माँ का आशीष
पद-सत्ता कि आतुरता शांत तो नहीं हुई
नहीं माँ को दिया वचन पूरा कर पाया ।
खैर माँ को वचन तो मैंने दिया था
कहा किसी माँ ने लिया है कि
मेरी माँ लेती ।
माँ का नाम यानि
देना .....
अफ़सोस तो है मुझे
माँ को कोई सुख नहीं दे सका
शायद कैद नसीब कि वजह से ।
नसीब आज़ाद तो नहीं हुई
पसीने से सिंची फसल
ओले-तूफ़ान को सहते
फल देने लायक बनी भी ना थे
कि माँ चल बसी ...
कई सारे सवाल छोड़कर ।
आज भी मै संघर्षरत हूँ
श्रम कि मंडी में कोई
करिश्मा तो नहीं हुआ
नहीं कड़ी हुई मिशाल
हां कद बढ़ा पेट-परदा चल रहा है
माँ कि तैयार जमीन पर ।
माँ का वरदान सौभाग्य है
पद-सत्ता कि आतुरता
शांत नहीं हुई
हो भी कैसी सकती है
अदने की .............
जिस जहा में भेद और स्वार्थ का रोग लगा हो
कर्जदार रहूँगा सदा माँ का
माँ का ही तो आशीष है की
पराई दुनिया में
छूट रहे है अपने भी निशान
देखना कब होती है
कबूल जमाने को
माँ की भोर की दुआ ..............नन्द लाल भारती ०१.०७.२०११
Tuesday, July 5, 2011
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