्थर के सामने सिर पटकते अब
जीवित भगवान बोझ लग रहा है ,
घुटने बेदम लिए
वही शाम ढले सहारा खोज रहा है ……
जाए कहा लाचार कब्र में पाँव लटकाये
ओल्डएज होम का पता पूछ रहा है
ये उड़ान , ऊॅंचा मचान देंन किसकी
श्रम से बोया लहू से सींचा ये मुकाम किसका
स्वार्थ के सौदागरों सोचो जरा
क्या गुनाह, वही भगवान बेबस आज
दर्द का जहर पी रहा है ……
धरती के जीवित भगवान माँ-बाप
मान दो सम्मान दो,ढलती शाम में ,
भरपूर छाँव दो ,
वक्त पुकार रहा है
नव जवानो धरती के भगवान को पहचानो
ना खोजे ओल्डएज होम का सहारा वे
खा लो कसम ,ना हो
धरती के भगवन का निष्कासन
वक्त धिक्कार रहा है
ये अदना गुहार कर रहा है……
डॉ नन्द लाल भारती 23 .09. 2015
No comments:
Post a Comment