हाल सुनो........................
यारो अपनी जहां के हाल सुनो,
मरे सपने बहुत ,जाल ना बुनो ,
जख्म रिसते डराते हरदम पुराने ,
बदलता जहाँ पर घाव रोजाने ,
आदमी को आदमी कहाँ माने ,
आदमी को तौलने के औजार पुराने ,
भेद की ज्वाला लगी है ख्वाब खाने ,
भेद की जाम पर रोशन मयखाने ,
जीए कैसे दहकते जख्म थामे ,
कल,आज और कल भी लगे डराने
यारो अपनी जहां के हाल सुनो,
मरे सपने बहुत ,जाल ना बुनो..........
डॉ नन्द लाल भारती
21.07 .2013
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