उनसे कह देना कोई /कविता
उनसे कह देना कोई
मैं हारा नहीं और हताश होकर मरा नहीं
उन मुर्दाखोरो की लाख कोशिशो से भी
मुर्दाखोरो को पसंद था
मेरा सुलगता आज-कल और
मेरी आँखों के झरते आंसू
जो कभी झरे ही नहीं
मैं आज भी जीवित हूँ,अपनी सांस पर
धिक्कारता हूँ आज भी,
मुर्दाखोरो की विरासत को
जो आदमी को आदमी नहीं,अछूत मानती है
उनसे कह देना कोई
अप्पो दीपो को अपनाकर
मैंने भी अपनी जहां बना ली है
मुर्दाखोरो के दिए दर्द को मथकर
दर्द से उपजी उम्मीदे,राह दिखाने लगी है
मुर्दाखोरो से कोई कह दो
आदमियत की राह धर लो
मुर्दाखोरी के आतंक में कब तक
यौवन धरे रहोगे ,
अरे मुर्दाखोरो
अब तो दुनिया भी तुम पर थूकने लगी है………
डॉ नन्दलाल भारती 19 .12 2015

No comments:
Post a Comment