संकल्प लिया है
बड़े अरमानो में रात
करवटें बदल-बदल कर
काटा था।
अफ़सोस दे गया
आज भी
शदियों से बीते रहे
कल की तरह ।
मेरे सब्र के बाँध टूटे
नहीं है
बुन लेता हूँ नित नया
अरमान का एक नया जाल ।
कल है की आता ही नहीं
ना ही मिलती है
दबे पाँव आने की
आहट
सर्वजन सुखाय के
बसंत की ।
सर्वजन सुखाय के अरमान लिए
रात की करवटों और
दिन की छटपटाहट में
जीवन का बसंत
पतझड़ की कराह लिए
बीत रहा है ।
मै सब्र की छांव में
अरमानो के कर्म बीज
श्रम से सींचता चला जा रहा हूँ
अफ़सोस
अपने नित होते बेगानों के
विष -कीट चट कर जा रहे है
अरमानो की फसल ।
उम्र के अभी तक के बसंत को
आंधी,तूफ़ान ओला वृष्टि से
अरमानो की खेती
उपज तो नहीं दे पाई है
पर मेरे संकल्प को रौंद
नहीं पाया है
जमाने का भेदभाव जो
अरमानो का दुश्मन है ।
अरमान हकीकत में आकार
पा सकेगे की नहीं
अब इसकी फिक्र नहीं है मुझे .
फिक्र है बस इस बात की
कि अरमानो को
रात कि करवट
दिन की छटपटाहट में
अरमानो को
जीवित रखने का जो
संकल्प लिया है
वे मर ना जाये
इनकी मौत मेरी मौत से
कम ना होगी .........नन्द लाल भारती २३.०७.२०११
Friday, July 22, 2011
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