ये फिजाओं तुम तो गवाह हो
मेरी तार-तार ज़िंदगी
और इस के कारणों की भी
अपनी जहां में
कैद नसीब का मालिक
हाशिये का आदमी हो गया हूँ
ये फिजाओं तुम,
नसीब के दुश्मनो से कह देना
मैं जीना सीख गया हूँ………
परजीवी हमारे लहू पर पल कर
हक़ लूट कर अछूत कह रहे है
तनिक संभावना संविधान से
उसे भी झपट रहे,
नहीं चाहिए आरक्षण
संरक्षण की हम गुहार कर रहे
दिखा दो हिम्मत
बाँट दो हमारी तादात के अनुसार
राष्ट्र सम्पदा धरती
समता का अधिकार
सदियों से मांग रहा हूँ
अब तो आज़ाद देश में
हवा पीकर जीना सीख रहा हूँ ………
डॉ नन्दलाल भारती 12.12 2015
No comments:
Post a Comment