कैसे-कैसे लोग /कविता
अपनी जहाँ के कैसे-कैसे लोग
तरासते खंजर कसाई जैसे लोग ,
अदना जानकर लूटते हक़
छिन जाते आदमी होने का सुख,
कर रहे युगों से कैद नसीब
अपनी जहाँ के लोग……
कैसा गुमान ,वार रार ,तकरार
करते रहते लहुलुहान ,अदने का जिगर
भले ना हो कोई गुनाह
भय,शोषण ,उत्पीडन आतंक
दिल को कराह। …………
अपनी जहां में उम्र गुजर रही
अदने की जिन्दगी दर्द की शैय्या पर
मुश्किलें हजार कांटो का सफ़र
बेमौसम अंवारा बादल बरस रहे
डूबती उम्मीदे,किनारे नहीं मिल रहे। ……।
अदना हिम्मत कैसे हारे, सत्याग्रह कर रहा
हौशले से जीने का सहारा ढूंढ रहा
सदियों से कसाईयो से चौकन्ना
खुली आँखों से सपना बो रहा। …. डॉ नन्द लाल भारती 26.08.2013
No comments:
Post a Comment