अरमान के
जंगल में
ठूठ सपनों के
विहड़ खड़े है
श्रम की लाठी से
खून होता
पसीना
खुली आँखों के
सपने
भ्रष्ट्राचार के पाँव तले
दफ़न हो रहे है
गरीब की तार-तार
नईया
परिश्रम की पतवार से
किनारा ढूढ़
रही है ...नन्द लाल भारती॥ १६.०६.२०११
Thursday, June 16, 2011
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