कैद खजाने के मुंह
राष्ट्रहित में खोल दिया जाना चाहिए ...
आँखे तो सभी कि बरसती है
आंसू ...
ख़ुशी कि किसी कि
दुःख कि
यह खबर सुनकर
कि
तिरुवनंतपुरम के
पदनाभन स्वामी मंदिर के
खजाने ने
उगला पच्चास हजार करोड़ का धन ,
कानूनी रूप से जो
काला नहीं है
देशहित में उजाला भी
नहीं कह सकते ।
मंदिरों में कैर धन
देश के विकास में नहीं रखते
अर्थ है ....
सच ऐसा धन देश
और
जनता के हित में है
बे-----अर्थ ।
ऐसा धन होने का क्या
अर्थ .....
ना आये देश के काम
लगा लो अनुमान
छूट जाएगा पसीना
सैकड़ो मंदिर और है
जहा गड़े पड़े है
धन के भण्डार
ये कैद धन आता
देश के काम ....
पा लेता सुनहरा यौवन
देश और आवाम ।
मन बहुत रोता है
अकूत सम्पदा कैद है
देश के मंदिरों के तहखानो में
शोषित-वंचित आदिवासी जोह रहे है
बाट विकास कि
और तरस रहे है
रोटी के लिए ।
प्रश्न है ............?
क्या ये अकूत धन
पुजारियों कि कैद में रहना चाहिए
नहीं ना .....................
उन्हें क्या क्या चाहिए
रोजमर्रा के खर्च का प्रबंध
यह तो दान से मिल जाता है ।
वक्त आ गया है
मठाधिशो को सोचना चाहिए
देश और आवाम के विकास में
लगाना चाहिए .....
मंदिरों से गूंजा है अमृत वचन
दरिद्रो कि मदद के बिना देव भी
नारायण नहीं हो सकता
मंदिरों में कैद
खजानों के मुंह
राष्ट्रहित में खोल
दिया जाना चाहिए...............नन्द लाल भारती ०२.०७.२०११
Tuesday, July 5, 2011
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