दहशतगर्दी
भेद और लूट की दहशतगर्दी
आज भी चौखट पर दस्तक देती है
दुकान-दफ्तर नुक्कड़ शहर-गाँव तक
पसरी है दहशतगर्दी
बस्ती को भयभीत कर रही है
हैरान परेशान लहूलुहान है आदमी छोटा
ठगी नसीब का मालिक ,हो गया है खोटा
ढो रहा है नित,छाती पर कई-कई मन दुःख
आँखों में सजाये कई -कई जीवित सपने
बेबस जी रहा है दहशतगर्दी में
कौन सुनेगा है उसकी कि,अब कोई सुनेगा
कमेरी दुनिया का शोषित-वंचित
हाशिये का आदमी है जो
लूटा गया दहशतगर्दी में जो
दिन का उजाला भी ,अँधियारा लगने लगा है उसे
रात के अँधेरे में तो दहशतगर्दी के
सदमे सताते है रोज-रोज
आदमी है नेक,छोटा बना दिया गया है जो
मन का तो गंगा जैसे पवित्र है वो
श्रम झरता है झराझर
अछूत रह गया ना भला हुआ उसका
बदलते वक्त में भी
समाज-धर्म-राजनीति के पहरेदारो से
आतंकित शोषित पीड़ित
बसर कर रहा है दहशतगर्दी में रोज-रोज .....नन्द लाल भारती ..१६.०९.२०१२
भेद और लूट की दहशतगर्दी
आज भी चौखट पर दस्तक देती है
दुकान-दफ्तर नुक्कड़ शहर-गाँव तक
पसरी है दहशतगर्दी
बस्ती को भयभीत कर रही है
हैरान परेशान लहूलुहान है आदमी छोटा
ठगी नसीब का मालिक ,हो गया है खोटा
ढो रहा है नित,छाती पर कई-कई मन दुःख
आँखों में सजाये कई -कई जीवित सपने
बेबस जी रहा है दहशतगर्दी में
कौन सुनेगा है उसकी कि,अब कोई सुनेगा
कमेरी दुनिया का शोषित-वंचित
हाशिये का आदमी है जो
लूटा गया दहशतगर्दी में जो
दिन का उजाला भी ,अँधियारा लगने लगा है उसे
रात के अँधेरे में तो दहशतगर्दी के
सदमे सताते है रोज-रोज
आदमी है नेक,छोटा बना दिया गया है जो
मन का तो गंगा जैसे पवित्र है वो
श्रम झरता है झराझर
अछूत रह गया ना भला हुआ उसका
बदलते वक्त में भी
समाज-धर्म-राजनीति के पहरेदारो से
आतंकित शोषित पीड़ित
बसर कर रहा है दहशतगर्दी में रोज-रोज .....नन्द लाल भारती ..१६.०९.२०१२
No comments:
Post a Comment