Thursday, June 16, 2011

कविता-५

आदमी हूँ
मेरा भाग्य है ,
कलमकार हूँ
सौभाग्य है
योग्य-कर्मशील हूँ
जीवन संघर्ष का
प्रतीक है
पद और दौलत से
वंचित हूँ
आदमी का दिया
दुर्भाग्य है
दुर्भाग्य को
लहूलुहान कर
देते है
उच्च-श्रेष्ठ -दबंग
कुछ लोग
छाती में
खंजर उतार कर
यही विष बीज
कर देता है
वंचित
आदमी की
तकदीर
बंजर
यही जीवन
जीने का सलीका
दर्द कहे
या
कराहते
जीवन जंग में
बढ़ते रहने का
जनून
यही
भोग रहा हूँ
कलमकार हूँ
सौभाग्य
कह
रहा हूँ ......नन्द लाल भारती ... १६.०६.२०११

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