दूरियां /कविता
अपनी जहां अपनी ना हुई ,
शोषितो की तकदीर क़त्ल हुई ,
ये जहां उन्ही की हुई है यारो ,
बोया है जिसने दूरिया ,
पैदा किया है
गैरो के लिए मज़बूरियाँ
गैरो के लिए मज़बूरियाँ
चौथे दर्जे के शोषित
कमेरी दुनिया के लोग
कमेरी दुनिया के लोग
वफ़ा पर फना हो रहे ,
कर्म ही तो धर्म है को ,
जीवन का गहना कह रहे ,
भला क्या हुआ …………?
मुर्दाखोरो की बस्ती में
नसीब के नाम कर्म-श्रम का
चीर हरण ही तो है हुआ ,
बलात्कार पसीने का भी हो रहा ,
दब रही भरे जहां में सिसकियाँ
ये कैसा जहां है ....?
भेद और स्वार्थ का नशा
है छाया
भेद और स्वार्थ का नशा
है छाया
बोयी जा रही है दूरियां। ……………………
डॉ नन्द लाल भारती
06 . 12 . 2013
आज़ाद दीप 15 -एम् वीणा नगर
इंदौर-452010 (मध्य प्रदेश )
इंदौर-452010 (मध्य प्रदेश )
दिल से बाहर करके तो देखो /कविता
जातीय नफ़रत का बारूद ना सुलगाओ
तोड़ बंधन सारे समता का दीया जला दो।
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