बदल दौर में जोगी बदल रहे
कहा टिके यकीन बाबा
क्रांति का बजा
तो
बिगुल
खुद के बचाव के लिए
महिलावेष धर निकल गए
बाबाओ के किले डकार रहे
ट्रको सोने कि सिल्लिया
और
नोटों कि गड्डियां
देश में होगे ऐसे
बाबा तो क्या होगा .....?
गरीब और गरीब
विकास पर ग्रहण
समझ में आ गया
स्वार्थ में डूबे
और
राजनीती कि सरिता में नहाए
जोगी हो या भोगी
सब आमआदमी
और
देश को छल रहे .................नन्द लाल भारती २८.०६.2011
Tuesday, June 28, 2011
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