जी भर रहा है .
फिर आँखे रो उठी
दिल तड़प उठा
उसको देखकर
आँखों में उसकी
के दीदार थे
दिल में दहकते साक्षात्कार थे
आँखे लबालब थी
किनारे मज़बूत थे
पेट से जैसे
अंतडिया गायब थी
कमर और घुठने बेबस
लग रहे थे
हाथ एकदम तंग था
संघर्षरत मौन बयान
दे गया था
बूढ़ी सामाजिक कुव्यवस्था से
टूट चुका था
दोयम दर्जे का आदमी
कोई और नहीं
हाशिये का आदमी मूलनिवासी
शोषित उपेक्षित भूमिहीन खेतिहर मजदूर था
आज भी है ,
अफ़सोस कोई खैरियत
जानने वाला नहीं
दमन, जातीय कुचक्र,भय- भूख
भेद भाव से भयभीत
शोषित आदमी बस जी भर रहा है ...नन्द लाल भारती ०३.०९.2012
फिर आँखे रो उठी
दिल तड़प उठा
उसको देखकर
आँखों में उसकी
के दीदार थे
दिल में दहकते साक्षात्कार थे
आँखे लबालब थी
किनारे मज़बूत थे
पेट से जैसे
अंतडिया गायब थी
कमर और घुठने बेबस
लग रहे थे
हाथ एकदम तंग था
संघर्षरत मौन बयान
दे गया था
बूढ़ी सामाजिक कुव्यवस्था से
टूट चुका था
दोयम दर्जे का आदमी
कोई और नहीं
हाशिये का आदमी मूलनिवासी
शोषित उपेक्षित भूमिहीन खेतिहर मजदूर था
आज भी है ,
अफ़सोस कोई खैरियत
जानने वाला नहीं
दमन, जातीय कुचक्र,भय- भूख
भेद भाव से भयभीत
शोषित आदमी बस जी भर रहा है ...नन्द लाल भारती ०३.०९.2012
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