भेद भरी दुनिया में ॥
मधुमास को रौंद गयी
विरोध की आंधी
पाँवन गड़े शूल
ह्रदय भरे घाव भयावह
नसीब पर लटका ताला
मन- रोया बार-बार
भेद के आगे
तालीम योग्यता का नहीं
इतबार
आंसूओं ने सींचा
अरमान भला ।
ह्रदय में उमड़ता
सपनों का बसंत
उम्र की तेज रफ़्तार
शोषण , उत्पीडन की प्रचंड तूफान
मधुमास में ऐसी भेद की आंधी
नहीं था भान
सांस थमी जीने की कला
बिखरने लगे
उम्मीदों के पात भला ।
बेमुर मार दिए गए सपने
भेदभाव,पक्षपात के ठीहे पर
अरमानो की मृत शैय्या छाती पर
तालीम हुई उपहास प्यारे
रंग बदलती दुनिया में
जीवन जंग हुआ प्यारे ,
नित-नित मरते सपने
जीवन के आधार नित नए सपने
यही है भेद भरी दुनिया में
सांस के साज हमारे ..............नन्द लाल भारती...०७.११.२०११
Sunday, November 6, 2011
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